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( ३६ )
बे सदी, विश्वकर्मा अवतार ॥ २ ॥ नक्ति करे सहु कुमरनी, पासें राख्यो तास ॥ पुर खोल्यो सहु धीव रें, न जह्यो थया उदास ॥ ३ ॥ इहां घावी खोयुं रतन, यमनें पड्यो धिक्कार ॥ एम निज खातम निंदता, सड्डु गया तेणि वार ॥ ४ ॥ रायकुमरनी सान्निध्यें, पूरो थयो यावास ॥ सप्तभूमि सुरगृह जीश्यो, माहा ज्योति सुप्रकाश ॥ ५ ॥
॥ ढाल पन्नरमी ॥ खादर जीव कुमागुण चादर ॥ ॥ ए देशी ॥
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पूरु थयुं मंदिर कुमरीनु, जोवा श्राव्यो राय जी ॥ देखीने रलियायत हुनु, कीधो बहुत पसाय जी ॥ १ ॥ उत्तम चरित्र कुमार निहाल्यो, रूपकला गुणजोइ जी ॥ राजा नरवर्म चित्त विचारे, वे राजनपुत्र कोइ जी ॥ २ ॥ पू० ॥ एदवुं नृप चिंतवीने वलियो, कु मरी रमवा काज जी ॥ वनवाडीमांहे संचरियां, सइयर तणे समाजजी ॥ ३ ॥ ५० ॥ मशीयो जुयंग क्रीडा क रंतां, ततक्षण यइ यचेत जी ॥ उपाडीने मंदिर खाणी, नयण धवन थयां श्वत जी ॥ ४ ॥ पू० ॥ अंगो अं ग महाविष व्याप्युं, गारुडविद्या जाण जी ॥ ते सहु ते डाव्या राजवीएं, जे कुंमरी प्राणजी ॥ ५॥ पूणा म
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