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(३३)
लाप ॥ ए कोण नारी शेवजी रे,सुरकन्या गुण व्याप रे ॥ ११॥ब० ॥ शेठ कहे स्वामी सुणो रे, चंकी सही एह ॥ नारी एहनी स्वामिनी रे, सुंदर सुगुण सनेह रे ॥ १२॥ब० ॥तुम यादेशे माहरी रे,थाये एद कलत्र ॥ बोली तास मदालसा रे, नाखे किश्यु अखत्र रे ॥१३॥ब० ॥राजा आगल पापीयो रे, नांखे एह अलीक ॥ राजा जो न्यायो दुवे रे, तो तु जलावे नीक रे॥१४॥ब० ॥ निर्लज गुंताजे न ही रे, जपतो बालपंपाल ॥ कहे जिनहर्ष पूरी थई रे,तेरमी ढाल रसाल रे ॥१५॥बासर्वगाथा॥२७॥
॥ दोहा ॥ ॥ लाज करी कुमरी कहे, वयण राय अवधार ॥ मुज पतिने एवं पापीयें, नारख्यो समुश्मजार ॥ १ ॥ राय सुणी कोपें चड्यो, घाल्यो कारागार ॥ माल पां च सय पोतनो, मूक्यो निजनंमार ॥ २ ॥ सानल पुत्री नृप कहे, रहे तुं मुज आवास ॥ पुत्री मुज ति लोत्तमा, रहे तुं तेहनी पास ॥३॥ बेहेन तेह नेता हरे, सखी तणे परिवार ॥ सुखें समाधे रहे सदा, चिंता दूर निवार ॥ ४ ॥ दीन नणी तुं दान दे, डोडि
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