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लस्युं रे, नाम सुणी हरख्यो ततकाल रे || पुण्य तो ते मुजने मले रे, ए जिनदर्ष शोलमी ढाल रे ॥ १ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ वली मनमांहे चिंतवे में फोगट धरयो राग ॥ कि हां ते नारी मदालसा, रूपकला सोनाग ॥ १ ॥ समु इदत्त लेइ गयो, पापी मुजने नाखि ॥ जिहां होये ति दां जइ मलुं, पण दैव न दोधी पांख ॥ २ ॥ ए सु ख लीलासाहेबी, ए नारी ए राज ॥ पण नही ना री मदालसा, तो ए सुख कि काज ॥ ३ ॥ दश्डामां ह मदालसा, मुख न जणावे वात ॥ माणे नारी त्रिलो चना, सुख विलसे दिन रात ॥ ४॥ सुख दुःख न क हे केहने, जे नर उत्तम होय ॥ संगतें नरम गमाय वो, वाट न लेवे कोय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ श्रेणिकमन चरिज ययुं ॥ए देशी ॥ ॥ एए अवसर तिहां सांनलो, घागल जे उपगारो रे ॥ मध्यान्हें जिन पूजवा, जिनगृढ़ गयो कुमारो ॥ १ ॥ ० ॥ करे विचार त्रिलोचना, वार घणी थर खाजो रे ॥ प्रीतम हजीयन यावियो, किशें विल व्या काजो रे || २ || दासी मूकी देहरे, प्रीतम नरति लहाय रे ॥ सधजे दो जोयुं फरी, पण लाघो
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