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( ३ )
हय गय रथ पायक जंमार, विजव तपो लाने नह । पार ॥ ७ ॥ राणी जेहने लह्मोवती, बुद्धिमंत जा ऐ सरस्वती ॥ रूपें जीती जेणें अपठरा, नमणी ख मणी जाणें धरा ॥ ८ ॥ चनसह नारी कलानिधि जाण, हंस हरायो गति पिक वा ॥ जेहनुं वपु दे ख। उल्लस्या, उत्तम गुण यावीन वस्या || || जोगव तां सुख लीजविलास, शुभ मुहूरत सुत खायो ता स ॥ उत्तम गुण देखी अनिराम, उत्तमचरित्र दियं तस नाम ॥ १० ॥ बीज चंदनी परें कुमार, दिन दि न वाधे कलाविस्तार || दीवो सदुनें खावे दाय, पूरव पुण्य तणे सुपसाय ॥। ११ ॥ बालपणे पण दया वि शाल, न करे केदने हरबर मार ॥ सत्यवादी मुख ख मृतवाण, न्यायवंत बहु गुरानो खाण ॥ १२ ॥ श स्त्र शास्त्रनी शीखी कला, धर्मशास्त्र शीख्यां निर्मला ॥ न लीये जेह यदत्तादान, परस्त्री जाणे बेहेन समा न ॥ १३ ॥ जगति करे जिनवरनी घणी, गुरुनी नग ति करे सुख जणी ॥ एहवो कुमर गुणें सुकमान कहे जिनदर्ष प्रथम यर ढाल ॥ १४ ॥ सर्वगाथा ॥ २३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ कना बहोंतेर जे एया, पंमितनाम धराय ॥
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