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(१७)
लह्यो, फल्यो थकालें अंब ॥ ३ ॥ जल काढी नाजन नखां, हवे कुमर तेणि वार ॥ कूपनीतमां बार', म णि सोपानुं दार ॥ ४ ॥ देखी मनमां चिंतवे, नाग्य परीक्षा काज ॥ हूँ परदेशे निसखो, बोडी घरनुं राज ॥५॥ चित्रकूट स्वामी तगुं, ते पण न लियुं राज ॥ मूकाव्या राक्सथकी, लोकांतणा समाज ॥ ६ ॥ पा पी में की, प्रगट,सांप्रत कूप मजार ॥ तृषा गमाव। लोकनी, कोधो ए उपकार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ माहाविदेह क्षेत्र सो
हामणुं ॥ ए देशी॥ ॥ कौतुक जोवा कौतुकी, चाल्यो चतुर सुजाण लाल रे ॥ वाट बांधी रे वारु चोरसें, कोजें कहां व खाण लाल रे॥१॥ कौ ॥ मणिसोपान सोहाम णां, कंचनमय प्रासाद लाल रे ॥ पागल कुमर नि हालियुं, देखी थयो आल्हाद लाल रे ॥ ॥को॥ बेनी पहेली भूमिका, वृदा नारी एक लाल रे॥ जइ ने तिहां ननो रह्यो, बोली घाणी विवेक लाल रे॥ ॥ ३ ॥ कौ० ॥ कां रे मूरख मानवी, होणपुण्य बुद्धि हीण लाल रे ॥ नूलो याव्यो जमघरें, धाक थडे कोण लाल रे ॥ ४ ॥ कौ० ॥ कानेही नवि सा
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