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( १७ )
जल्यो, चमरकेतु किनास लाल रे ॥ कुमर कहे हुं उ लखु, में जीत्यो बे तास लाल रे ॥ ५ ॥ कौ० ॥ पूढं तुजने मावडी, केहनो ए प्रासाद लाल रें ॥ तुं कोण केम बेठी इहां, कहे मूकी विखवा द लाल रे ॥ ६ ॥ कौ० ॥ वचन सुणी बलवंतनां, वृक्ष कहे सुण वीर लाल रे ॥ तुं सत्यवंत शिरोम पि, दीसे गुणगंजीर लाल रे ॥ ७ ॥ कौ० ॥ राक्षस द्वीप इहां टूकडो, लंका नयरी ईस लाल रे ॥ जमर केतु राक्षस बजी, राज्य करे अवनीश लाल रे ॥ ८ ॥ ॥ कौ० ॥ कन्या तास मदालसा, सयल कलानी जाण लाल रे || लक्षण अंगें शोनतां, रूपें रति पिकवाय लाल रे ॥ ए ॥ कौ० ॥ देवकुमरीने सारिखी, एहवी नहिं कोई अन्य लाल रे ॥ राय जणी वाल्ही घणुं, पोतें पुष्य अगस्य लाल रे ॥ १० ॥ कौ० ॥ भ्रमर के तु नृप एकदा, नैमित्तिक पूबेह लाल रे ॥ मुज कन्या वर कोण होशे, कहे विचारी तेह लाल रे ॥ ११ ॥ 11 कौ० ॥ एहने वर नूचर होशे, कृत्रिय राजकुमा र लाल रे ॥ हिमवंत सीमा राज्यनी, दक्षिणलंका धार लाल रे लाल रे ॥ १२ ॥ कौ० ॥ महाराजाधि राजा होशे, दल बल जास पार लाल रे ॥ विद्या
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