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(१६) सनो जय होय ॥ ५ ॥ कु० ॥ एहवो कोई बलवं त रे, पेशी कूवामांहे ॥ नीर करे कोई मोकलुं रे, सदुने करे उत्साह ॥ १०॥ कु०॥ केणही वचन न मानियुं रे,कुमर थयो दुशीयार ॥ वारे शेव कुमारने रे, ताहरो आधार ॥ ११ ॥ कु० ॥ कूवामां पेशी क री रे, ढुं करूं मुगतुं नीर ॥ लोकतृषाकुल सदु म रे रे, तेणें मुज मन दिलगोर ॥ १२ ॥ कुछ ॥ रकु विलंबी उतस्यो रे, कूवामांहे कुमार ॥ सात्विक चक्र वर्ति सारिखो रे, लोक तणो अाधार ॥ १३॥ कु०॥ पण कंचननी जातिका रे, नपर ले धनिराम ॥जा॥ विमाथी जल जयुं रे, दीतुं नयणे ताम ॥१४॥कुछ
चतुर विचारे चित्तमा रे, उत्तमचरित्र कुमार ॥ कहे जिनहर्ष थयु इयु रे, बही ढाल मकार ॥ १५ ॥ ॥ कु०॥ सर्वगाथा॥ १३ ॥
॥दोहा॥ ॥ अहो अहो अचरिज इश्यु, किणें निपायुं एह। कनक कंबानी जालिका, देखी ननसे देह ॥१॥न रि परि कीधी कुमर, जाली कंबा तेह ॥ जल भारग कीयो प्रगट, लोकां नणी कहेह ॥ २ ॥ जल काढो गाढा थइ, म करो हवे विलंब ॥ तृषामांहे अमृत
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