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॥ कु०॥ के वाहण चडी चालिया, कुमर एकाकी वीरो रे॥ सत्त्ववंत उपगारियो,सदु मूकाव्या सधारो रे॥ १७॥ कुणा राहलयुं यु मामियु, उत्तम चरित्र कुमार रे॥ कहे जिनहर्ष कुमर लड्यो, त्रीजी ढा ल महारो रे ॥ १७ ॥ कुछ ॥ सर्वगाथा ॥ ६ ॥
॥दोहा ॥ ॥ यु६ करतां जीत्यो कुमर,हायो असुर पलाद ॥ सैन्य सहित नासी गयो, ऐ ऐ पुस्य प्रसाद ॥ १॥कु मर सिंधुतट बावियो,खेडी गया जिहाज ॥ चतुर चि त्तमां चिंतवे, लोकमांहे नहीं लाज ॥२॥ में बोडा व्या सदु नणी,कीधो में उपकार ॥ सदुने राख्या जी वता, कृतघ्नी थया अपार ॥ ३ ॥ मुजने मूकीने ग या, जरदरिया मकार ॥ सदुको आपसवारथी,खोटो ए संसार ॥ ॥ मुख मीठा जूठा हिये, रखे पतिजो कोय॥ जसु कीजें नपगारडो,सो फरी वैरी होय ॥५॥
॥ ढाल चोथा ॥ अलबेलानी देशी॥ ॥ कुमर विचारे चित्तमां रे लाल, लोक तणो श्यो दोष ॥ नपगारीरे॥जय व्याकुल न खमी शक्या रेलाल, राक्षस केरो रोष॥ नपगारी रे॥१॥॥ज न्मांतर कीयां होशे रे लाल, में केश विरुषां पाप ॥
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