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________________ ॥ कु० ॥ तुं जगबंधव जगधणी, तुं जग दीन दया लो रे ॥ तुं जगतारक जगपति, करुणावंत कृपालो रे॥७॥ कु० ॥ श्री जिनराज जुहारीने, थायो साय र तोरो रे ॥ एणे अवसर व्यवहारियो, कुबेरदत्त स धीरो रे ॥ ए ॥ कु०॥ नूरि वाहण तेणें पूरियां, म गधदीप नणी बायो रे ॥ अष्टादश जोजन सयां,लें सुनट सखायो रे ॥१० ॥ कु० ॥ कुमर नमरप ए कौतुकी, कुबेरदत्त संघातो रे ॥ वाहण बेगे जो यवा, वारिधि ख्याल विख्यातो रे ॥११॥कु॥ वाह ए चाल्यां शुन दिने, शकुन ले श्रीकारो रे । केट लेक दिवसें गये, खूटयो वारि विचारो रे ॥१२॥ ॥ कु० ॥ शून्य होप जलकारणे, लोकें वाहण ढोयां रे ॥ सहु उतरिया जहाजथी,जलनां स्थानक जोयां रे ॥ १३ ॥ कु० ॥ लोक संग्रह जलनो करे, हवे ते ऐ दीप मजारो रे ॥ भ्रमरकेतु रादस रहे, निर्दय क्रूर अपारो रे ॥ १४ ॥ कु० ॥ सहससेंती परिव खो, याव्यो तिहां कृतांतो रे ॥ जाव्या लोक सहू तेणे, थया मनमां नयनांतो रे ॥ १५ ॥ कु०॥ के नर जाल्या काखमां, केश नर जाल्या हाथो रे ॥ केश पगमांहे चांपी रह्यो, नाग के अनाथो रे ॥ १६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003250
Book TitleUttam Charitra Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinharshsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1886
Total Pages76
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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