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थइ वजमाल रे ॥ जिनदर्ष दीधी मुनिदेशना, ठा वीशमी ए ढाल रे ॥ १४॥ ए॥ सर्वगाथा ॥ ५६३ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ दीधी एणि परें देशना, सांगली सहुको लोक ॥ परम प्रमोद थयो हवे, रवि दर्शन जेम कोक ॥ १ ॥ राजा पूढे मुनि प्रतें, विनय कर कर जोड | भगवन् के कर्मे करी, पामी संपद कोड ॥ २ ॥ सायर मां केम पढ्यो, मैनकघर रह्यो केम ॥ शुक थइ ग णिका घर रह्यो, कहो मुजने थयो जेम ॥ ३ ॥ केवल ज्ञानी मुनि कहे, सनिल राय सुजाण ॥ कीधां कर्म न बूटियें, जोगवियें निरवाण ॥ ४ ॥ जे जेहवां कीजें कर्म, तेथी फल प्रापत्त ॥ पूरवजव मुख्य ताहरो, ल हि संपत्त विपत्त ॥ ५ ॥
॥ ढाल उगणत्रीशमी ॥ पास जिणंद जुहारियें || ए देशी ॥
॥ सुण राजा केवली कहे, हिमवंत भूमि सुवि शालो रे || सुदत्तग्रामा नामें जलो, धनधान्य समृद्धि रसालो रे ॥ १ ॥ सु० ॥ धनदत्त कौटुंबिक वसे, ते चार वधू जरतारो रे || पहिलां इव्य हतुं घणुं, कालें गयो धनविस्तारो रे ॥ १ ॥ सु० || दारिनो पासो थ
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