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दार निवें दुवे जी, एहोनो शो दोष ॥ कहे जिनह बावीशमी जी, ढालें नृप मनरोष ॥ १४ ॥ न० ॥ ॥ दोहा ॥
॥ मूकुं नहीं ए जीवता, एहनी करवी घात ॥ जाल्यो नहीं एणें एटलो, रायतणो जामात ॥ १ ॥ एक घर माकण परिहरे, न करे तास विनाश ॥ मु ज घरथी ए नवि टयां, बेनो करवो नाश ॥ २ ॥ वि नय करी नृपने कहे, उत्तमचरित्र कुमार ॥ महा राय जवितव्यता, करवो एह विचार ॥ ३ ॥ वांक न कां शेठनो, मालिसी नहीं कां वांक ॥ टले नही जे विधि लख्या, सुख दुःखना शिर यांक ॥ ४ ॥ इं 5 चंद नागेंड् नर, मोहोटा जेह मुलिंद ॥ कियां कर्म सदु जोगवे, बूटे नही नरिंद ॥ ५ ॥ किशुं कीजें श्रमणो, किशुं कीजें रोष || केहनो दोष न का ढियें, कर्मतणो ए दोष ॥ ६ ॥
॥ ढाल त्रेवीशमी || मोरियाना गीतनी ॥ देश ॥ राये राणा रमे रंकुखा ॥ ए देशी ॥ ॥ पाय पडी नृप तणे रे कुमार, विनति करीय समजाविया जी ॥ एहनुं कीधुं पामशे एद, शेठ मा aण वे मेल्हावियां जी ॥ १ ॥ शेठनुं सहु धन
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