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ग प्रहार ॥ ० ॥ १७ ॥ कुणी कुमर जणी बीही व राववा रे लाल, रूप कीधुं विकराल ॥ ० ॥ कहे जिन हर्ष सुणो हवे रे जाल, ए चोथी यइ ढाल ॥ उ० ॥ || कु० ॥ १८ ॥ सर्वगाथा ॥ ९२ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ काढी खड़ कहे सुरी, कांरे मरे निटोल ॥ हितका रण तुजने कहुं, मान मान सुज बोल ॥ १ ॥ मुत्रा मां कां नथी, जीवंतां कल्याण ॥ शुं जाये वे ताहरु, करेज खांचाता ॥ २ ॥ कुमर कहे कर जोडिने, सां जल मोरी माय ॥ मुजथी एवं नवि होवे, क्यारें ए अन्याय || ३ || सुधापानथी जो मरे, चं पडे थं गार ॥ तो पण हुं परनारीने, न करूं अंगीकार ॥ ४ जो जाऐ तो मार तुं, जो जाये तो तार ॥ बागल पाउल सहु जणी, मरतुं वे एकवार ॥ ५ ॥
॥ ढाल पांचमी ॥ बहेनी रही न सकी तिसेंजी ॥ ए देशी ॥
॥ साहस देखी तेहनुं जी, देखी शील उदार ॥ व तमगुण देखी करी जी, देवी कहे तेणि वार ॥ १ ॥ सनूणा ॥ धन धन तुज अवतार ॥ तुज सरीखो कोइ नहीं जी, जोतां एणे संसार ॥ स० ॥ ध० ॥ ए यां
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