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________________ (५२) मनमां चिंतवे, ए झुं थयुं वृत्तंत ॥ २ ॥ मनुष्य थकी तिर्यंच थयो, में श्यां कीयां पाप ॥या नव तो नवि सांगरे, शे पाम्या संताप ॥३॥ हा हा जाम्यं में हवे, पिता अदीधी नार ॥ परणी कुमरी मदाल सा, पांच रतन ग्रह्यां सार ॥ ४ ॥ए बे पाप कियां इहां, तेथी मश्यो जुयंग ॥ वली आव्यो वेश्याघरे, नरथी थयो विहंग ॥ ५॥ एतो पाप तणा कुसुम, फल पागमशुं प्रमाण ॥ तो नरकें पडवं सही, ए मनिंदे अप्पाण ॥६॥ ॥ ढाल बावीशमी ॥ साधुजी जलें पधा स्या बाज ॥ ए देशी॥ ॥ अनंगसेनाना रागथी जी, रह्यो तिहां एक मा स॥ मेल्ही उघाडं पांजलं जी, गई किण काज विमा स॥ १॥ नरेशर सांजल एह विचार ॥ अचरिजनो अधिकार, सुणतां हर्ष अपार ॥ न० ॥ पडहतणी उदघोषणाजी, सांगली नगर मोकार ॥ तिहाथी न डी यावियो जी, पडह बन्यो तेणि वार ॥॥न॥ ते राजन ढुं सूवटो जी, में सदु कह्यो विचार ॥ रा जा एवं सांजली जी, हर्षित थयो अपार ॥३॥ ॥न ॥ पगथी दोरो बोडियो जी, कुमर थयो तत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003250
Book TitleUttam Charitra Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinharshsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1886
Total Pages76
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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