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(५०) ॥ ढाल एकवीशमी ॥ वैरागी थयो॥ ए देशी॥
॥राये चाकर मोकल्या रे, जोवा गणिकारे गेह ॥ जजोजो घर तेहनुं रे, कुमर न दोतो तेहो रे ॥ ॥१॥ए युं शुक कह्यु, वेश्या घर केम जायो रे, उत्तम नरथकी, एतो काम न थायो रे॥॥ ए॥ ताहरा घरमां सांजल्यो रे, उत्तम चरित्र कुमार ॥ तें राख्यो ले कहे किव्हां रे, साचं बोल गमार रे ॥३॥ ॥ ए॥ गुंजाणुं रे नाश्यो रे, कुमर तणी ढुं सार ॥ राय जमाई माहरे रे, शेावे आगारो रे॥४॥ए॥ घर खोली जोवो तुमें रे, शो नम राखो रे आम ॥ हाथ तणा कांकण नणी रे,शारीसो झुं काम रे ॥ ॥ ५ ॥ ए० ॥ जो पाना बाविया रे, नृपने कर्यु त तांत ॥ कुमर नहीं गणिका घरें रे, राजा थयो सचिं तरे॥ ६॥ ए॥ गहन वीत नवि जाणियें रे, ने को
देव चरित्र ॥राय कहे शुकरायने रे, किशुं पजा वे मित्तरे ॥ ७॥ ए॥ तुजविण निरत न का पडे रे, कहे किहां मुज जामात ॥ किस्युं गुमानी थइ रह्यो रे, कहेने साची वातो रे ॥ ७॥ ए० ॥ सूडो कहे राजन सुणो रे, धूरत जाण्यो रे तुज ॥ बालक जेम नोलावियो रे, तेम नोलाव्यो मुज रे ॥ ए ॥ ए॥
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