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(२०) जीदो चढियो क्रोध थपार ॥ ॥ लं० ॥ जोहो न मरकेतु नाखे वली,जोहो केम जाणीजें तेह ॥जीहो नाखे ताम निमित्तियो, जीहो सोनल नृप सुसनेह ॥३॥ तं ॥ जोहो जांत्रिक जन नखवा नणी, जी हो तुं गयो दीपमजार ॥ जोहो तुजने जीत्यो एकले, जोहो ते नर तुं अवधार ॥॥॥ जीहो मास एक थयो तेहने, जोहो सांजली चडियो क्रोध ॥ जीहो रा
सदल मेली करी, जोहो दणवा गयो ते जोध ॥५ ॥ ॥ जोहो आगल युं थाशे हवे, जीहो ते जा णे जगदीश ॥ जीहो कुमर विचारे ते सही,जीहो रा दस तणो अधीश ॥ ६ ॥ ॥ जोहो एतो में जा एयो हवे, जीहो मुज वैरीनुं गम ॥ जीहो घाट वाट रोकी रह्यो,जीहो मुज मारेवा काम ॥७॥ ॥जीहो कूड कपट मायावीनी,जीहो ए रादतनी जात ॥ जी हो जतन करी रहेवू इहां, जोहो प्रगट न करवी वा त ॥॥ २० ॥ जोहो कुम। ताम मदालसा, जीहो रूप कला नंमार ॥ जीहो देवजुवनथी उतरी, जोहो जाणे देवकुमारि ॥ालं॥जीहो कुमररूप देखी क रो,जीहो मोही कुमरी ताम॥ जोहो वदन कमल जो रही, जोहो जेम दालिसी दाम ॥ १०॥ ॥जी
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