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(२३)
॥ दोहा॥ ॥ नारी वयण सुणी करी, प्रमुदित थ कुमार ॥ कूयार्थनें बांधियु, नीररतन तेणि वार ॥१॥ मेघट ष्टि दुश् तुरत, सद जयां जलपात्र लोक खुशी सदु को थयां, शीतल कीयां गात्र ॥॥ पांचे रतन प्र नावथी, विविध किया उपगार ॥ लोक सदु सेवा क रे, गुण मोहोटो संसार ॥ ३ ॥ गुण पूजाए लोक मां, गुणने सादर थाय ॥राजा परजा गुणथकी, स दुको लागे पाय ॥ ४॥ समुदत्त दीती नयण, नारी रतन एक दीस ॥ कामें व्यामोहित थयो, ऐऐ रू पजगदीश ॥ ५॥
॥ ढाल दशमी॥ करम परीदा करण
कुमर चल्यो रे ॥ ए देशी॥ ॥मनमांहे पापी रे शेत एम चिंतवे रे, एहनी ना रीरे होय ॥ तो हुँ जाणुं रे नव सफलो थयो रे,मु ज सरिखो नहीं कोय ॥ १ ॥ मनमां० ॥ एहवी ना री रे पुरयें पामियें रे, के तूठे जगदीश ॥ पुण्यविण न मिले रे एहवी गोरडी रे, जाणुं विशवावीश ॥ ॥ ॥ म ॥ दाय उपायें रे ए लेवी सही रे, ए वि ण रझुं न जाय ॥ एहवी नारी रे जो दुं नोगतुं रे,
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