________________
( ४५ )
तास कुमर रलियामणो, उत्तम चरित्र दयालो रे ॥१॥ ॥ वा० ॥ रीसावीने नीकल्यो, जमतो जरुव यायो रे ॥ प्रवहण बेसी चालियो, धरतो दर्ष सवायो रे ॥ २ ॥ वा० ॥ गिरिजलकांत समुड् विचें, तिहां कूपकजल जरियो रे ॥ जलकारण मांदे गयो, बारी मां उतरियो रे ॥ ३ ॥ वा० ॥ देवभुवन देखी क री, पेठो मांही कुमारो रे ॥ लंकापति रावणी, पुत्री रति अवतारो रे ॥ ४ ॥ वा० ॥ निरुपम नाम मदा लसा, परणी बाहेर यायो रे ॥ समुइदत्त वाढण चढ्यो, जलविण सदु दुःख पायो रे ॥ ५ ॥ वा० ॥ पंच रत्त सुप्रसादथी, जन जोजन सुख प्राप्यां रे ॥ पर उपगारी एहवो, सदुनां संकट काप्यां रे ॥ ६ ॥ ॥ वा० ॥ स्त्री धन देखी चित्त चयुं, कुलमर्यादा बांकी रे || समुइदत्त व्यवहारियें, नाख्यो जलधि न पाडी रे ॥ ७ ॥ वा० ॥ तिमिंगल तट जइ रह्यो, मै निक तास विदारयो रे || निकलीयो ते जीवतो, मा बी चित्त विचारयो रे ॥ ८ ॥ वा० ॥ ए कोई उत्तम नर अबे, राख्यो तेहने पासें रे । एक दिन पुर जोवा जणी, घाव्या मली उल्लासें रे |||वा ॥ पुत्री राय त्रि लोचना, साप मशी जीवाडी रे ॥ परणी तिहां सुख जो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org