________________
(५३) हाराजा इहां यावशे, पुत्री जेहने परणावशे ॥ ५॥ ॥ पु॥ राय विचारे एह चित्त, धन्य धन्य एह महे श्वरदत्त ॥ पु० ॥ एहवी लक्ष्मीनो जे धणी, वैराग्ये ते हने अवगणी॥३॥ पु० ॥ दे जमाइने घर सार, पोतें लेशे संजम जार ॥ पु० ॥ हुँ पण त्रिलोचना जरतार, शुरू करी द्यं राजनंमार ॥४॥पु०॥ दीदा ले धातमकाज, सारूं जेम पामुं शिवराज ॥ पु० ॥ महेश्वरदत्तगुं कियो विचार, पापण थारां दीक्षा धार ॥ ५ ॥ पु० ॥ पडदो नगर फेराव्यो राय, परदे शीसें देशी थाय॥पु०॥ त्रिलोचनावर निरति कहे, म दालसा विरतंत जे लहे॥६॥पु॥ तेहने राजा थापे राज, सहस्रकला कन्या शिरताज ॥पु०॥ पडहो नगर निरंतर फरे, एहवां वचन मुखें उच्चरे ॥ ७॥ पु० ॥ मास एक दु जेटते, पडह बन्यो पोपट तेटले ॥ ॥ पु० ॥ सूडो कहे वचन तेणि वार, नो नो राज पुरुष अवधार ॥ ७ ॥ पु० ॥ लेजा मुज राज उवा र, राय जमा कहुँ विचार ।। पु० ॥ मदालसा पति नी कहुं शुद्धि,पूर्व वृत्तांत कहूँ मुज बुदि॥ ए॥ पु०॥ तुमने वात कहुँ हुँयाज, कन्या सहस्रकला लडं रा ज ॥ पु० ॥ पंखानु पण जाग्युं नाग्य, नहीतो मुज
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org