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Index
Topics
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1. Introduction to Vastu ............
Selection of Land ........ 3. Residential Vastu ....... 4. Interior Decoration 5. Commercial Vastu Reception 6. Commercial Vastu 7. Vastu Remedial Method ....... 8. Muhurat Vichar
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VIIICL
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अध्याय -1
1. Introduction to Vastu
वास्तु (विज्ञान) शास्त्र का परिचय, आकाश, वायु, अग्नि तेज, जल, पृथ्वी। वास्तु (विज्ञान) शास्त्र का परिचय : ब्रह्मांडीय ऊर्जा अथवा वास्तु ऊर्जा का प्रभाव एवं केंद्रीयकरण। आदि काल से हिंदू धर्म ग्रंथों में चुंबकीय प्रवाहों, दिशाओं, वायु प्रभाव, गुरुत्वाकर्षण के नियमों को ध्यान में रखते हुए वास्तु शास्त्र की रचना की गयी तथा यह बताया गया कि इन नियमों के पालन से मनुष्य के जीवन में सुख-शांति आती है और धन-धान्य में भी वृद्धि होती है। वास्तु वस्तुतः पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि इन पांच तत्वों के समानुपातिक सम्मिश्रण का नाम है। इसके सही सम्मिश्रण से 'बायो-इलेक्ट्रिक मैग्नेटिक एनर्जी' की
उत्पत्ति होती है, जिससे मनुष्य को उत्तम स्वास्थ्य, धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। मानव शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है, क्योंकि मानव शरीर पंच तत्वों से निर्मित होता है और अंततः पंच तत्वों में ही विलीन हो जाता है। जिन पांच तत्वों पर शरीर का समीकरण निर्मित और ध्वस्त होता है, वह निम्नानुसार है।
आकाश + अग्नि + वायु + जल + पृथ्वी = निर्माण क्रिया देह या शरीर-वायु-जल-अग्नि-पृथ्वी-आकाश = ध्वंस प्रक्रिया
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मस्तिष्क में आकाश, कंधों में अग्नि, नाभि में वायु, घुटनों में पृथ्वी, पादांत में जल आदि तत्वों का निवास है और आत्मा परमात्मा है, क्योंकि दोनों ही निराकार हैं। दोनों को ही महसूस किया जा सकता है। इसी लिए स्वर महाविज्ञान में प्राण वायु आत्मा मानी गयी है और यही प्राण वायु जब शरीर (देह) से निकल कर सूर्य में विलीन हो जाती है, तब शरीर निष्प्राण हो जाता है। इसी लिए सूर्य ही भूलोक में समस्त जीवों, पेड़-पौधों का जीवन आधार है; अर्थात् सूर्य सभी प्राणियों के प्राणों का स्रोत है। यही सूर्य जब उदय होता है, तब संपूर्ण संसार में प्राणाग्नि का संचार आरंभ होता है, क्योंकि सूर्य की रश्मियों में सभी रोगों को नष्ट करने की शक्ति मौजूद है। सूर्य पूर्व दिशा में उगता हुआ पश्चिम में अस्त होता है। इसी लिए भवन निर्माण में 'ओरिएंटेशन' का स्थान प्रमुख है। भवन निर्माण में सूर्य ऊर्जा, वायु ऊर्जा, चंद्र ऊर्जा आदि के पृथ्वी पर प्रभाव प्रमुख माने जाते हैं। यदि मनुष्य मकान को इस प्रकार से बनाए, जो प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप हो, तो प्राकृतिक प्रदूषण की समस्या काफी हद तक दूर हो सकती है, जिससे मनुष्य प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों को, भवन के माध्यम से, अपने कल्याण के लिए इस्तेमाल कर सके। पूर्व में उदित होने वाले सूर्य की किरणों का भवन के प्रत्येक भाग में प्रवेश हो सके और मनुष्य ऊर्जा को प्राप्त कर सके, क्योंकि सूर्य की प्रातःकालीन किरणों में विटामिन-डी का बहुमूल्य स्रोत होता है, जिसका प्रभाव हमारे शरीर पर रक्त के माध्यम से, सीधा पड़ता है। इसी तरह मध्याह्न के पश्चात् सूर्य की किरणें रेडियधार्मिता से ग्रस्त होने के कारण शरीर पर विपरीत (खराब) प्रभाव डालती हैं। इसी लिए भवन निर्माण करते समय भवन का 'ओरिएंटेशन' इस प्रकार से रखा जाना चाहिए, जिससे मध्यांत सूर्य की किरणों का प्रभाव शरीर एवं मकान पर कम से कम पड़े। दक्षिण-पश्चिम भाग के अनुपात में भवन निर्माण करते समय पूर्व एवं उत्तर के अनुपात की सतह को इसलिए नीचा रखा जाता है, क्योंकि प्रातःकाल के समय सूर्य की किरणों में विटामिन डी, एफ एवं विटामिन ए रहते हैं। रक्त कोशिकाओं के माध्यम से जिन्हें हमारा शरीर आवश्यकतानुसार विटामिन डी ग्रहण करता रहे। यदि पूर्व का क्षेत्र पश्चिम के क्षेत्र से नीचा होगा, अधिक दरवाजे, खिड़कियां आदि होने के कारण प्रातःकालीन सूर्य की किरणों का लाभ पूरे भवन को प्राप्त होता रहेगा। पूर्व एवं उत्तर क्षेत्र अधिक खुला होने से भवन में वायु बिना रुकावट के प्रवेश करती रहे और चुंबकीय किरणें, जो उत्तर से दक्षिण दिशा को चलती हैं, उनमें कोई रुकावट न हो और दक्षिण-पश्चिम की छोटी-छोटी खिड़कियों से धीरे-धीरे वायु निकलती रहे। इससे वायु मंडल का प्रदूषण दूर होता रहेगा।
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दक्षिण-पश्चिम भाग में भवन को अधिक ऊंचा का प्रमुख कारण तथा मोटी दीवार बनाने तथा सीढ़ियों आदि का भार भी दिशा में रखना, भारी मशीनरी, भारी सामान का स्टोर आदि भी बनाने का प्रमुख कारण यह है कि जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा दक्षिणी दिशा में करती है, तो वह एक विशेष कोणीय स्थिति में होती है। अतः इस क्षेत्र में अधिक भार रखने से संतुलन आ जाता है तथा सूर्य की गर्मी इस भाग में होने के कारण उससे इस प्रकार बचा भी जा सकता है। गर्मी में इस क्षेत्र में ठंडक तथा सर्दियों में गर्मी का अनुभव भी किया जा सकता है। दक्षिण-पश्चिम में कम और छोटी-छोटी खिड़कियां रखने का प्रमुख कारण है गर्मियों में ठंडक महसूस हो सके, क्योंकि भूखंड क्षेत्र के दक्षिण-पश्चिम में खुली हवा तापयुक्त हो कर सर्दियों में विशेष दबाव से कमरे में पहुंच कर कमरों को गर्म करती है। यह हवा रोशनदान एवं छोटी खिड़कियों से भवन में गर्मियों में कम ताप से युक्त अधिक मोलीक्यूबल दबाव के कारण भवन को ठंडा रखती है और साथ ही वातावरण को शुद्ध करने में सहायता पहुंचाती रहती है। आग्नेय (दक्षिण-पूर्वी) कोण में रसोई बनाने का प्रमुख कारण यह है कि सुबह पूर्व से सूर्य की किरणें विटामिन युक्त हो कर दक्षिण क्षेत्र की वायु के साथ प्रवेश करती हैं। क्योंकि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा दक्षिणायन की ओर करती है, अतः आग्नेयकों की स्थिति में इस भाग को अधिक विटामिन 'एफ' एवं 'डी' से युक्त सूर्य की किरणें अधिक समय तक मिलती रहे, तो रसोई घर में रखे खाद्य पदार्थ शुद्ध होते रहेंगे और इसके साथ-साथ सूर्य की गर्मी से पश्चिमी दीवार की नमी के कारण विद्यमान हानिकारक कीटाणु नष्ट होते रहते हैं। उत्तरी-पूर्वी भाग ईशान कोण में आराधना स्थल या पूजा स्थल रखने का प्रमुख कारण यह है कि पूजा करते समय मनुष्य के शरीर पर अधिक वस्त्र न रहने के कारण प्रातःकालीन सूर्य की किरणों के माध्यम से शरीर में विटामिन 'डी' नैसर्गिक अवस्था में प्राप्त हो जाती है और उत्तरी क्षेत्र से पृथ्वी की चुंबकीय ऊर्जा का अनुकूल प्रभाव भी पवित्र माना जाता है। अंतरिक्ष से हमें कुछ अलौकिक शक्ति मिलती रहे, इसी लिए इस क्षेत्र को अधिक खुला रखा जाता है। उत्तर-पूर्व में आने वाले पानी के स्रोत का प्रमुख आधार यह है कि पानी में प्रदूषण जल्दी लगता है और पूर्व से ही सूर्य उदय होने के कारण सूर्य की किरणें जल पर पड़ती हैं, जिसके कारण इलेक्ट्रोमेग्नेटिक सिद्धांत के द्वारा जल को सूर्य से ताप प्राप्त होता है। उसी के कारण जल शुद्ध रहता है। दक्षिण दिशा में सिर रखने का प्रमुख कारण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का मानव पर पड़ने वाला प्रभाव ही है। जिस प्रकार चुंबकीय किरणें उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की तरफ चलती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में जो चुंबकीय क्षेत्र हैं, वह भी सिर से पैर की तरफ होता है। इसी लिए मानव के सिर को उत्तरायण एवं पैर को दक्षिणायन माना जाता है। यदि सिर को उत्तर की ओर रखें
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तो चुंबकीय प्रभाव नहीं होगा, क्योंकि पृथ्वी के क्षेत्र का उत्तरी ध्रुव मानव के उत्तरी पोल ध्रुव से घृणा करेगा और चुंबकीय प्रभाव अस्वीकार करेगा, जिससे शरीर के रक्त संचार के लिए उचित और अनुकूल चुंबकीय क्षेत्र का लाभ नहीं मिल सकेगा, जिससे मस्तिष्क में तनाव होगा और शरीर को शांतिमय (पूर्वक) निद्रा का अनुकूल अवस्था प्राप्त नहीं होगी। सिर दक्षिण दिशा में रखने से चुंबकीय परिक्रमा पूरी होगी और पैर उत्तर की तरफ करने से दूसरी तरफ भी परिक्रमा पूरी होने के कारण चुंबकीय तरंगों के प्रभाव में रुकावट न होने से अच्छी नींद आएगी। चुंबकीय तरंगें उत्तर से दक्षिण दिशा को जाती हैं। अगर किसी भी मनुष्य से व्यापारिक चर्चा करनी हो, तो उत्तर की ओर मुंह कर के ही चर्चा करें। इसका प्रमुख कारण यह है कि उत्तरी क्षेत्र से चुंबकीय ऊर्जा प्राप्त होने के कारण मस्तिष्क की कोशिकाएं तुरंत सक्रिय होने से जो शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त होती है, उससे मस्तिष्क की कोशिकाओं के माध्यम से याददाश्त बढ़ जाती है, नैसर्गिक ऊर्जा शक्ति के साथ परामर्श करने वाली मस्तिष्क की ग्रंथियां अधिक सक्षम बन जाती हैं। इसी लिए इस दिशा में की जाने वाली व्यापारिक चर्चाएं अधिक महत्व रखती हैं। मनुष्य को चाहिए कि यदि उत्तर में मुंह कर के बैठे, तो अपने दाहिने तरफ चेक बुक आदि रखे। यदि मनुष्य मकान बनाए, तो मकान के चारों ओर खुला स्थान अवश्य रखे। खुला स्थान पूर्व एवं उत्तर दिशा में अधिक (यानी सबसे अधिक पूर्व) में, फिर उससे कम उत्तर में तथा उत्तर दिशा से भी कम दक्षिण दिशा में (और दक्षिण दिशा से भी कम) सबसे कम पश्चिम दिशा में रखे। इससे सभी दिशाओं से वायु का प्रवेश होता रहेगा। वायु का निष्कासन होने के कारण वायु मंडल शुद्ध रहता है। इससे गर्मी में भवन ठंडा एवं सर्दियों में भवन गर्म रहता है, क्योंकि वायु मंडल में अन्य गैसों के अनुपात में ऑक्सीजन की कम मात्रा होती है। यदि भवन के चारों ओर खुला स्थान है, तो मनुष्य को हमेशा आवश्यकतानुसार प्राण वायु (ऑक्सीजन) एवं चुंबकीय ऊर्जा का लाभ मिलता रहेगा। इसके अलावा वायु मंडल और ब्रह्मांड में काफी मात्रा में अदृश्य शक्तियां एवं ऐसी ऊर्जाएं हैं, जिनको हम न देख सकते हैं और न ही महसूस कर सकते हैं तथा जिनका प्रभाव दीर्घ काल में ही अनुभव होता है। इसी को प्राकृतिक ओज (औरा) कहते हैं। जीवित मनुष्य के अंदर और उसके चारों ओर हर समय एक विशेष चुंबकीय क्षेत्र होता है। इसी विशेष चुंबकीय क्षेत्र को हम 'बायोइलेक्ट्रिक चुंबकीय क्षेत्र' भी कहते हैं। इसी लिए दक्षिण-पश्चिम का भाग ऊंचा तथा पूर्व-उत्तर का भाग नीचे रखने से 'बायोमैग्नेटिक फील्ड' के कारण मनुष्य के चुंबकीय क्षेत्र में कोई रुकावट नहीं आएगी। ये
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'बायोइलेक्ट्रोमेग्नेटिक फील्ड' वायु मंडल में वैसे तो बीस प्रकार के होते हैं, परंतु मानव शरीर के लिए चार प्रकार ही (बी. ई. एम. स.) अधिक उपयोगी माना गया है। इसी लिए वास्तु शास्त्र में इन पांच भूतों- पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश एवं वायु- का विशेष स्थान है। मनुष्य को वास्तु शास्त्र के एक सौ पचास नियम बहुत ही बारीकी से अध्ययन कर के अपनाने चाहिएं, क्योंकि भूखंड की स्थिति एवं कोण की स्थिति जानने के बाद वास्तु शास्त्र के सभी पहलुओं का सूचारु रूप से अध्ययन कर के ही भवन निर्माण, औद्योगिक भवन, व्यापारिक संस्थान आदि की स्थापना करें। तभी लाभ मिलेगा। आवासीय तथा व्यावसायिक भवन निर्माण करते समय यदि इन पांच तत्वों को समझ कर इनका यथोचित ध्यान रखा जाए, तो ब्रह्मांड की प्रबल शक्तियों का अद्भुत उपहार हमारे समस्त जीवन को सुखी एवं संपन्न बनाने में सहायक होंगे। इन पांच तत्वों का अलग से विवेचन इस प्रकार है : 1. आकाश (अवकाश) : आसमान एक मौलिक तत्व है, जिससे 'शब्द' की प्राप्ति होती है। आकाश में शून्य होने के कारण तथा पर्यावरण और हवा के माध्यम से (शब्द से) ध्वनि उत्पन्न होती है। आकाश (अवकाश) अर्थात आसमान अनंत है, असीम है और दुर्बोध (अगम्य) है। आकाश में स्थित ऊर्जा की तीव्रता, प्रकाश, लौकिक किरणें, विद्युत चुंबकीय बल, गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों पर भिन्न-भिन्न पायी जाती है। पृथ्वी सौर मंडल का एक महत्वपूर्ण ग्रह है और सूर्य पर हर पल घटित होने वाली घटनाओं का प्रभाव, जाने-अनजाने, पृथ्वी पर होता है। प्रत्येक 10-11 वर्ष के पश्चात् सूर्य पर छोटे या बड़े विस्फोट होते रहते हैं। केवल उस समय में पृथ्वी पर इसके अच्छे या बुरे परिणाम दृष्टिगोचर होते हैं। ब्रह्मांड में तारागणों की अनेक आकाश गंगाएं (तारक पुंज) विद्यमान हैं, जहां हमारे (पृथ्वी के) सूर्य से बड़े सूर्य हैं। प्रत्येक ग्रह अपनी काल गति द्वारा निश्चित अपने ही कक्ष में भ्रमण करता है। इसका कुछ न कुछ गणितीय अर्थ अवश्य होगा? ब्रह्मांड स्थिर है, अतः सभी दिशाएं भी स्थिर हैं। आकाश द्वारा प्रदत्त ध्वनि के उपहार ने हमारे जीवन को समृद्ध बना दिया, दीवार की ऊंचाई से हमें मकान में यथेष्ट आकाश की प्राप्ति होती है। मंदिर-गुरुद्वारे के गुंबज एवं मस्जिद के मेहराब आकाश शक्ति की विपुलता के प्रतीक हैं। मकान की दीवारें छोटी होंगी, तो व्यक्ति को घुटन महसूस होगी। उसके शरीर में भी आकाश तत्व का विकास रुक जाएगा। इसलिए, मकान में यथेष्ट आकाश (space) का रखना चाहिए। 2. वायु (हवा):
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सजीव पदार्थ (प्राणी) वायु से जीवन प्राप्त करते हैं, जिससे पौरुषत्व एवं प्राण शक्ति (चेतनता) जागृत होती है। पृथ्वी पर एक वायु मंडल है, इसी लिए इससे निसृग सृष्टि की उत्पत्ति हुई। पृथ्वी के वातावरण में सर्वाधिक अंश नाइट्रोजन वायु का (78 प्रतिशत) है। नाइट्रोजन वायु सभी वनस्पतियों की वृद्धि के लिए आवश्यक है। वनस्पतियां नाइट्रोजन को प्रत्यक्ष रूप में ग्रहण नहीं करती। उनकी जड़ों पर पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवाणु के माध्यम से ये वनस्पतियां अपनी उन जड़ों से नाइट्रोजन चूसती रहती हैं। वायु मंडल में ऑक्सीजन (प्राण वायु) की मात्रा 21 प्रतिशत है, जो लगभग 1/5 भाग हैं। उपर्युक्त पंचभूतों का एक भाग ऑक्सीजन (प्राण वायु) है। यह ऑक्सीजन सजीव प्राणियों के जीवन का मुख्य स्रोत है। यह ऑक्सीजन जल में भी विद्यमान है, जिसका समीकरण-H,0 अर्थात H = हाइड्रोजन तथा 0 = ऑक्सीजन है। क्योंकि अन्य ग्रहों पर ऑक्सीजन नहीं है, अतः वहां जीवन भी नहीं है। वायु मंडल में कार्बन बहुत अल्प मात्रा में (0.03 प्रतिशत) है। कार्बन मोनोक्साइड (CO) तथा डायऑक्साइड (CO)इन दो स्वरूपों में मिलता है। अधिकतर वनस्पतियां दिन के समय वातावरण में व्याप्त कार्बनडायऑक्साइड का शोषण करती हैं तथा ऑक्सीजन बाहर निकालती हैं। किंतु, रात्रि के समय इसके सर्वथा विपरीत क्रिया होती है, जब वे ऑक्सीजन को चूसती हैं तथा कार्बनडायऑक्साइड को बाहर छोड़ती हैं। कार्बनडायऑक्साइड हमारे शरीर के लिए हानिप्रद है, अतः रात को पेड़ों के नीचे सोना नहीं चाहिए। वास्तु या भवन के ईशान कोने में अत्यंत मंगलदायी (शुभ) अल्ट्रावायलेट किरणें आती रहती हैं। यदि इस कोने में गंदगी रहेगी, तो उससे निकलनेवाली कार्बनडायऑक्साइड, नाइट्रोजन तथा अन्य आवश्यक गैसें उन शुभ लौकिक किरणों को दूषित कर देंगी। भवन के समीप श्मशान नहीं होना चाहिए, क्योंकि मृतक शरीर की दाह क्रिया से निकलने वाली कार्बन तथा अन्य निषिद्ध गैसें मानव जीवन पर बुरा प्रभाव डालती हैं। वातावरण में हीलियम, हाइड्रोजन तथा अन्य गैसों के साथ-साथ आर्द्रता, वाष्प तथा धूलि कण आदि भी मिलते हैं। 'शब्द' और 'स्पर्श' वायु महातत्व के दो विशेष गुण हैं। स्पर्श से संवेदना, संवेदना से चेतना (स्पर्श ज्ञान) और चेतना से प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। प्रतिक्रिया से इसको एक अर्थ (अभिप्राय) मिलता है और वह शुभ-अशुभ फल प्रदान करता है। इनका परिणाम होता है संस्कार उत्पन्न करना, जो जीवन को एक दिशा (आचार-विचार) प्रदान करते हैं। इन्हीं आचार-विचारों के कारण मानव का मस्तिष्क (बुद्धि) और मन कार्य करते हैं। वस्तुतः मानवता को अनंत शक्तियों से मिलने वाली वायु एक अमूल्य उपहार है। मकान में वायु का प्रवेश द्वार एवं खिड़कियों से होता
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है। अतः इनका विशेष ध्यान रखना चाहिए। भारत में हवा के लिए उत्तर दिशा खुली होनी चाहिए। घर में रोशनदान और खिड़कियों द्वारा Cross Ventilation (दोनों ओर से हवा का आना-जाना) की व्यवस्था होनी चाहिए। घर का केंद्रीय भाग खुला होना चाहिए। 3. अग्नितेज :
सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। सूर्य से उष्णता प्राप्त होती है। उष्णता अग्नि का एक स्वरूप है। पर्यावरण में व्याप्त वायु, धूलि कण और बादल, अपनी चुंबकीय शक्ति द्वारा, एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं। इसी लिए आकुंचन यानी, सिमटने की क्रिया घटित होती है। आकुंचन के कारण हवा का दबाव बनता है। इस दबाव के कारण ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो अग्नि के रूप में प्रकट होती है। आकाश में चमकने वाली बिजली इसका एक उदाहरण है। इसी लिए आधारभूत तत्व अग्नि का विशेष महत्व है। क्योंकि अग्नि के कारण, शब्द और स्पर्श के अतिरिक्त रूप में एक नया तत्व प्राप्त होता है, इसलिए हमारे दैनिक जीवन में अग्नि का विशेष महत्व है। अग्नि से भोजन पकता है। अग्नि से प्रकाश उत्पन्न होता है। प्रकाश के कारण ही हम देख सकते हैं। शुभ कार्यों में अग्नि का पवित्र स्थान होता है। अग्नि की तरंगों के कारण ही हम ब्रह्मांड स्थित परमपिता परमात्मा को अपनी प्रार्थनाएं भेज पाते हैं (समर्पित करते हैं) अग्नि इतनी सामर्थ्यशाली है। परमात्मा की आरती में भी गूढ़ अर्थ समाविष्ट है। अग्नि में तेजस् (तेज) रूपी विशेष गुण है। इसी लिए अग्नि जीवन का अंतिम एवं चिरंतन सत्य है। सत्य अग्नि की उपलब्धि है। सत्य अविनाशी है। अग्नि की ऊर्जा हमें घर में आने वाले सूर्य के स्वच्छंद प्रकाश से भी प्राप्त होती है। घर में खिड़कियों की ऐसी व्यवस्था हो कि प्रातःकालीन सूर्य की शुद्ध एवं स्वच्छ रश्मियां हमारे घर को अवश्य प्राप्त होनी चाहिएं। इसके लिए घर में खुला आंगन एवं ब्रह्म स्थान चाहिए। 'अति सर्वत्र वर्जयेत्' सूत्र के अनुसार सूर्य का तेज तथा उसकी तीक्ष्ण रश्मियां ज्यादा समय के लिए घर पर नहीं पड़ने चाहिएं। पहाड़ी क्षेत्र में हमने देखा कि पूर्वाभिमुख मकान घर में रहने वालों को परेशान कर देता है, क्योंकि दोपहर तक तपते हुए सूर्य के कारण सारा घर गर्म हो जाता है। अतः आवासीय घर में अग्नि तत्व का सुखद आनुपातिक सम्मिश्रण होना चाहिए।
4. जल:
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पृथ्वी पर जल एक महत्वपूर्ण तत्व है। जल से ही जीवन है। प्राणी हो, या वनस्पतियां, कोई भी जल के बिना जीवित नहीं रह सकते। पर्यावरण की गर्म वायु ठंडी हो कर तरल रूप में परिणत हो जाती है और निस्संदेह उसी से बादल बनते हैं और इन बादलों से जल मिलता है, वर्षा होती है, जिससे नदियों, झीलों तथा समुद्र में जल संचित होता है। जल में भी एक अंश ऑक्सीजन (प्राण वायु) का होता है। जल ठंडा हो कर ठोस रूप लेता है और बर्फ बनती है। जल का गर्म (तेजस्) रूप वाष्प बनती है जो गैस (वायु) का रूप ले लेती है। यद्यपि अग्नि तथा जल दो परस्पर विरोधी तत्व हैं, तथापि जल उबालने पर (अग्नि का संयोग पा कर) वह शुद्ध हो जाता है। शुद्ध जल के कई सात्विक गुण हैं। कोई भी संकल्प करते समय जल और अग्नि को साक्षी (गवाह) बनाते हैं। जल हमारे जीवन में नव चैतन्य का संचार करता है। 'शब्द, स्पर्श और रूप' के अतिरिक्त जल में रस (स्वाद) रूपी तत्व है। यह (रस) एक महत्वपूर्ण लक्षण है। पृथ्वी का, जल और भूमि के रूप में, उचित विभाजन हुआ है। जिस दिन यह समीकरण परिवर्तित होगा, अर्थात् पानी की मात्रा बढ़ जाएगी, संपूर्ण भूमि जल मग्न हो जाएगी और विश्व का विनाश हो जाएगा। सहस्रों वर्षों के पश्चात् सूर्य पर उपद्रव (टकराव) घटित होते हैं। उस कारण प्रचंड गर्मी पड़ती है। सभी बर्फाच्छादित पर्वत पिघल जाते हैं और घनघोर वर्षा होती है। भयंकर बाढ़ से सर्वस्व नष्ट हो जाता है। इसी महाजल से पुनः वाष्प बनती है और पृथ्वी पुनः दृष्टिगोचर होती है तथा पुनः नयी जीव सृष्टि होती है। घर में जल स्थान शुद्ध दिशा में होना चाहिए। पानी का नल, जल संग्रह एवं छत की टंकी सही होनी चाहिएं। सेप्टिक टैंक एवं प्राकृतिक वर्षा जल का निष्कासन सही होने चाहिएं। 5. पृथ्वी (भूमि) : लाखों वर्ष पूर्व सूर्य के वर्तुलाकार (घूमते हुए) कक्ष से कुछ ग्रह बाहर निकल गये थे। इनसे नव ग्रहों तथा अन्य उपग्रहों का निर्माण हुआ। ये सभी ग्रह और उपग्रह, आपसी आकर्षण के कारण, सूर्य के चारों ओर अपने-अपने विशेष ग्रह पथों में भ्रमण करने लगे। कुछ समय पश्चात सूर्य से तृतीय स्थान पर स्थित पृथ्वी ज्यों ही सूर्य से दूर हटी, वह ठंडी पड़ने लगी। उससे प्रस्फुटित (निकलने वाली) ज्वालामुखी से पर्वत और घाटियों का निर्माण हुआ। पृथ्वी के गर्भ में निश्चित स्थान पर दक्षिण-उत्तर में स्थित चुंबक तथा पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी पृथ्वी के सभी सजीव और निर्जीव पदार्थों पर अपना प्रभाव रखती हैं। अतः पृथ्वी का विशेष महत्व है। पृथ्वी तथा अन्य तत्वों से जीवनक्रम आरंभ हुआ। इसी लिए पृथ्वी को माता कहते हैं। भवन निर्माण करते
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समय 'भूमि पूजन का वास्तविक उद्देश्य यही है। पर्यावरण तथा वायु मंडल से बाहर की अनंत शक्तियों से पृथ्वी का घनिष्ठ संबंध है। संपूर्ण सौर मंडल में पृथ्वी ग्रह पर जीवन है। संभव है कि ब्रह्मांड के अन्य सौर मंडलों में पृथ्वी जैसे कुछ ग्रहों पर हमारी पृथ्वी से भी अधिक शक्तिशाली तथा अधिक जागृत जीवन रचना (जीवित रचना) हो! पृथ्वी में स्पर्श, शब्द (ध्वनि), रस, रूप के अतिरिक्त 'गंध' रूपी विशेष गुण विद्यमान हैं। उपर्युक्त पांच तत्वों को यथोचित मान और स्थान देते हुए मानव को आरोग्य, उन्नति, समृद्धि तथा मन की शांति हेतु चेष्टा करनी चाहिए। संपूर्ण विश्व के वास्तु शास्त्र का पंच महाभूतों से घनिष्ठ संबंध है। अतः हमें इन पांच तत्वों से प्राप्य स्वर्गीय आनंद को प्राप्त करने में कमी नहीं छोड़नी चाहिए।
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अध्याय-2
2. Selection of Land
भूपरीक्षा, भूमि के आसपास का वातावरण, भूखंड एवं भवन परीक्षा, खनन के समय प्राप्त सामग्री, भूखंड का आकृतिमूलक वर्गीकरण, भूखंड के न्यूनाधिक चतुष्कोणों का फल, वर्णानुसार भूमि परीक्षा।
भूपरीक्षा
सुगन्धा ब्राह्मणी भूमी रक्तगन्धा तू क्षत्रिया। मधुगन्धा भवेदद्वैश्या मद्यगन्धा च शूद्रिका।।
-कल्पद्रुम सुगंधयुक्त भूमि ब्राह्मणी, रक्त की गंध वाली भूमि क्षत्रिया, धान्य की सुगंध वाली वैश्या एवं मद्यगंधयुक्त भूमि शूद्रा कहलाती है।
ब्राह्मणी, क्षत्रिया, वैश्या एवं शूद्रा-ये चार भूमि के मुख्य प्रकार हैं। ब्राह्मणी भूमि : सुगंधयुक्त, सफेद रंग की मिट्टी वाली मधुर रसयुक्त कुश घास से
युक्त
क्षत्रिया भूमि :
रक्तगंधा, लाल रंग की मिट्टी वाली, कषाय रसयुक्त, मुंज घास से
युक्त
वैश्या
: शस्यगंधा (धान्य), हरे रंग की मिट्टी वाली, आम्ल रसयुक्त (खट्टा),
कुश काशयुक्त : मद्य गंध, काले रंग की मिट्टी वाली, कटु रस वाली, सब प्रकार के
घास से युक्त
शूद्रा भूमि
भमि के आसपास का वातावरण :
शस्तौषधिद्रुमलता मधुरा सुगंधा
स्निग्धा समा न सुषिरा च मही नराणाम् । अप्यध्वनिश्रमविनोदमुपागतानां धते श्रियं किमुत शाश्वतमन्दिरेषु ।।
-बृहत्संहिता 11
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यदि भूमि पर यज्ञीय वृक्ष, सुगंधित वृक्ष चरण इत्यादि हों, तो वह भूमि ब्राह्मणों के लिए श्रेष्ठ, यदि भूमि पर कांटेदार वृक्ष हों, तो क्षत्रियों के लिए श्रेष्ठ, यदि भूमि पर चूहों इत्यादि के बिल हों, धान्य बिखरा हुआ हो, फलदार वृक्ष हों, तो वैश्या वर्ग एवं सभी वर्गों के लिए श्रेष्ठ, भूमि पर गंदगी, कीचड़, विष्ठा एव जहरीले प्राणियों का निवास हों, तो वह भूमि शूद्र वर्ग के लिए श्रेष्ठ है।
श्रेव्तासृक् पीतकृष्णा हयगजनिनदा षड्रसा चैकवणां, गोधान्याम्भोजगन्धोपलतुषरहितावाकप्रतीच्युन्नता या। पूर्वो दग्वारिसारा वरसुरभिमसा शूलहीनास्थिवा, सा भूमिः सर्वयोग्या कणदररहिता सम्मताद्यैर्मुनीन्द्रै ।।
-मयमतम् 201 सफेद (लहू की तरह) लाल, पीली, घोड़ों की हिनहिनाइट एवं हाथियों की चिंघाड़ से भरी हुई, छह प्रकार के रसों से संपन्न, एक ही वर्ण वाली, गाय-बैल आदि पशु, धान्य एवं कमल की सुगंध से युक्त, कंकड़ और छिलकों से रहित, दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर उठी (उभर कर आई) हुई, उत्तर या पूर्व में नदी की सीमा से बंधी हुई, उत्तम सुरभि के समान, पैने पदार्थ एवं अस्थियों से रहित, जहां बीज आदि सूख नहीं जाते, ऐसी भूमि सबके निवास के लिए योग्य है, ऐसा प्राचीन श्रेष्ठ मुनियों का कहना है। भूमि/भूखंड एवं भवन परीक्षा भूमि की विविध परीक्षाएं एवं खात परीक्षण : भूमि की परीक्षा चार प्रकार से करने को कहा गया है। अमुक भूमि शुभ है, या अशुभ, इसकी परीक्षा करने के लिए, गृहकर्ता के हाथ से, गृह के मध्य में, एक हाथ चौड़ा और एक हाथ गहरा गड्ढा खुदवाएं। फिर उस गड्ढे को उसी मिट्टी से भरें। यदि गड्ढा भरने में मिट्टी कम हो जाए, तो अशुभ, ठीक-ठीक हो जाए तो सामान्य और गड्ढा भर कर मिट्टी ज्यादा हो, तो शुभ होता है।
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भूमि परीक्षा को ले कर वास्तु शास्त्र में बहुत सी सामग्री दी गयी है और कहा गया है : 'ततो भूमि परीक्षेत वास्तुज्ञानविशारदः', यानी, वास्तु शास्त्र विद्या के ज्ञाता को सबसे पहले विभिन्न प्रकार से भूमि की परीक्षा करनी चाहिए। यज्ञ कुंड-मंडप आदि निर्माण हेतु शुद्ध (सोम, बुध, गुरु या शुक्र) वारों में, रिक्तादि, निंदित तिथियों को छोड़ कर, व्यतिपात आदि अशुभ योगरहित शुभ दिनों में, मंडप भूमि के परीक्षण हेतु पांच ब्राह्माणों को ले कर जाएं। यह भूमि यज्ञ योग्य है, या नहीं? इसकी परीक्षा करने हेतु उस भूमि पर कोई घास, तृण हो, तो उसे जला दें। तत्पश्चात् जानु मात्र भूमि खोदें और उस गड्ढे को जल से परिपूर्ण कर दें और पुण्याहवाचन करें। दूसरे दिन आ कर देखें। अगर जमीन फट जाए, उसमें हड्डी वगैरह अशुभ वस्तु दिखें, तो यह भूमि हवन योग्य नहीं। यह यज्ञकर्ता के आयु तथा धन का नाश करेगी। गड्ढे वाली, कांटे वाली, दीमक वाली भूमि का तो दूर से ही त्याग कर देना चाहिए। नारायण भट्ट के अनुसार उपर्युक्त एक हाथ गहरा, एक हाथ चौड़ा खड्डा, सूर्यास्त के समय खोद कर, जल से भरना चाहिए। प्रातःकाल यदि उसमें जल बचा हुआ मिले, तो शुभ, जल नही रहे, तो मध्यम। यदि जमीन फट जाए, तो उसे अशुभ मानना चाहिए। खनन के समय प्राप्त सामग्री : .. खात (नीव) के लिए भूमि खोदते समय पिपीलिका (दीमक, अजगर वगैरह) दिख पड़ें, तो उस भूमि पर निवास नहीं करना चाहिए। यदि तुष (भूसा), सर्प का अंडा आदि दिखे, तो मरणप्रद कष्ट होता है। वराटिका (कौड़ी) दुःख और कलह देती है। फटे हुए कपड़े विशेष दुःख देते हैं। जला हुआ काष्ठ (कोयला) रोग प्रदान करता है। खप्पर से कलह
और लोहे से गृहकर्ता का मरण होता है। हड्डी, कपाल, केशादि का मिलना भूस्वामी के आयु का नाश करता है। परंतु यदि गोश्रृंग, शंख, शुक्ति, कछुआ मिले, तो शुभ होता है। भूमि खोदते समय यदि पत्थर मिले, तो सुवर्ण लाभ होता है और ईंट मिले, तो समृद्धि होती है। द्रव्य मिले, तो उत्तम सुख और ताम्र इत्यादि धातु मिलें, तो ऐश्वर्य की वृद्धि होती है
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चमचौरस
चमसाकार चौड़ा
समकोण
चमसाकार लंबा
समकोण
षट्कोण
अष्ट कोणात्मक वर्तुल
त्रिकोणात्मक
भूखंड का आकृतिमूलक वर्गीकरण
शुभ धनदायक दो जुड़े हुए
एवं पुष्टिवर्धक रथों की आकृति में गृहस्वामी को
आगे-पीछे दौड़ाने
रथ के आकार में
धनदायक एवं
पुष्टिवर्धक
धनदायक पुष्टिवर्धक एवं
शुभ
WwAgni Hindi@com
शुभ अरिष्टनाशक
एवं शुभ
मुसीबतदायक
गृहस्वामी की
तीन -ते रह
करने
वाला अशुभ
लंबोतरा
गृहस्वामी को आगे-पीछे दौड़ाने वाला अशुभ भूखंड
चमसाकार
टी-शेप
कोणात्मक
त्रिकोण
छाजमुखी
TO
14
वाला एवं एक
जगह स्थायी सुख
न देने वाला अशुभ
भूखंड
धार्मिक कार्यों के
लिए शुभ
कष्टकारक
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मिश्रित फलदायक
अशुभ
घर की सुख-संपत्ति को नष्ट करने वाला
अशुभ भूखंड
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Bilot
हाथ पंखानुमा
धनुषाकृति
अर्धवर्तु
तबले का आकार
वायव्य
प.
गृहस्वामी को गरीब मृदंग का आकार बनाने वाला भूखंड
WWWभूखड के न्यूनाधिक चतु
प.
गृहस्वामी के शत्रु बढ़ाने वाला भूखंड
गृहस्वामी को काकमुखी
आधी-अधूरी हालत में रखने वाला
अशुभ भूखंड
गृहस्वामी को तबले की तरह खाली रखने वाला भूखंड
उ.
उ.
द.
वायव्य कोण में बढ़ा हुआ भूखंड अशुभ होता
है ।
पू.
पू.
आग्नेय
द.
आग्नेय कोण में बढ़ा हुआ भूखंड अशुभ होता है।
15
चतुष्कोणों का फलom
ईशान्य
पू.
प.
प.
गृहस्वामी को मृदंग की तरह खाली रखने वाला भूखंड
काकमुखी मकान आगे से संकरा एवं
पीछे से चौड़ा होता
है । यह प्रायः छाजमुखी का
उल्टा होता है।
इसमें रहने वाला
प्राणी सुखी और संपन्न होता है।
उ.
द.
ईशान्य कोण में घटा हुआ भूखंड अशुभ होता है।
उ.
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ईशान्य
पू.
द.
ईशान्य कोण में बढ़ा हुआ भूखंड शुभ है।
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उ.
ईशान्य
नैऋत्य
ईशान्य कोण में घटा हुआ भूखंड
अशुभ है।
नैर्ऋत्य कोण में घटा हुआ भूखंड
अशुभ होता है।
वायव्य
वायव्य
www. AL1Hinप. |.CO
द.
आग्नेय
द. आग्नेय आग्नेय कोण में घटा हुआ भूखंड तथा वायव्य कोण में भी घटा भूखंड
शुभ होता है।
आग्नेय कोण में बढ़ा हुआ भूखंड तथा वायव्य कोण में भी बढ़ा हुआ
भूखंड अशुभ होता है।
उ.
प.
|90090
नैर्ऋत्य
नैर्ऋत्य कोण में बढ़ा हुआ भूखंड
अशुभ होता है।
कर्णात्मक स्थिति वाले भूखंड, जो 90° के कोण में आते हों, वे, टेढ़े होते हुए
भी, शुभ फलदायक होते हैं।
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वर्णानुसार भूमि परीक्षा : वर्ण : श्वेत मृत्तिका (मिट्टी) की भूमि ब्राह्मणी, रक्त वर्ण की क्षत्रिया, हरित वर्ण पीली वैश्या
और कृष्ण वर्ण की भूमि शूद्रा कही जाती है। गंध :धी के समान सुगंधा भूमि ब्राह्मण, रक्तगंधा क्षत्रिया, मधु (अन्न) गंधा वैश्या और मद्यगंधा या विष्टा जैसी गंध वाली भूमि को शूद्रा कहते हैं। स्वाद : इष्ट भूमि की धूल को जिह्वा पर रखें। मधु रसयुक्त ब्राह्मणी, कषाय रसयुक्त भूमि क्षत्रिया, आम्ल रसयुक्त वैश्या और कषाय रसयुक्त भूमि शूद्रा भी कहलाती है। तृण परीक्षा : जिस भूमि पर कुश, दर्भ एवं हवनीय वृक्ष हों, वह ब्राह्मणी, शर (मुज), रक्तवर्णीय पुष्प और वृक्षों वाली, सर्प से युक्त भूमि क्षत्रिया, कुश-काश, धन-धान्य और फलयुक्त वृक्षों वाली भूमि वैश्या तथा सर्वतृणयुक्त निम्न कोटि के राक्षस वृक्षों वाली भूमि शूद्रा कहलाती है। भूमि का प्रभावः ब्राह्मणी भूमि सर्वप्रकार के आध्यात्मिक सुख देती है। क्षत्रिया राज्य देती है; वर्चस्व और पराक्रम बढ़ाती है। वैश्या धन-धान्य से युक्त करती है, ऐश्वर्य बढ़ाती है और शूद्रा निंदित है, क्योंकि यह भूस्वामी को कलह-झंझट और झगड़ों में उलझाती है। यह भी शास्त्र का वचन है कि ब्राह्मणादि चारों वर्गों के लिए, क्रम से, धृतगंधा, रक्तगंधा, अन्नगंधा और मद्यगंधा भूमि शुभ होती हैं। भूमि कोई भी रंग की हो, परंतु कुछ कठोर और स्निग्ध (चिकनी) हो, तो उत्तम होती है। । भूमि परीक्षा की दूसरी विधिः पूर्वकथित प्रकार से गड्ढे को खोदें। बाद में उसमें जल भर कर, वहां से सौ पद तक जा कर वापस लौट आएं। इतने समय में गड्ढे का जल ज्यों का त्यों बना रहे, तो शुभ होता
ढलान के अनुसार भूमि की परीक्षाः उत्तरी तरफ ढाल वाली भूमि ब्राह्मणों को, पूर्व की ओर ढाल वाली भूमि क्षत्रियों को, दक्षिण की ओर ढाल वाली भूमि वैश्यों को और पश्चिम की ओर ढाल वाली भूमि शूद्रों के लिए शुभ होती है। ब्राह्मण चारों ओर की ढालू भूमि में घर बना सकता है। शेष वर्गों के लिए अपनी-अपनी दिशा की ढालू वाली भूमि पर ही घर बनाना उत्तम रहता है।
जल से भरा गड्ढा
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वराहमिहिर का वास्तु ज्ञानः वराह मिहिर ने चार दिशाओं के अनुसार चतुर्दिशा भूमि पर चारों वर्गों के संदर्भ में विचार किया। परंतु वास्तु शास्त्र में इस वर्गीकरण को, अत्यंत विस्तृत आकार दे कर, 26 प्रकार की भूमियों का नामोल्लेख किया गया है, जिनके नाम और प्रभाव इस प्रकार से हैं : गोवीथी : जो भूमि पश्चिम में ऊंची और पूर्व में नीची हो, उसे गोवीथी कहते हैं। ऐसी भूमि पुत्र संतान की वृद्धि करती है। जलवीथी: जो भूमि पूर्व में ऊंची और पश्चिम में नीची हो, ये उसे जलवीथी कहते हैं। यह भूमि संतान का नाश करती है। यमवीथी: जो भूमि उत्तर में ऊंची और दक्षिण में नीची हो, उसे यमवीथी कहते
पश्चिम
WwMAREATEDAARATom
TETTYFOLLL
गोवीथी भूमि पश्चिम
जलवीथी भूमि पूर्व हैं। ऐसी भूमि आरोग्य नाश करती है। गणवीथी : जो भूमि दक्षिण में ऊंची और उत्तर में नीची हो, उसे गणवीथी कहते दक्षिण
उत्तर
+
+
+3
उत्तर यमवीथी भूमि
दक्षिण गणवीथी भूमि
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हैं। ऐसी भूमि आरोग्य लाभ देती है। भूतवीथी : जो भूमि ईशान कोण में ऊंची और नैर्ऋत्य में नीची हो, उसे भूतवीथी कहते हैं। ऐसी भूमि महान कष्टदायक होती है। नागवीथी : जो भूमि अग्नि कोण में ऊंची और वायु कोण में नीची हो, उसे नागवीथी कहते हैं। यह भूमि धन देती है। वैश्वानरवीथी : जो भूमि वायु कोण में ऊंची और अग्नि कोण में नीची हो, उसे
पूर्व अ. ई. पूर्व अ.
इक्षिण
'उसर North:
उत्तर
दक्षिण South
दक्षिण
WWW AT वा. भूतवीथी भूमि प. नै.
वा.नागवीथी भूमि प. नै. वैश्वानरवीथी कहते हैं। ऐसी भूमि धन नाश करती है। धनवीथी : जो भूमि नैर्ऋत्य कोण में नीची और ईशान में ऊंची हो, उसे धनवीथी कहते हैं। ऐसी भूमि खूब लक्ष्मी देती है। पितामह वास्तुः जो भूमि पूर्व और अग्नि कोण के मध्य में ऊंची हो कर पश्चिम और
पूर्व
आ.
आ.
इ.
उत्तर
दक्षिण
वा.
नै. वा.
प. वैश्वानरवीथी भूमि
धनवीथी भूमि
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वायु कोण के मध्य में नीची हो, उसे पितामह वास्तु (भूमि) कहते हैं। यह भूमि मनुष्यों को सुख देने वाली कही गयी है। सुपथ वास्तु : जो भूमि अग्नि कोण और दक्षिण के मध्य ऊंची हो कर वायु कोण और उत्तर के मध्य नीची हो, उसे सुपथ वास्तु (भूमि) कहते हैं। यह भूमि सर्वकर्म योग्य होती
है।
दीर्घायु वास्तु : जो भूमि उत्तर और ईशान कोण के मध्य नीची हो कर, नैऋत्य कोण
आ. ई. पूर्व
आ.
उत्तर
दक्षिण
JALA
KI वा. प. नै. वा.
प. पितामह वास्तु भूमि
सुपथ वास्तु भूमि और दक्षिण के मध्य ऊंची हो, उसे दीर्घायु नामक वास्तु (भूमि) कहते हैं। यह भूमि बहुत उत्तम होती है एवं वंशवृद्धि में सहायक होती है। पुण्यक वास्तु : जो भूमि ईशान कोण और पूर्व के मध्य में नीची हो तथा नैर्ऋत्य और पश्चिम के मध्य ऊंची हो, उसे पुण्यक नामक वास्तु (भूमि) कहते हैं। यह भूमि द्विजा मात्र (ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य) के लिए शुभ फलदायी होती है।
पूर्व
आ. ई.
पूर्व
आ.
दक्षिण
उत्तर
आ. ई.
पूर्व
आ.
पूर्व दीर्घायु वास्तु भूमि
पुण्यक वास्तु भूमि
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अपथ वास्तु : जो भूमि पूर्व दिशा और अग्नि कोण के मध्य में नीची हो कर वायु कोण और उत्तर के मध्य ऊंची हो, उसे अपथ नामक वास्तु (भूमि) कहते हैं। इसमें रहने से मनुष्य को रोग होता है। रोगकर वास्तु : जो भूमि अग्नि कोण और दक्षिण के मध्य में नीची हो कर वायु कोण और उत्तर के मध्य ऊंची हो, उसे रोगकर नामक वास्तु (भूमि) कहते हैं। इसमें रहने से मनुष्य को रोग होता
ई. पूर्व आ. ई. पूर्व आ.
है।
उत्तर
दक्षिण
वा.
नै. वा.
नै.
प. अपथ वास्तु भूमि
प. रोगकर वास्तु भूमि
अर्गल वास्तु : जो भूमि नैऋत्य कोण तथा दक्षिण के मध्य नीची हो कर ईशान कोण और उत्तर के मध्य में ऊंची हो, उसे अर्गल वास्तु भूमि कहते हैं। ऐसी भूमि ब्रह्म महापापों को दूर करती है। श्मशान वास्तु : जो भूमि ईशान कोण और पूर्व के मध्य में ऊंची हो कर पश्चिम और नैर्ऋत्य कोण में नीची हो, उसका नाम श्मशान वास्तु (भूमि) है। यह भूस्वामी के कुल का नाश करती है।
ई. पूर्व आ. ई. पूर्व आ.
उत्तर
दक्षिण
वा.
नै.
वा.
अर्गल वास्तु भूमि
श्मशान वास्तु भूमि
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श्येनक वास्तु : जो भूमि अग्नि कोण में नीची हो कर नैऋत्य, ईशान और वायव्य कोण में ऊंची हो, उसे श्येनक नामक वास्तु (भूमि) कहते हैं। ऐसी भूमि भूस्वामी के नाश एवं मृत्यु का कारण होती है। स्वमुख वास्तु : जो भूमि ईशान कोण, अग्नि कोण और पश्चिम में ऊंची हो कर नैर्ऋत्य कोण में नीची हो, उसे स्वमुख नामक वास्तु (भूमि) कहते हैं। ऐसी भूमि में रहने वाला प्राणी दरिद्रता प्राप्त करता है।
ई. पूर्व आ. ई. पूर्व आ.
उत्तर
दक्षिण
वा. प. नै. वा. प. नै.
श्येनक वास्तु भूमि स्वमुख वास्तु भूमि WWW ब्रह्म वास्तु : जो भूमि नैऋत्य कोण, अग्नि कोण और ईशान कोने में ऊंची हो कर पूर्व तथा वायव्य कोण में नीची हो, उसे ब्रह्म वास्तु कहते हैं। ऐसी भूमि मनुष्यों के लिए सदा बुरी है। स्थावर वास्तु : जो भूमि अग्नि कोण में ऊंची हो तथा नैर्ऋत्य कोण, ईशान कोण और वायु कोण में नीची, उसे स्थावर वास्तु (भूमि) कहते हैं। ऐसी भूमि मनुष्यों के लिए सदा शुभ रहती है।
ई. पूर्व आ. ई. पूर्व आ.
उत्तर
दक्षिण
वा.
नै. वा.
नै.
प. स्थंडिल वास्तु भूमि
प. शांडुल वास्तु भूमि
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स्थंडिल वास्तु जो भूमि नैर्ऋत्य कोण में ऊंची हो तथा अग्नि कोण, वायु कोण और ईशान कोण में नीची हो, उसे स्थंडिल वास्तु कहते हैं। यह सभी प्राणियों के लिए शुभ है ।
शांडु वास्तु : जो भूमि ईशान कोण में ऊंची हो कर, अग्नि कोण, नैर्ऋत्य कोण और वायु कोण में नीची हो, उसे शांडुल वास्तु (भूमि) कहते हैं । यह सभी प्राणियों के लिए अशुभ है।
:
सुस्थान वास्तु जो भूमि नैर्ऋत्य कोण और ईशान कोण में ऊंची हो कर वायव्य कोण में नीची हो, उसे सुस्थान वास्तु कहते हैं। ऐसी भूमि ब्राह्मणों के लिए अति उत्तम होती है ।
ई. पूर्व
आ. ई.
पूर्व
उत्तर
www.
उत्तर
वा.
नै.om
सुतल वास्तु भूमि
सुतल वास्तु जो भूमि पूर्व दिशा में नीची हो कर नैर्ऋत्य कोण वायु कोण और पश्चिम में ऊंची हो, उसे सुतल वास्तु कहते हैं। ऐसी भूमि क्षत्रियों के लिए अति उत्तम होती है।
ई.
प.
सुस्थान वास्तु भूमि
चर वास्तु : जो भूमि उत्तर दिशा, ईशान कोण और वायु कोण में ऊंची हो कर दक्षिण में नीची हो, उसे चर वास्तु कहते हैं। ऐसी भूमि वैश्यों के लिए अति उत्तम होती है।
ई.
पूर्व
आ. ई.
पूर्व
आ.
पूर्व
चर वास्तु भूमि
fit
आ.ई.
23
आ.
पूर्व श्वमुख वास्तु भूमि
दक्षिण
•
आ.
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श्वमुख वास्तुः जो भूभि पश्चिम दिशा में नीची हो कर ईशान कोण, पूर्व दिशा और अग्नि कोण में क्रम से ऊंची हो, उसे श्वमुख वास्तु (भूमि) कहते हैं। ऐसी भूमि शूद्रों के लिए अति उत्तम होती है। पानी के बहाव से भूमि की परीक्षाः परीक्षा योग्य भूमि पर खूब जल गिराएं। यदि पानी उत्तराभिमुख बहे, तो वह भूमि ब्राह्मणों के लिए उत्तम होती है। पूर्वाभिमुख जल के बहाव वाली भूमि क्षत्रियों के लिए उत्तम, दक्षिण मुख जल बहे, तो वह भूमि वैश्यों के लिए श्रेष्ठ तथा पश्चिम मुख पानी के बहाव वाली भूमि शूद्रों के लिए श्रेष्ठ होती है। भूपृष्ठ से भूमि की परीक्षाः भूमि के मध्य वाले पठारी (कठोर) भाग को पृष्ठ कहते हैं। इस भेद से चार प्रकार की भूमि कही गयी है : गजपृष्ठः जो भूमि दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम और वायु कोण में ऊंची हो, उसे गजपृष्ठ कहते हैं। गजपृष्ठ भूमि में वास करने से लक्ष्मी का निवास होता है तथा धन और आयु की निरंतर वृद्धि होती है।
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उत्तर
दक्षिण
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प. गजपृष्ठ
प. कूर्मपृष्ठ
कूर्मपृष्ठ: जो भूमि मध्य भाग में विशेष ऊंची हो और चारों दिशाओं में नीची हो, उसको कूर्मपृष्ठ कहते हैं। ऐसी भूमि निवासयोग्य होती है, जिस पर निवास करने से नित्य उत्साह की वृद्धि होती है; सुख और धन-धान्य का लाभ होता है। दैत्यपृष्ठः जो भूमि ईशान, पूर्व और अग्नि कोण में ऊंची हो और पश्चिम में नीची हो, उसे दैत्यपृष्ठ कहते हैं। दैत्यपृष्ठ पर निवास करने से लक्ष्मी नहीं आती तथा धन और पुत्र की निरंतर हानि होती है।
24
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उत्तर
वा.
पूर्व
प.
दैत्यपृष्ठ
आ.
पश्चिम
नै.
1. काले और छोटे तीर ऊंची भूमि को बताते हैं।
2. लंबे और पतले तीर ढलान को बताते हैं ।
3. ऊंचाई वाली जमीन चौकड़ी युक्त है।
4. नीची जमीन खाली (सफेद) है।
दक्षिण
25
उत्तर
नागपृष्ठ
नागपृष्ठः जो भूमि पूर्व-पश्चिम दिशा में लंबी हो तथा दक्षिण और उत्तर दिशा में ऊंची हो, उसका नाम नागपृष्ठ है। नागपृष्ठ भूमि पर वास करने से अवश्य ही मृत्यु होती है तथा स्त्री हानि, पुत्र हानि और पद-पद में शत्रु वृद्धि होती है।com
चित्रों की समझ के लिए
पश्चिम
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अध्याय -3 3. Residential Vastu
घर में जल स्रोत कहां होने चाहिएं? घर में, या बाहर कुआं, या पानी की टंकी बनाने का स्थान, द्वार खिड़कियां और झरोखे, पूजन घर के बारे में विशेष,
रसोई घर एवं चूल्हा, शौचालय संस्कृति का जोर, सीढ़ियों का विस्तृत वर्णन। घर में जल स्रोत कहां होना चाहिए ? घर में, नलकूप (हैंड पंप), होटल में स्वीमिंग पूल (तरण ताल), खेत-खलिहान में कुआं, कमर्शियल कांपलेक्स में जल संग्रह स्थल कहां होने चाहिएं, इस विषय पर निम्न श्लोक दृष्टव्य है : कूपे वास्तोर्यध्यदेशेऽर्थनाशस्त्वैशान्यादौ पुष्टिरैश्वर्य वृद्धिः । सूनो शः स्त्री विनाशो मृतिश्च सम्पतीड़ा शत्रुतः स्याच्च सौरव्यम।। घर में या बाहर कुआं, या पानी की टंकी बनाने का स्थान : 1. घर या घर के बाहर हैंड पंप, पानी की टंकी हमेशा ईशान्य कोण में ही शुभ रहता
है। इससे गृहस्वामी का परिवार पुष्ट होता है। 2. कुआं, हैंड पंप, पानी की टंकी, या जलसंग्रह घर के पश्चिम भाग में उत्तम रहता
है। इससे घर के सुख-संपत्ति में वृद्धि होती है। 3. कुआं, हैंड पंप, पानी की टंकी, घर के ठीक पूर्व भाग में हो, तो ऐश्वर्य की वृद्धि
होती है। 4. कुआं, हैंड पंप, पानी की टंकी घर के ठीक उत्तर की तरफ हो, तो शुभ है। इससे
घर में सुख-शांति की वृद्धि होती है। 5. पानी का स्थान, कुआं, हैंड पंप या टंकी नैऋत्य दिशा में हो, तो गृहस्वामी एवं
उसके परिजनों की मृत्यु होती है। 6. कुआं, हैंड पंप, पानी की टंकी दक्षिण दिशा में हो, तो गृहस्वामी की स्त्री मरती
है, यदि बीचों-बीच (मध्य) हो, तो भारी धन हानि होती है।
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पुष
NORTH
SOUTH
मो
NW
7. कुआं, हैंड पंप, पानी की टंकी घर में यदि वायव्य दिशा में हो, तो गृहस्वामी की
स्त्री मरती है। घर में कलह रहता है। द्वार, खिड़कियां और झरोखे: प्रश्न : मकान में कितने दरवाजें और कितनी खिड़कियां होनी चाहिएं? उत्तर : इसकी कोई निश्चित संख्या निर्धारित नहीं। घर में छोटे-बड़े जितने कमरे बने हों, द्वार संख्या उस पर निर्भर करती है। भूखंड चारों ओर से राजमार्ग वाला, खुला हो, तो द्वार, खिड़कियां और झरोखे अधिक होंगे। दरवाजे अनेक हों, लेकिन मुख्य द्वार तो एक ही होगा। खिड़की-दरवाजे आवश्यकताअनुसार बनाये जाते हैं। पर एकी की संख्या शुभ मानी गयी है, यथा 5, 11, 21 । प्रश्न : किस प्रकार से द्वार निर्माण करवाना चाहिए? उत्तर : दरवाजे को पूरी तरह दीवार से सटा कर नहीं लगाना चाहिए। दरवाजे और दीवार के बीच कम से कम चार इंच, या फुट भर की गद्दी बना कर चौखट बिठाना चाहिए।
घर
(मलत)
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प्रश्न : घर के कौन से द्वार शुभदायक हैं और क्यों? उत्तर : पूर्व का द्वार शुभदायक है। दक्षिण- आग्नेय द्वार घर की स्त्रियों के लिए अच्छा कहा गया है। दक्षिण द्वार गृहस्थ के लिए शुभकर है। पश्चिम द्वार क्षेमदायक है। पश्चिम-वायव्य द्वार अनेक शुभप्रदाता हैं। उत्तर द्वार प्रगतिकारक होता है। उत्तर-ईशान्य देव कृपा और सौभाग्य देता है। पूर्व-ईशान द्वार संतान वृद्धि करता है और कीर्ति को चार चांद लगा देता है।
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प्रश्न : मुख्य द्वार किसे कहते हैं? उत्तर : मुख्य द्वार चारदीवारी में जुड़ा हुआ नहीं होता। चारदीवारी के पश्चात् घर में प्रवेश करने वाले प्रथम प्रवेश द्वार को ही मुख्य द्वार, प्रधान द्वार, या सिंह द्वार कहते हैं। यह घर के अन्य द्वारों की अपेक्षा ज्यादा बड़ा, ज्यादा मजबूत एवं आकर्षक होता है। मुख्य प्रवेश द्वार सही होने पर पूरा घर सही हो जाता है। प्रश्न : मुख्य द्वार के बारे में किस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए?
IP DE उत्तर : मुख्य प्रवेश द्वार पर मंगलकारी चिह्न, स्वस्तिक, घंटियां, शंख, कौड़ी, ओंकार, तोरण, गणपति, दीप प्रकोष्ठ इत्यादि होने चाहिएं। यह द्वार मनुष्य की औसत लंबाई से एक फुट ऊंचा होना चाहिए। इस पर किसी प्रकार का 'वेध' नहीं होना चाहिए। यदि वेध होता हो, तो उसका उपाय कर लेना चाहिए। प्रश्न : कौन से द्वार अशुभ फलदायक हैं? उत्तर : पूर्व आग्नेय द्वार चोरों और आग को भड़काता है; बीमारी लाता है। दक्षिण नैऋत्य द्वार घर की स्त्रियों को बीमार करता है। पश्चिम नैऋत्य द्वार पुरुषों के प्राणों
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का हरण करता है। उत्तर वायव्य द्वार घर वाले को चंचल और अधैर्यशाली बना देता है। इसलिए ये द्वार अच्छे नहीं हैं।
प्रश्न : भवन के दोनों तरफ अगर घर लगे हों, तो तीन द्वार कैसे लगाएं ?
उत्तर : निम्न उदाहरण दृष्टव्य हैं
अन्य घर
新
-
अन्य घर
घर के बीच में उत्तर से दक्षिण को या पूर्व से पश्चिम को तीन द्वार लगा सकते हैं।
के बीच में उत्तर से दक्षिण को, या पूर्व से पश्चिम को तीन
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उत्तर ईशान्य से दक्षिण आग्नेय को तीन द्वार लगा सकते हैं।
D
अन्य घर
अन्य घर
अन्य घर
पूर्व ईशान्य से पश्चिम वायव्य को तीन द्वार लगा सकते हैं।
प्रश्न: अगर एक ही द्वार घर में लगाना पड़े तो किधर लगाएं ?
उत्तर : घर में अगर एक ही द्वार लगाना पड़े, तो पूर्व को, या ईशान्य को, या उत्तर को, अथवा उत्तर ईशान्य को लगाना चाहिए। तभी एक द्वार वाला घर उत्तम फल देगा। दक्षिण और पश्चिम में सिंह द्वार वाले घरों में एक द्वार का निर्माण नहीं करना चाहिए ।
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गृहस्वामी को स्वयं के उपयोग हेतु घरों का निर्माण ऐसा नहीं करना चाहिए। इसे अवश्य ध्यान में रखना होगा। नैऋत्य और ईशान्य के कमरों में एक ही द्वार लगा सकते हैं। उससे दोष नहीं होगा।
प्रश्न : अगर दो दरवाजे लगाने हों, तो कैसे लगावें? उत्तर : पूर्व और पश्चिम को, या उत्तर और दक्षिण को, अथवा पूर्व और उत्तर को दो द्वार लगाये जा सकते हैं। परंतु दक्षिण और पश्चिम की ओर द्वार लगाना मना है।
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प्रश्न : तीन द्वार किन दिशाओं में लगाएं? उत्तर : पूर्व द्वार के बिना अन्य दिशाओं में द्वार नहीं लगाना चाहिए। उत्तर द्वार के बिना अन्य तीन दिशाओं में द्वार नहीं लगवाएं। दक्षिण को छोड़ अन्य दिशाओं में द्वार लगाये जा सकते हैं। घर के अंदर के किसी भी कमरे में तीन द्वार लगाये जा सकते हैं। परंतु नैऋत्य के कमरे को तीन द्वार लगाना मना है। घर के अंदर के आड़ी दीवारों में सीधे तीन द्वार लगाये जा सकते हैं। प्रश्न : घर के भीतर कहां से प्रवेश अच्छा हैं? उत्तर : निम्न दिशा वाले द्वारों से आना-जाना अच्छा होगा। 1. पश्चिम से पूर्व को, दक्षिण आग्नेय से उत्तर ईशान्य को, 2. दक्षिण से उत्तर को, पश्चिम से पूर्व ईशान्य को, 3. पश्चिम द्वार से उत्तर ईशान्य और पूर्व को, 4. पूर्व ईशान्य से उत्तर को और पश्चिम को, 5. उत्तर ईशान्य से दक्षिण को और पूर्व ईशान्य को, 6. पूर्व से उत्तर ईशान्य और दक्षिण की ओर। इनके उदाहरण निम्न चित्रों में दृष्टव्य हैं : ।
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प्रश्न : घर के अंदर कहां-कहां से प्रवेश अच्छा नहीं होता? उत्तर : घर के अंदर निम्न द्वारों से आना-जाना अच्छा नहीं। 1. दक्षिण नैर्ऋत्य से उत्तर और पूर्व ईशान्य को, 2. पश्चिम नैर्ऋत्य से पूर्व ईशान्य और उत्तर ईशान्य को, 3. पश्चिम, वायव्य से पूर्व और दक्षिण आग्नेय को, 4. पश्चिम से पूर्व आग्नेय और दक्षिण आग्नेय द्वारा, 5. दक्षिण और पूर्व से उत्तर से उत्तर वायव्य से होते हुए, 6. दक्षिण से पश्चिम की ओर पूर्व ईशान्य की ओर, 7. पूर्व और दक्षिण आग्नेय से उत्तर की ओर, 8. पूर्व से पश्चिम नैर्ऋत्य और दक्षिण नैर्ऋत्य को और उत्तर से दक्षिण नैऋत्य, पश्चिम
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नैर्ऋत्य से 9. पश्चिम से दक्षिण आग्नेय हो कर 10. दक्षिण से पश्चिम वायव्य ये सभी प्रवेश अशुभकारी है। नीचे के चित्रों में कुछ उदाहरण दिये जा रहे हैं :
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WWW अन्य दृष्टांत :
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ऐसे बनाने से यदि ईशान्य कट जाएगा, तो बुरा होगा साथ में भारी हो जाएगा।
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मकान
प्रश्न: क्या उत्तर में मुख्य द्वार वाले मकान में उत्तर - वायव्य में पूर्व से पश्चिम को चढ़ती सीढ़ियों के 'लैंडिंग' के नीचे कमरे बना सकते हैं?
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उत्तर : इन सीढ़ियों के नीचे कमरा बनाने पर मकान का उत्तर वायव्य अग्रेत हो जाएगा। इसी लिए उसके दूसरी ओर सामने उत्तर ईशान्य में घर से लगी दीवार बनानी होगी। तब दक्षिण से अधिक उत्तर में खाली जगह होना आवश्यक है।
प्रश्न : पूर्व सिंह द्वार वाले मकान के आग्नेय में उत्तर-दक्षिण सीढ़ियों के लैंडिंग के नीचे क्या स्नानागार बना सकते है ?
उत्तर : उत्तर से दक्षिण को चढ़ने वाली इन सीढ़ियों के नीचे अगर स्नानागार बनाएं तो आग्नेय अग्रेत हो कर बुरा होगा। अगर ऐसे कमरे बनाना जरूरी है, तो पूर्व ईशान्य में घर से लगी दीवार बनानी होगी। तब यह जरूरी है कि पश्चिम से पूर्व की ओर अधिक खाली स्थल हो ।
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प्रश्न: क्या पश्चिम मुख्य द्वार वाले मकान के पश्चिम- नैर्ऋत्य में स्थित सीढ़ियों के नीचे कमरे बनाये जा सकते हैं?
उत्तर : ये कमरे भवन से कम ऊंचाई वाले होंगे। इसलिए उनका निर्माण नहीं करना चाहिए ।
प्रश्न: क्या दक्षिण मुख्य द्वार वाले मकान के दक्षिण नैर्ऋत्य वाली सीढ़ियों के नीचे कमरे बना सकते हैं?
उत्तर : इस दिशा में किसी भी हालत में सीढ़ियों के नीचे कमरे बनाना मना है।
प्रश्न सीढ़ियों के नीचे वाले कमरों के दरवाजे कैसे हो?
उत्तर : सीढ़ियों के लैंडिंग के नीचे के कमरों के द्वार, किसी भी दिशा में, उच्च स्थान में हों, तो कोई दोष नहीं ।
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पूजन घर के बारे में विशेष
प्रश्न : घर में पूजन कक्ष किधर होना चाहिए? उत्तर : पूजन कक्ष हमेशा पूर्व, या घर के ईशान्य में होना चाहिए। प्रश्न : पूजा करते समय व्यक्ति पूर्व या ईशान्य दिशा में बैठे, अथवा उसका मुंह पूर्व या ईशान की तरफ होना चाहिए, इस बारे में बड़ी भ्रांति है। उत्तर : सूर्य प्रकृति की अनंत शक्ति से परिपूर्ण प्रत्यक्ष देवता है। जिधर सूर्य हो, उधर हमारा मुंह पूजा करते समय होना चाहिए। आप देखते हैं कि हम सूर्य नमस्कार एवं सूर्य को अर्घ्य सूर्य के सामने खड़े हो कर करते और देते हैं। अतः पूजा करते समय हमारा मुंह पूर्व या ईशान में ही हो, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। प्रश्न : कुछ लोग कहते हैं कि भगवान की मूर्तियां पूर्व तथा ईशान में मुंह किये हुए होनी चाहिएं। उत्तर : यदि भगवान की मूर्ति का मुंह पूर्व की ओर होगा, तो उसकी स्थिति पश्चिम में होगी। साधक का मुंह स्वतः ही पश्चिम की ओर हो जाएगा। यदि भगवान की मूर्ति का मुंह ईशान में है, तो साधक का मुंह नैऋत्य में होगा। दोनों ही स्थितियां गलत होंगी। प्रश्न : हम मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते तथा ईश्वर को सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान एवं सर्वत्र मानते हैं। ऐसी स्थिति में भी क्या प्रार्थना कक्ष पूर्व, या ईशान में होना चाहिए? उत्तर : मूर्ति पूजा को आप माने, या न माने, यह आपके व्यक्तिगत विश्वास एवं श्रद्धा का विषय है। ईश्वरीय शक्तियां आपके मानने, या नहीं मानने से प्रभावित नहीं होती। सूर्य को आप माने, या न माने, वह हर प्राणी को स्वच्छंद प्रकाश और ऊर्जा देता है। पर उसकी रहस्य से भरी अनंत शक्तियों को जानना जरूरी है। इस जानकारी से आपकी योग्यता और ज्ञान बढ़ते हैं। सूर्य को कोई फर्क नहीं पड़ता है। फिर सामान्य शिष्टाचार का नियम भी यही है कि हम किसी भी व्यक्ति का स्वागत, अभिवादन उसके सामने से करते हैं। सूर्य को हम सूर्य भगवान न भी माने, तो उसकी अनंत ऊर्जा और किरणों के दर्शन हमें पूर्व एवं अधिकतम ऊर्जा का दर्शन ईशान से ही होगा। अतः पूजा घर, या प्रार्थना कक्ष पूर्व अथवा ईशान में बनाना ही वैज्ञानिक पक्ष को स्वीकार करता है।
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हमारे पूर्वज सत्यखोजी ऋषि बहुत बड़े वैज्ञानिक थे। ऋषि शब्द का अर्थ है "ऋषियों रिसर्च कर्तार"। जो निरंतर सत्य एवं ज्ञान की खोज में शोध (रिसर्च) करते रहे, वे ही तो ऋषि कहलाये। ऋषि कभी गलत नहीं होते एवं शास्त्र कभी निष्फल नहीं होते। यह बात हमें वास्तु शास्त्र को पढ़ने के पहले खुले दिल और दिमाग से स्वीकार कर लेनी चाहिए। नास्तिकता मनुष्य का नकारात्मक गुण है; कृतघ्नता है। जो है उसको स्वीकार न करना नास्तिकता है। नास्तिकता से आज दिन तक किसी का भला नहीं हुआ। मनुष्य को ईश्वरीय शक्ति और देवत्व के प्रति सकारात्मक होना चाहिए एवं सदैव कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। तभी मानवीय सद्गुणों में वृद्धि होगी। प्रश्न : अधिकतर पूजा घर रसोई में होते हैं। क्या यह सही है? उत्तर : जिनके भी पूजा घर रसोई में हैं, वे सभी दुःखी एवं संतप्त हैं। उनके पूर्वज एवं भगवान दोनों ही उनसे नाराज रहते हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि भगवान तो भाव एवं सुगंध के भूखे होते हैं। रसोई घर में जो कुछ भी आप पकाते हैं, उसकी दुर्गंध भगवान एवं आपके पूर्वजों दोनों को ही सूंघनी पड़ती है। आपका उनके प्रति निरंतर यह व्यवहार ठीक नहीं। प्रश्न : घर के पूर्वजों की तस्वीरें कहां होनी चाहिए? com उत्तर:
1. घर में मृतात्मा पूर्वजों के चित्र सदैव नैऋत्य कोण, या पश्चिम दिशा में लगाने
चाहिएं। 2. घर का भारी सामान, अनुपयोगी वस्तुएं नैर्ऋत्य कोण में रखनी चाहिएं। 3. मृतात्मा का चित्र पूजन कक्ष में देवता के साथ लगाने से बचें। पूर्वज हमारे आदर
और श्रद्धा के प्रतीक हैं। वे हमारे इष्ट देवता का स्थान नहीं ले सकते। प्रश्न : क्या हमारे पूर्वज ईश्वरतुल्य नहीं? पूर्वजों की तस्वीरें ईश्वर के आले
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में रख कर उनकी पूजा क्यों नहीं की जा सकती ?
उत्तर: संसार का कोई भी मनुष्य ईश्वरतुल्य नहीं हो सकता जब जीवित व्यक्ति ईश्वरतुल्य नहीं हो सकता, तो मरने के पश्चात तो वह मिट्टी है। पंच तत्व का यह शरीर पंच तत्व में विलीन हो जाता है । मृतात्मा की पूजा तो प्रेत पूजा हो जाती है। क्योंकि हमारे पूर्वज सदैव हमारे आदर एवं श्रद्धा के प्रतीक हैं, उन्होंने हमें जन्म दिया है इसलिए उनका स्मरण कर, हम उनके प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हैं। उनके स्मरण और दर्शन से हमें नयी प्रेरणा, ऊर्जा एवं नयी शक्ति की प्राप्ति होती है। कई बार वे देवत्व शक्ति धारण कर, पूर्वज के रूप में, हमारे और हमारे घर की रक्षा करते हैं। अतः निःसंदेह वे पूजनीय हैं। पर सदैव स्मरण रहे कि वे दिवंगत हैं एवं ईश्वर के समतुल्य उनकी पूजा एक दोष में परिणत हो जाएगा, जिसे वे स्वयं स्वीकार नहीं करेंगे।
अतः पूर्वजों की तस्वीरें पश्चिम, नैर्ऋत्य, या दक्षिण दिशा में स्थापित कर उनका पूजन किया जा सकता है। कई लोग पनिहारे पर भी सायं काल दीपक नियमित रूप से जलाते हैं। ऐसी अवस्था में यह प्रेत पूजा न हो कर पितृ पूजा, पूर्वजों की पूजा में बदल जाती है, जो व्यक्ति को अनंत ऊर्जा एवं रहस्यमय शक्तियों से परिपूर्ण कर देती है।
प्रश्न : कई लोग ईशान में बड़ा चबूतरा बना कर पूजा स्थल बनाते हैं । क्या यह सही है?
उत्तर : ईशान में बड़ा चबूतरा बना कर भार डालना गलत होगा। हां, पूजा स्थल सामान्य से ऊंचाई (Raised-plateform) पर होना चाहिए ।
प्रश्न: क्या पूर्व या ईशान की दीवार में प्रकोष्ठ ( आला) बना कर पूजा स्थल बनाया जा सकता है?
उत्तर : अवश्य। पर इस प्रकोष्ठ के ऊपर अन्य वस्तुएं, पछीत, या दूसरा आला (प्रकोष्ठ ) नहीं होने चाहिएं।
प्रश्न : हमारी लोहे की अलमारी पूर्व दिशा में रखी है। क्या उसके ऊपरी खंड में पूजा स्थल स्थापित हो सकता है?
उत्तर : हां! पर यह चलायमान चंचल पूजा होगी। पूजन कक्ष स्थिर और स्थाई होना चाहिए तथा पूजा समय के अतिरिक्त, उसे हिलाना या छेड़ना गलत होगा ।
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प्रश्न : क्या घर का पूजन कक्ष स्वतंत्र होना चाहिए? उत्तर : मनुष्य को यदि आध्यात्मिक शक्ति से परिपूर्ण एवं तेजस्वी होना है, तो उसका पूजन कक्ष स्वतंत्र होना चाहिए। जब हम बच्चों के लिए कमरा, बड़े-बड़े शौचालय एवं स्नानागार, मनोरंजन एवं खाने के लिए हॉल बनाते हैं, तो क्या ईश्वर के लिए, स्वयं की उन्नति हेतु एक छोटा सा प्रार्थना कक्ष, भगवान के निमित्त अलग से नहीं बना सकते? यह हमारी संकीर्ण मनोवृत्ति को ही दर्शाता है, पूजा कक्ष स्वतंत्र न बना सकें, तो पूर्व में मंडप जरूर बनाना चाहिए। रसोई घर एवं चूल्हा प्रश्न : रसोई एवं चूल्हे के लिए सही जगह कौन सी है? उत्तर : घर में आग्नेय कोने में रसोई एवं चूल्हा लगाना उत्तम है। परंतु पूर्व के दीवार में खोल बना कर उसमें
रसोईघर चूल्हा नहीं बनाना चाहिए। इससे कमरे का पूर्व-आग्नेय अग्रेत हो जाएगा। यह दोषकारक है। चूल्हा ऐसे बनाएं, जिससे रसोई बनाने वाले का मुंह पूर्व की ओर हो। प्रश्न : यदि घर में अग्निकोण मिलना संभव न हो तो चूल्हा किस दिशा में बनाना चाहिए? उत्तर : पूर्व मुख्य द्वार वाले घरों के अंदर घर के वायव्य और नैर्ऋत्य दिशा में बने कमरों के आग्नेय कोने में चूल्हे बना सकते है।
उत्तर
रसोईघर
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प्रश्न : दक्षिण मुख्य द्वार वाले घर में आग्नेयकोण न मिले, तो चूल्हा कहां बनाना चाहिए? उत्तर : वायव्य के कमरे में आग्नेय कोने में चूल्हा बना कर पूर्व की ओर मुख कर के रसोई बनानी चाहिए। चूल्हे को, उत्तरी दीवार से लगे बिना, तीन इंच जगह छोड़ कर एक या दो फुट चौड़ा चबूतरा पूर्वी दीवार के साथ बना कर उस पर रख सकते हैं। इसके अतिरिक्त, उत्तरी दीवार से तीन इंच दूर, पूर्व की दीवार से लगे, पूर्व से दक्षिण आग्नेय तक और दक्षिण और पश्चिम दीवारों से लगे पश्चिम वायव्य तक चबूतरा बना कर उस पर भी चूल्हा रख कर रसोई बना सकते हैं। इस चबूतरे के नीचे खुली जगह रहनी चाहिए। चूल्हा पश्चिम को और पकाने वाले का मुंह पूर्व की ओर होने चाहिएं। जो भी हो, पूर्व की दीवार में प्रकोष्ठ (आला) बना कर उसमें चूल्हा नहीं रखना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान गृहस्वामी को रखना चाहिए।
घर में बैठक किधर होनी चाहिए?
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घर की बैठक (Drawing-Room) या रहवास का कमरा (Living-Room) प्रायः दक्षिण दिशा में रखना चाहिए। शौचालय संस्कृति का जोर आजकल 'टॉयलेट' संस्कृति का प्रचलन बढ़ गया है। प्रत्येक व्यक्ति अपने घर के शौचालय (Toilet) पर ज्यादा से ज्यादा रुपया खर्च कर रहा है। किसी भी आधुनिक इमारत को देखें, तो उसमें सबसे सुंदर उस घर का शौचालय ही होगा। इतना ही नहीं, आजकल घरों में शयन कक्ष से लगे शौचालय की पद्धति चल पड़ी है। जहां देखो शौचालय बनने लगे हैं। पर जहां तक हो सके शौचालय और स्नान घर एक साथ नहीं होने चाहिएं। यह पद्धति भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं है। शौचालय संबंधी कुछ नियम इस प्रकार हैं :
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1. रसोई ओर शौचालय कभी भी आमनेसामने नहीं होने चाहिएं। 2. शौचालय पश्चिम या दक्षिण में होना चाहिए। 3. शौचालय और स्नानागार यदि, जगह की कमी के कारण, एक साथ हों, तो भूल
कर भी इसे ईशान या पूर्व दिशा में न बनाएं। 4. स्नानागार में खिड़की पूर्व की तरफ रखनी चाहिए। 5. स्नान करते समय व्यक्ति का मुंह पूर्व की तरफ हो, तो बहुत उत्तम । 6. शौचालय में बैठते समय मुंह पूर्व की ओर होना चाहिए, ताकि गैस, कब्ज तथा मस्से
की शिकायत न हो। 7. दक्षिण और पश्चिम की तरह मुंह कर के बैठने से व्यक्ति अनेक प्रकार की बीमारियों
से पीड़ित हो सकता है।
आदर्श शौचालय
उत्तर
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जहां तक हो सके, संयुक्त स्नान घर न बनाएं। बीच में दीवार खींच लें। शौचालय के दरवाजे पूर्व की ओर खुले हों। 1. शौचालय में कमोड सदैव नैऋत्य में होना चाहिए, अथवा दक्षिण में हो, तो उत्तम
2. कमोड पर बैठते समय मुंह उत्तर, पूर्व, ईशान दिशाओं में हो, तो व्यक्ति को कब्ज,
मस्सा और गैस की बीमारी नहीं रहेगी।
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सीढ़ियों का विस्तृत वर्णन
प्रश्न : छत की सिढ़ियां मकान के अंदर या बाहर बनायी जानी चाहिए? उत्तर : सीढ़ियां घर के अंदर या बाहर, पूर्व से पश्चिम, या उत्तर से दक्षिण की ओर चढ़ने योग्य बनानी चाहिएं। पश्चिम से पूर्व को, या दक्षिण से उत्तर को, या दक्षिण से उत्तर को चढ़ने वाली सीढ़ियां नहीं बनानी चाहिए।
1. सीढ़ियां हमेशा पश्चिम, या उत्तर के भाग की ओर ही होनी चाहिएं।m
2. चढ़ते समय सीढ़ियां हमेशा दायीं तरफ मुड़नी चाहिएं।
3. सीढ़ियां हमेशा विषम संख्या में होनी चाहिए; अर्थात यदि तीन से भाग दें, तो शेष 2 बचनी चाहिए।
उपर NORTH
परम WEST
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Up
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प्रश्न : मकान के बाहर पूर्व - आग्नेय में सीढ़िया कैसे बनाएं ?
उत्तर : पूर्व की चारदीवारी से दूर, उत्तर से दक्षिण की ओर चढ़कर, वहां घूम कर दक्षिण
से उत्तर की ओर चढ़ कर, पूर्व ईशान्य में निर्मित बरामदे से होते हुए मंजिल
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के उच्च स्थान में प्रवेश करने योग्य सीढ़ियां बनानी चाहिएं। सीढ़ियों के नीचे खंभा न बनाएं। बीम बनाना फिर भी ठीक होगा।
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प्रश्न : पश्चिम की ओर नैर्ऋत्य में सीढ़ियां कैसे बनायी जाए? उत्तर : दीवार से परे हो कर, उत्तर से दक्षिण को चढ़, वहां घूम कर, दक्षिण से उत्तर को चढ़ कर, पश्चिम वायव्य में बनी बरामदे से हो कर, मंजिल के अंदर उच्च स्थान में प्रवेश करना चाहिए। इस निर्माण में पश्चिम में बरामदा बन रहा है। इसलिए पूर्व में भी अवश्य बरामदा बनाना होगा। प्रश्न : सीढ़ी बनाने के मुख्य नियम क्या हैं?ndi .com
उत्तर:
1. सीढ़ियां हमेशा घर के नैऋत्य कोण में बनाएं, जो दक्षिण से पश्चिम की ओर जाएं।
सीढ़ी मकान के पश्चिम या उत्तर भाग में भी हो सकती हैं। 2. ऊपर की ओर जाने वाली सीढ़ियों की संख्या सदैव एकी (odd) नंबर में होनी
चाहिएं, यथा 5-7-9-11 इत्यादि। 3. घर में घुसते ही सीढ़ियां नहीं दिखनी चाहिएं। 4. मुख्य प्रवेश द्वार के ऊपर सीढ़ी नहीं होनी चाहिए।
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5. सीढ़ियां सदैव दायीं तरफ (Anti-clock-wise) होनी चाहिएं। 6. जहां तक हो सके, सीढ़ियां चिकनी नहीं होनी चाहिएं। 7. एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी के मध्य 9" इंच का अंतर आदर्श अंतर है। इससे अधिक
अंतर ठीक नहीं। 8. जहां तक हो सके, सीढ़ियों के दोनों ओर
हत्था लगाएं। 9. सीढ़ियों के नीचे (Sloping) शयन कक्ष ।
या बैठक नहीं होने चाहिएं। 10. सीढ़ियां कभी ईशान में न बनाएं। 11. प्रारंभ में कभी त्रिकोण सीढ़ियां (Steps)
न बनावें। 12. सीढ़ी के नीचे पूजा गृह कभी न बनाएं। 13. सीढ़ी के नीचे शौचालय नहीं बनाना चाहिए,
वर्ना कब्जी, मस्सा एवं बदहजमी की
शिकायतें होंगी। 14. आपत्ति काल सीढ़ी के नीचे में स्नान गृह (Bath-Room) बना सकते हैं। 15. सीढ़ी के नीचे गोदाम (Store) बना सकते हैं। प्रश्न : गोल सीढ़ियां कैसे बनानी चाहिए? उत्तर : किसी भी मुख्य द्वार वाले घर की गोल सीढ़ियां दक्षिण आग्नेय या पश्चिम वायव्य में बना सकते हैं। परंतु पूर्व और उत्तर में अवश्य बरामदे बनाने होंगे।
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2. सड़क नैर्ऋत्य दिशा में हो, तो सीढ़ियां आग्नेय में बनानी होंगी, जो ईशान्य से
नैर्ऋत्य की ओर बढ़ेगी।
बालकांनी
बालकांनी
मकान
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3. सड़क अगर वायव्य में हो, तो सीढ़ियां पश्चिम में ईशान्य से नैऋत्य को चढ़ती
हुई बनानी चाहिए।
बालकांनी
बालकांनी
बयत
मकान
बालकांनी
4. ईशान में मार्ग हो, तो सीढ़ियां आग्नेय में दक्षिण की ओर, या वायव्य में पश्चिम
की ओर, ईशान्य में नैऋत्य की ओर चढने वाली बनानी चाहिएं।
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प्रश्न घर के अंदर घुमाऊ सीढ़ियां कैसे बनानी चाहिए?
उत्तर : पूर्व नैर्ऋत्य, उत्तर और ईशान्य के कमरों को छोड़ कर, दूसरे कमरों में सीढ़ियां बनायी जा सकती हैं। पहले उत्तर से दक्षिण को चढ़ कर वहां लैंडिंग पर घूम कर, पूर्व से पश्चिम को चढ़ कर लैंडिंग पर घूम कर पूर्व से पश्चिम को चढ़ कर लैंडिंग हो कर वहां से फिर से पश्चिम से पूर्व को चढ़ने वाली सीढ़ियां बनानी चाहिएं घर के बाहर आग्नेय, नैर्ऋत्य और वायव्य में सीढ़ियां बनाते समय ऊपर बताये गये नियमों का पालन करना जरूरी है।
पश्चिम
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उत्तर
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प्रश्न सीढ़ियों की लैंडिंग कैसी होनी चाहिए?
उत्तर : घर के अंदर पश्चिम और दक्षिण में, घर के बाहरी दीवार के साथ लगी, वायव्य और आग्नेय में सीढ़ियां बनाते समय लैंडिंग सीढ़ियों के बीच में बड़ा विश्राम स्थल पश्चिम और दक्षिण में आने वाली बनानी चाहिए। वह घर की सीध से आगे बढ़ भी जाए, तो कोई बात नहीं ।
उत्तरी मार्ग
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पश्चिमी मुख्य द्वार वाले घर के बाहर की
सीढ़ियां
प्रश्न : उत्तर दिशा के वायव्य में सीढ़ियां कैसे बनानी चाहिए? उत्तर : उत्तर में चारदीवारी को लगे बिना, पूर्व से पश्चिम को चढ़कर, फिर घूम कर पश्चिम से पूर्व को चढ़कर, उत्तर ईशान्य में बने बरामदे से हो कर, मंजिल के उच्च स्थान में प्रवेश करने योग्य सीढ़ियां बनानी चाहिए।
www. Apna उत्तर सिंह द्वार वाले घर के बाहर की सीढियां
प्रश्न : दक्षिण में नैऋत्य की सीढ़ियां कैसे बनाएं? उत्तर : पूर्व से पश्चिम को चढ़ कर, वहां घूम कर, पश्चिम से पूर्व को चढ़कर, दक्षिण आग्नेय में बनाये गये बरामदे से हो कर, छत पर उच्च स्थान में प्रवेश करने योग्य सीढ़ियां बनानी चाहिएं। इस प्रकार दक्षिण में सीढ़ियां बनाने से दक्षिण में बरामदे का निर्माण हो रहा हैं। इसलिए उत्तर में भी बरामदा बनाना आवश्यक है। सीढ़ियों के नीचे खंभा न बनाएं। बीम बनाना ज्यादा अच्छा रहेगा।
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प्रश्न : प्रवेश द्वार के सामने सीढ़ियां क्यों नहीं होनी चाहिए?
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उत्तर : इस चित्र में सीढ़ियां प्रवेश द्वार के सामने हैं, जो सरासर गलत है। चीनी मान्यता के अनुसार ऐसी स्थिति वाली सीढ़ियों के कारण मकान का चुंबकीय तारतम्य (Ci) नष्ट हो जाता है और उसका प्रतिकूल प्रभाव गृहस्वामी पर होता है।
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अध्याय - 4
4. Interior Decoration
आंतरिक वास्तु एवं साज सज्जा, आंतरिक वास्तु के संदर्भ में चीनी आकृतियां, आंतरिक साज-सज्जा, सोफा कहां रखें, आंतरिक साज-सज्जा एवं रंग, पूर्वजों के चित्र घड़ी लगाने की जगह टी. वी. कहां रखें, पिरामिड के बारे में जिज्ञासा।
आंतरिक वास्तु एवं साज-सज्जाः वास्तु संबंधी विद्या का उपयोग जितना बाहरी निर्माण में किया गया है, उतना ही उपयोग आंतरिक साज-सज्जा के लिए विदेशों में किया जाता है अपितु यह कहा जा सकता है कि आजकल आंतरिक साज-सज्जा को सर्वाधिक महत्व दिया जा रहा है। बिना
तोड़ के मकान,
भवनों को भाग्यवर्धक एवं अनुकूल बनाने में आंतरिक वास्तु दीवारों के रंग-रोगन एवं साज-सज्जा पर विशेष ध्यान दिया जाना। सबसे ज्यादा जरूरी है।
चीन, सिंगापुर, हांगकांग, बैंकॉक एवं मध्य एशिया में मुख्य द्वार पर, बैठक में
एवं व्यापारिक संस्थान के परामर्श कक्ष
में इस प्रकार के शेर एवं डरावने जानवरों के चित्र लगे होते हैं, जिसका अभिपाय होता है घर, होटल एवं व्यवसाय स्थल में बुरी आत्माओं के प्रवेश पर रोक। ऐसी मान्यता है कि ऐसे स्थलों पर ऐसे चित्र लगाने से बुरी आत्माएं गंदी हवाएं प्रवेश नहीं कर पातीं।
अनेक पाठकों के पत्र आते हैं कि इस महंगाई के युग में कोई ऐसी तरकीब बताएं कि बिना विशेष तोड़-फोड़ के हमारा कार्यालय और उद्योग सही हो जाएं। ऐसे उपायों
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का जिक्र 'संपूर्ण वास्तु शास्त्र' नामक पुस्तक के पृष्ठ 106 में किया गया। इससे सैकड़ों लोगों को लाभ हुआ। अब प्रबुद्ध पाठकों की जानकारी हेतु यहां कुछ अनछुए विषयों पर सामग्री दी जा रही है। आंतरिक वास्तु के संदर्भ में चीनी आकृतियां :
READ
चित्र-अ
चीन में ड्रैगन (Dragon) की आकृति को शुभ मानते हैं, क्योंकि वह बहुत ही खतरनाक एवं रहस्यमय शक्तियों का स्वामी होता है। वहां मान्यता है कि ड्रैगन की उपासना से अन्य अशुभ आत्माएं उन्हें तंग नहीं कर पातीं। चित्र अ में दर्शाया गया चिमेरा (Chimera) का यह चिह्न पौराणिक है। चीनी मान्यता के अनुसार यह जानवर चिमेरा, शक्ति, प्रभुत्व और ताक का द्योतक है। यह चिह्न प्रायः चादर, तकियों, पर्दो और पूजा गृहों के वस्त्रों पर उकेर कर बनाया जाता है।
HESIRAMA
चित्र-ब
चित्र ब में प्रदर्शित उड़नशील पक्षी फीनेक्स (phoenix) का यह चित्र बुद्धि वैभव और विलास का प्रतीक है। इसका चित्र भी छत, पर्दे, चादर एवं बैठक की दीवारों पर बनाया जाता है।
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चित्र स चित्र स में प्रदर्शित उछलते हुए हिरण की आकृति भाग्य, धन एवं सुअवसर की प्राप्ति का प्रतीक चिह्न हैं। ऐसी आकृति लकड़ी के तख्तों पर उकेर कर दीवार और दरवाजों पर विशेष रूप से लगायी जाती हैं।
आंतरिक टाइल
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उपर्युक्त नमूने उत्तम ग्रहों और सितारों के अनुकूल प्रभाव की संरचना को बताते हैं जो धैर्य एवं दीर्घायु प्राप्ति के संकेत चिह्न हैं। इस प्रकार के प्लास्टिक टाइल, वॉल पेपर, छत की टाइल (Tiles) मेज, शयन कक्ष के चादर मध्य एशिया, हांगकांग, बैंकॉग, सिंगापुर, चीन एवं जापान में बहुतायत से पाये जाते हैं, जो आंतरिक साज-सज्जा के अभिन्न अंग हैं।
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आंतरिक साज-सज्जा
OutO STRIC
उपर्युक्त चारों चित्राकृतियां कछुए की पीठ की चित्रावली से मिलती जुलती हैं। ये आकृतियां दीर्घायु की संकेतक हैं, जो चीन, मकाऊ एवं पूर्वी एशिया के घरों होटलों में आंतरिक साज-सज्जा (वास्तु) के संदर्भ में लगायी जाती हैं।
इस प्रकार की चित्राकृतियां जल एवं बादल (आकाश) तत्व को प्रतिबिंबित करती हैं। जो स्वर्गीय आनंद एवं आर्शीवाद के रूप में पूजा गृहों, मंदिरों की दीवारों और छतों पर लगायी जाती है।
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आंतरिक साज-सज्जा : सोफा कहां रखें?
घर की बैठक (Drawing-Room) में सोफा या सजावटी फर्नीचर कभी भी पूर्वी, या उत्तरी दीवार की ओर नहीं रखें। सोफा हमेशा घर की पश्चिमी या दक्षिण दीवार के सहारे रखें। यदि परिस्थितियां साथ न दें एवं सोफा पूर्वी दीवार, या उत्तरी दीवार पर ही ठीक बैठता हो, तो उसे इन दीवारों से 6 इंच की दूरी पर रखें। इससे दोष नगण्य हो जाएगा। चित्र अ देखें।
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बैठक की आंतरिक सज्जा
आपकी बैठक (Drawing-Room) में पूर्व और उत्तर दिशा में ज्यादा खाली जगह होनी चाहिए। घर में भी यही नियम लागू होता है।
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आंतरिक साज-सज्जा एवं रंग (Interior decoration & colours) आंतरिक साज-सज्जा एवं रंगों के बड़े भारी प्रभाव को भारत एवं सभी विदेशी संस्कृतियों ने एकमत से स्वीकार किया है। दीवारों के रंग, आंखों के माध्यम से, दिल में उतरते हुए, मन की गहराई को छू जाते हैं तथा अपने अनुकूल और प्रतिकूल रश्मि स्पंदनों से मानव मन-मस्तिष्क को विलक्षण ढंग से प्रभावित करते हैं। रत्न चिकित्सा (Gem therapy), रंग चिकित्सा (Colour therapy), रंग स्नान (Colour bath) चिकित्सा के अस्तित्व और उपचार को जहां वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है, वहीं घर की आंतरिक साज-सज्जा और रंगों की योजना से ग्रह-नक्षत्र के कारण आने वाली तथा अन्य बाधाएं एवं वास्तु दोष दूर होते हैं, इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। भारतीय ज्योतिष शास्त्र एवं वास्तु शस्त्र रंगों की इस अवधारणा को अकाट्य तर्कों के साथ परिपुष्टित करता है। उनका मानना है कि यदि व्यक्ति सूर्य ग्रह से प्रभावित है, सिंह राशि, सिंह लग्न का है, जन्मकुंडली में सूर्य ग्रह उच्च का, स्वगृही, या अनुकूल स्थिति में है, जो घर, होटल, दुकान की दीवारों का रंग सुनहरी पीला (Golden Yellow) सुनहरे बॉर्डर वाला हल्का गुलाबी, या पीला होना चाहिए। इससे व्यक्ति की सूर्य संबंधी तत्व एवं शक्तियां बढ़ेगी।Hinali.com यदि व्यक्ति चंद्र तत्व प्रधान है, कर्क राशि, कर्क लग्न का जातक है, चंद्रमा स्वगृही, या उच्च का है, तो उसके घर की दीवारें दूधिया सफेद और मोतिया रंग की (Pearl white Milk white) होनी चाहिए। घर में चांदी जैसे रंग (White-Metal) की सजावटी सामग्री अधिक होनी चाहिए।
यदि व्यक्ति मंगल तत्व प्रधान है, मेष, वृश्चिक राशि या लग्न वाला जातक है, जन्मकुंडली में मंगल मेष, वृश्चिक या मकर राशि का है, तो ऐसे अनुकूल मंगल ग्रह को और अधिक अनुकूल करने के लिए ऐसे जातक को अपने बैठक नारंगी लाल,
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क्रिमसन लाल, कोरा लाल (Orange-red, Crimson red, Cora-red) की करानी चाहिए। दरवाजों और खिड़कियों के पर्दे में भी इन्हीं रंगों की प्रचुरता होनी चाहिए। यदि व्यक्ति बुध ग्रह से प्रभावित है, व्यक्ति की राशि मिथुन, अथवा कन्या है, या मिथुन कन्या लग्न में बुध ग्रह की स्थिति अनुकूल है, अथवा बुध वृष या सिंह का हो कर स्वगृहाभिलाषी है, तो ऐसे बुध को और अधिक अनुकूल बनाने के लिए जातक के घर की दीवारों का रंग, खास कर निर्णयात्मक कक्ष (Consulting room) की दीवारें हरे रंग की (Green) होना चाहिएं। हरा रंग हल्का भारी, तोता रंग, मृगिया रंग इत्यादि किसी भी प्रकार का हो सकता है। यदि व्यक्ति गुरु तत्व प्रधान है, धनु-मीन राशि, या लग्न वाला है, बृहस्पति की चेष्टाएं बलवान हैं, तो, ऐसे सज्जन को अपने घर की दीवारों पर हल्का पीला, क्रीम (Topa/ colour lightyellow) सुनहरा पीला (Goldenyellow) रंग कराना चाहिए। यदि व्यक्ति शुक्र तत्व प्रधान है, वृष, या तुला लग्न एवं राशि का जातक है, शुक्र चेष्टावली है, तो, उसे और अधिक अनुकूल बनाने के लिए, घर की दीवारों का रंग चमकीला श्वेत (Dimaond-White) क्रीम कराना चाहिए। घर की आंतरिक साज-सज्जा में ऐश्वर्यशाली वस्तुएं, सौंदर्य प्रधान एवं कलात्मक वस्तुएं काम में लेनी चाहिएं। घर में कांच (Glass) के उपयोग की बाहुल्यता होनी चाहिए। घर में स्वच्छता और रोशनी पर विशेष ध्यान देने पर जातक का शुक्र हर्षित एवं बली रहेगा तथा जातक की उन्नति और उसके भाग्योदय में सहायक होगा। यदि व्यक्ति शनि तत्व प्रधान है, मकर कुंभ राशि का, या मकर-कुंभ लग्न का जातक है, शनि स्वगृही, उच्च का अथवा उच्चाभिलाषी (कन्या राशि का) है, तो घर की दीवारों को पुष्पों-पुष्पाहारों द्वारा, अच्छे सौभाग्य की सूचना हेतु, सजाया जाता है। दक्षिण द्वार वाले मकान के सामने पानी (जल) एवं मकान के पीछे उत्तर भाग में ऊंचे पर्वत और पठार का होना शुभ माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार आज से तीन हजार वर्ष पूर्ण चीन में "फेंग सुई" का आविष्कार हो चुका था। वहां से यह विद्या सीधी जापान में प्रचलित हुई। जापान से यह विद्या दक्षिण पूर्व एशिया में फैली। चीनी वास्तुविज्ञ ऐसा मानते हैं कि प्राकृतिक (नैसर्गिक) रूप से दिखलाई देने वाली आकृति जिस जानवर जैसी होती है, वैसा ही फल मिलता है। उदारणार्थ कोई पर्वत कछुए जैसा दिखलाई देता है, तो यह शुभ है, क्योंकि उस पर्वत के आश्रम स्थल में रहने वाले लोग कछुए की तरह दीर्घायु को प्राप्त करेंगे। चीन में दैत्याकार जानवर ड्रैगन (Dragon) को शुभ मानते हैं। यदि पर्वत दैत्याकार ड्रैगन
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जैसा दिखलाई देता है, तो वह शक्ति तथा अनुकूल पर्यावरण का संकेतक है।
शयन कक्ष में कभी भी जानवरों की लड़ाई का चित्र, अग्नि, चमगादड़, सर्प, कौओं, उल्लू, बिल्ली, शेर एवं नग्न चित्र न लगाएं। आधुनिक चित्र कला के नाम पर ऊटपटांग एवं मानसिक शांति भंग करने वाले, भड़कीले चित्र शयन कक्ष में न लगाएं। ईसा से 1200 वर्ष पूर्व चीनी वास्तुविज्ञों ने सारे संसार को पांच तत्वों से निर्मित माना। ये पांच तत्व हैं - सुवर्ण, लकड़ी, जल, अग्नि और पृथ्वी। इसके बाद उन्होंने ग्रह-नक्षत्रों को खोज निकाला और यह माना कि सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। जो व्यक्ति चीन में ज्योतिष वास्तु विज्ञान को जानता है, उसी डी-ली जियागा जियो ग्राफर (Geographer) कहते हैं। वे धरती और स्वर्ग के बीच की खुशियों को कंपास के द्वारा सुनिश्चित करते हैं। कहते हैं कि चुंबकीय कंपास का आविष्कार सबसे पहले चीन ने आठवीं शती में किया। चीन में बीमार व्यक्ति को औषधियां भी इसी यिन (Yin) और येंग (Yang) के आधार पर दी जाती हैं। कई भवन स्वामी ऐसा सोचते हैं कि वे वास्तु विशेषज्ञ की सलाह पर अपने मकान का द्वार, या अन्य स्थल, आर्थिक विपन्नता के कारण, नहीं बदल सकते। ऐसे में “फेंग सुई" से क्या लाभ? ऐसे लोग वास्तु शास्त्रियों को भारी फीस देने से भी कतराते हैं। पर वास्तविकता यह नहीं है। फेंग सुई के अनुसार आप भवन की आंतरिक संरचना, साज-सज्जा, फर्नीचर, मछली घर, चित्र एवं सजावटी सामानों को इधर-उधर कर के, उन्हें ठीक ढंग से स्थापित कर के, भूगर्भीय शक्तियों की अनुकूल रश्मियों को प्राप्त कर सकते हैं। बैंकॉक हांगकांग, ताइवान, सिंगापुर में कोई भी होटल, व्यापारिक संस्थान, या बहुमंजिली इमारत वास्तु शास्त्री की सलाह बिना नही बनते। मकान की कीमत का
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पांच प्रतिशत हिस्सा वास्तुविद् को देना पड़ता है। एक बार आने के पांच सौ डॉलर एवं पचास हजार डॉलर तक मासिक (50,000) वास्तु कला विशेषज्ञों की तनख्वाह है। सिंगापुर की मशहूर पंचतारा होटल ध्यान में दरवाजा, काउंटर, फव्वारे एवं स्वागत कक्ष में वास्तु कला विज्ञानी की सलाह से परिवर्तन कर के अपने व्यापार को सुधार गया तथा लाखों-करोड़ों डॉलर का मुनाफा कमाया गया। हमेशा ध्यान रखें कि गृहस्वामी की समृद्धि की मुख्य चुंबकीय शक्ति घर के प्रवेश द्वार से हो कर घर में प्रवेश करती हैं। अतः प्रवेश द्वार में किसी प्रकार की कोई रुकावट नहीं होनी चाहिए ।
बाहरी वातावरण का कितना कुप्रभाव गृहस्वामी पर किस खतरनाक तरीके से पड़ता है, इसकी एक सत्य घटना पाठकों को जरूर बताएंगे। हांगकांग के एक सम्पन्न व्यापारी का समुद्र के किनारे, समुद्र की ओर मुंह किये हुए (Seafacing) एक सुंदर सा कॉटेज, सभी प्रकार से सुंदर एवं सभी प्रकार की आरामदायक सुख-सुविधाओं से युक् था, परंतु गृहस्वामी के 'गृह प्रवेश' के तुरंत बाद भाग्य ने करवट ली । गृहस्वामी का सुंदर बच्चा बीमारी से चल बसा। उसकी पत्नी गंभीर बीमार पड़ गयी एवं व्यापार में उसे भारी आर्थिक घाटा हुआ।
गृहस्वामी ने किसी वास्तु विज्ञ को अपना काटेज दिखलाया। पर उसमें कोई त्रुटि दिखलाई नहीं पड़ी। कुछ महीने बीते और गृहस्वामी की पत्नी भरपूर इलाज के बाद मर गयी। फिर उसने दूसरे वास्तु शास्त्री को बुलाया, पूरा काटेज दिखाया, पर उससे भी कोई सहायता नहीं मिली। फिर उसने एक वास्तु शास्त्री को अपने यहां मासिक वेतन पर रख लिया और उसे नियमित रूप से नित्य प्रति की गतिविधियों पर निगाह रखने को कहा, क्योंकि गृहस्वामी को यह पक्का विश्वास था कि इस काटेज के फेंग
सुई में कहीं कुछ गड़बड़ है। वास्तु शास्त्री एक माह तक उस काटेज में रहा । मा के आखिरी दिन वह सवेरे जल्दी उठा। उसने देखा काटेज के ठीक सामने, एक बड़े मेंढ़क की आकृति में मुंह फाड़े हुए, विकृत चट्टान खड़ी थी । वास्तु शास्त्री ने गृहस्वामी को इससे अवगत कराया। गृहस्वामी ने भी उस विकृत और डरावनी चट्टान को देखा,
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जो केवल कम पानी होने पर दिखलाई देती थी। गृहस्वामी ने मजदूरों को बुला कर चट्टान तोड़ने का काम सौंपा। इस बीच वह खुद बीमार पड़ गया। आखिरकार उसने वह मकान बदला। उसके स्वास्थ्य में सुधार हुआ, परंतु फिर उसने वहां जाने में रुचि नहीं दिखायी । तबसे ले कर अब तक वह काटेज, खाली पड़ा-पड़ा, जीर्ण खंडहर में बदल गया है।
मध्यप्रदेश का एक बड़ा शहर है जबलपुर। वहां से एक सज्जन का बुलावा आया मकान वास्तु शास्त्र के नियमों से बना है। वास्तु विशेषज्ञ ने स्वयं खड़े रह कर उसे बनवाया है। परंतु गृहप्रवेश के बाद घर में ठीक से नींद नहीं आ रही है, जबकि हमारा शयन कक्ष भी वास्तु नियमों के अनुसार दक्षिण-उत्तर की ओर हैं। घर का नक्शा भी भेजा, पर बात कुछ बनी नहीं। उन्हें सुझाव दिया गया कि आप पांच हजार रुपये के भेजिए। ट्रेन का आरक्षण कराईए। मैं अमुक तारीख को आ सकता हूं। मुझे आपके भवन की आंतरिक सज्जा को देखना होगा। सज्जन मान गये । निश्चित तिथि पर मैं
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जबलपुर पहुंचा। पूरा भवन देखा, निरीक्षण किया, परंतु जब शयन कक्ष में प्रवेश किया, तो अवाक रह गया। वहां एक शेर की डरावनी खाल लटकी हुई थी। एक गेंडे का मसाला भरा हुआ शरीर था । शयन कक्ष के सामने ही आधुनिक कलाकृति के नाम पर ऊटपटांग भड़कीले रंगों वाला चित्र थ । नींद नहीं आने के सारे माध्यम तो शयन कक्ष में मौजूद थे, फिर नींद आये, तो कैसे? मैंने शयन कक्ष की आंतरिक साज-सज्जा पूरी बदली। उसमें कुछ सुंदर और सुखद परिवर्तन किये। तब जा कर गृहस्वामी को भरपूर निद्रा आने लगी। ध्यान रहे शयन कक्ष में कभी भी हिंसक प्राणी की मूर्ति, प्रतिमूर्ति का चित्र नहीं होना चाहिए। युद्ध-लड़ाई, मार-काट डरावने या ऊटपटांग चित्र यहां तक कि बेतरकीब रंगे हुए चित्र भी गृहस्वामी की नींद को खराब कर देते हैं इसलिए कुशल वास्तुविद को चाहिए कि गृहस्वामी की आंतरिक साज-सज्जा का भी भली भांति निरीक्षण करे।
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पूर्वजों के चित्र
नैऋत्य
उत्तर
पश्चिम
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1. अपने घर में मृतात्मा पूर्वजों के चित्र हमेशा नैऋत्य कोण में लगाने चाहिएं। घर
का भारी सामान, अनुपयोगी वस्तुएं भी नैर्ऋत्य कोण में रखनी चाहिएं। 2. मृतात्मा का चित्र पूजन कक्ष में देवता के साथ उन्मुख होता है। इससे बचें। 3. मृतात्मा या पूर्वज हमारे आदर और श्रद्धा के प्रतीक हैं। पर वे इष्ट देवता की
जगह नहीं ले सकते। 4. मृतात्मा पूर्वजों की पूजा विधि-विधान से उनके श्राद्ध एवं मृत्यु तिथि के दिन
अवश्य करनी चाहिए। 5. खुद की तस्वीर पूजा कराने वाले व्यक्ति को शीघ्र ही पतन की ओर ले जाता है। आत्मप्रशंसा एवं आत्मस्तुति घोर नर्क के द्वार हैं।
घड़ी लगाने की जगह
1. घर में घड़ियां भी पूर्व, पश्चिम एवं उत्तर की दीवारों पर लगाएं। 2. घडियों में मधुर तथा हल्का संगीत होना चाहिए।
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कांच दर्पण लगाने की जगह
हिन 1. घर में सभी प्रकार के दर्पण पूर्वी एवं उत्तरी दीवारों पर होने चाहिएं। 2. मुख्य द्वार के बाहर कांच नहीं लगाने चाहिएं। 3. सूर्य के प्रकाश की ओर कभी भी कांच न रखें। अन्यथा परिवर्तित प्रकाश आपके
वैभव एवं ऐश्वर्य को नष्ट कर देगा। 4. घर के बाहर पूर्व दिशा की और चमकीली टॉइल या कांच के टुकड़े न लगाएं।
टी. वी. कहां रखें WWW.Apuniy om
आजकल कोई घर ऐसा नहीं बचा है, जिसमें टी. वी. न हो, जो अब, संपन्नता का प्रतीक न हो कर, मनोरंजन एवं जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण एवं सशक्त माध्यम (Medium) है। कई जिज्ञासु सज्जन इस बारे में जानना चाहते हैं कि टी. वी. खराब न हो एवं हमारे स्वास्थ्य पर इसका कोई प्रतिकूल असर भी न पड़े। वस्तुतः प्रत्येक टी. वी. चमचौरस न हो कर लंबोतरा होता है। वास्तु शास्त्र के हिसाब से चमचौरस एंव लंबोतरा दोनों ही प्रकार की भूमि उत्तम एवं सर्वोत्तम कीर्तिदायक कहे गये हैं। अतः इन दिनों अन्य सभी प्रसार-प्रचार साधनों में टी. वी. को ज्यादा कीर्ति मिली। एक भूमि की तरह टी. वी. के ऊपरी हिस्से को उत्तर में नीचे दक्षिण
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दायीं तरफ पूर्व एवं बाई तरफ पश्चिम दिशा में स्थापित कर सकते हैं। ईशान दिशा वाले कोने को पवित्र एवं श्रेष्ठ माना गया है। अतः टी. वी. के ईशान कोण में जो विज्ञापन आएंगे, वे ज्यादा प्रभावी एवं कामयाब होंगे। टी. वी. को हमेशा अग्नि कोण में ही रखना चाहिए। यदि सही अग्नि कोण संभव न हो, तो, बैठक के कमरे (Drawing Room) का ही अग्नि कोण ले कर, उस स्थल पर टी. वी. रखना चाहिए। टी. वी. से दर्शकों की दूरी कम से कम 7-8 फुट को होनी चाहिए। यह आदर्श दूरी है। इससे नेत्रों में विकार नहीं होगा। पिरामिड के बारे में जिज्ञासा :
प्रश्न : पिरामिड किसे कहते हैं? उत्तर : पिरामिड का शाब्दिक अर्थ है 'सूच्याकार पत्थर का खंभा' कुछ लोगों ने इसको दो टुकड़ों में पिरा (Pyra) एवं मिड (Mid) में संधि विच्छेद कर इसका अर्थ दिया है त्रिकोणाकार ऐसी वस्तु, जिसके मध्य में अग्नि ऊर्जा के स्रोत का निर्माण होता है। प्रश्न : वास्तु शास्त्र के तत्वों में पिरामिड कौन से तत्वों में आता है? उत्तर : पिरामिड 'आकाश तत्व' के अंतर्गत स्पेस एनर्जी (Space Energy) में आता है और उसी हिसाब से घर में आकाश तत्व और प्रकाश को बढ़ाने के लिए इसको उपयोग में लिया जाता है। प्रश्न : क्या पिरामिड ठोस होता है? उत्तर : पिरामिड कभी ठोस नहीं होता। पिरामिड तो पृथ्वी पर भार हैं। उनका कोई महत्व नहीं। ऐसे तो बड़े-बड़े तिकोने पर्वत पृथ्वी पर खड़े हैं। उनमें कोई चमत्कार नहीं। पिरामिड का असली संबंध तो अंदर के (Space) आकाश तत्व एवं उसमें प्रवाहित होने वाली ऊर्जा से है। फिर पिरामिड ज्यामितीय सिद्धांतों एवं वास्तु सिद्धांतों पर खरे उतरने चाहिएं। तभी उनमें चमत्कारी शक्ति आएगी। प्रश्न : पिरामिड के अंदर कैसा अनुभव होता है?
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उत्तर : पिरामिड के अंदर गहन शक्ति का अनुभव होता है। प्रश्न : पिरामिड ऊर्जा कहां से संपादित होती है? उत्तर : पिरामिड की ऊर्जा, भूगर्भ के चारों कोनों की चार भुजा से उर्ध्वगामी होती है तथा पिरामिड का शक्ति बिंदु ऊपरी नोक की ओर बढ़ता है। उधर सूर्य की ऊर्जा पिरामिड की ऊपरी नोक से नीचे की ओर उतरती है। इस प्रकार से पिरामिड ऊर्जा भूगर्भ एवं ऊपर आकाश द्वारा दोनों ओर से संपादित होती है। प्रश्न : क्या पिरामिड अन्य उपचारों में बाधक है?
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VVV पिरामिड के प्रचंड ऊर्जा जहां घनीभूत होती है, वह क्षेत्र
उत्तर : आयुर्वेदिक, एक्यूप्रेशर, या अन्य कोई योग, ध्यान लगाने में पिरामिड उसमें बाधक नहीं है। प्रश्न : क्या पिरामिड से आर्थिक लाभ संभव है? उत्तर : यदि पिरामिड में मंत्रपूत लक्ष्मी यंत्र स्थापित किया जाए और उसे तिजोरी, गल्ले (Cash-Box) के ऊपर रखा जाए, तो चमत्कारी रूप से धन की वृद्धि होती है। यदि यह कर्मपृष्ठीय या मेरूपृष्ठीय हो, तो शत-प्रतिशत काम करता है। प्रश्न : असली पिरामिड और पिरामिड यंत्रों में क्या अंतर है? उत्तर : असली पिरामिड बड़े-बड़े पत्थरों से मृत शरीर को सुरक्षित और फ्रिज रखने के लिए बनाये जाते हैं। ये एक प्रकार से आवासीय मकान की तरह होते हैं। पर छोटे पिरामिड यंत्र भारतीय पद्धति से मंत्र एवं तंत्र शक्ति के माध्यम से बनाये जाते हैं। ये मंत्रों से प्राण प्रतिष्ठित होते हैं। अतः ये छोटे होते हुए भी चमत्कारी शक्ति से ओतप्रोत और बड़े प्रभावशाली होते हैं। ये पिरामिड प्रायः धातु के होते हैं।
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प्रश्न : क्या कागज, या प्लास्टिक के पिरामिड मंत्रपूत हो कर प्राण प्रतिष्ठायुक्त नहीं हो सकते?
उत्तर : कागज और प्लास्टिक के पिरामिड चैतन्य शक्ति से युक्त नहीं हो सकते। प्रश्न : क्या लकड़ी के पिरामिड भी काम में लिये जा सकते हैं?
उत्तर : अवश्य ! परतुं शास्त्रविहीन पवित्र वृक्षों की लकड़ियां ही पिरामिड हेतु उपयोग में लायी जा सकती है, निदित वृक्ष नहीं।
प्रश्न: मिस्र में लकड़ी के पिरामिड क्यों नही बने ?
उत्तर : वहां संपूर्ण रेगिस्तान है। वर्षा होती ही नहीं । अतः वृक्षों की बाहुल्यता है ही नहीं। आज भी वहां का 97 प्रतिशत भूभाग रेगिस्तान है।
प्रश्न : लकड़ी के पिरामिडों का प्रचलन ज्यादा क्यों नहीं है?
उत्तर : लकड़ी का आयुष्य धातु की तुलना में नगण्य है। फिर लकड़ी सड़ जाती है। इसमें कीड़े लग जाते हैं। इसमें कीड़े लगने से इसका चूर्ण बन जाता है अतः लकड़ी के पिरामिडों का विकृत होने का खतरा बना रहता है लकड़ी वर्षा ऋतु एवं सूर्य की प्रचंड गर्मी दोनों को धारण करने में ज्यादा सक्षम नहीं होती। फिर यह कुसंचालक (Non-conductor of Electricity) होती है अतः इसकी नोक (Pyramid top) से सूर्य की ऊर्जा रश्मियां शीघ्रता से पिरामिड के भीतरी भाग में प्रवेश नहीं कर पाती, जबकि धातु एवं पत्थर सूर्य की ऊर्जा रश्मियों के सुसंचालक होते हैं। प्रश्न: क्या कूर्मपृष्ठीय या मेरुपृष्टीय श्री यंत्र पिरामिड की जगह काम में लिये जा सकते हैं?
उत्तर : अवश्य ! क्योंकि ये अनंत पिरामिड शक्ति से युक्त होते हैं और पिरामिड चिकित्सा के आधार पर ही बने हैं।
प्रश्न: क्या कूर्मपृष्ठीय श्री यंत्र पिरामिड की तरह चैतन्य शक्ति से युक्त हैं?
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उत्तर : कूर्मपृष्ठीय श्री यंत्र प्रायः पत्थर, सुवर्ण, रजत या सप्त धातु से बने होते हैं। अग्नि गर्भ होते हैं। मंत्रपूत होते हैं । फलतः चैतन्य शक्ति से युक्त होते हैं । नित्य पूजे जाते हैं। अतः साधारण पिरामिड से ज्यादा चमत्कारी होते हैं। यह अनुभूत हैं । प्रश्न : पिरामिड चिकित्सा ज्यादा प्राचीन हैं, या भारतीय तंत्र प्रणीत श्री यंत्र चिकित्सा?
उत्तर : स्वयं मिस्रवासी पिरामिडों को ईसा पूर्व 2600 वर्ष पुराना मानते हैं। अतः यह निश्चित है कि पिरामिड इससे अधिक पुराने नहीं हैं।
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अध्याय-5
5. Commercial Vastu
Reception
कार्यालय अथवा दुकान हेतु दिशा विचार, मुख विचार, स्वामी कक्ष,
विक्रय प्रतिनिधि का मुख, दुकानों की सीढ़िया, शटर एवं प्रवेश। दुकानों के बारे में विशेष : प्रश्न : पूर्वमुखी दुकान में दुकानदार को किस ओर बैठना चाहिए? उत्तर : पश्चिम से पूर्व को और दक्षिण से उत्तर की ओर, फर्श ढलान बनवा कर, आग्नेय में पूर्व की दीवार से परे, दक्षिण आग्नेय के दीवार से लगे हुए, दुकानदार को उत्तर की ओर मुंह कर के बैठ कर, अपने बायें हाथ की ओर (Cash Box) गल्ला रखना चाहिए।
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पूर्वा मार्ग
प्रश्नः क्या उसी स्थल में पूर्वमुखी हो कर बैठ सकते हैं? उत्तर : हां ! बैठ सकते हैं। तब तिजोरी (Cash Box) या अल्मारी को बायीं ओर रख लेना चाहिए। प्रश्न : क्या चबूतरे बना कर बैठ सकते हैं? उत्तर : वैसे बैठना मना है। नीचे बैठना अगर पसंद नहीं, तो कुर्सी और मेज़ डाल कर बैठ सकते हैं। याद रखें कि किसी भी हालत में वायव्य कोण में न बैठे।
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प्रश्न : पूर्वमुखी दुकान में क्या नैर्ऋत्य दिशा की ओर बैठा जा सकता है? उत्तर : हां ! नैऋत्य में बैठा जा सकता है। उस दिशा में चबूतरा बना कर, या कुसी-मेज़ डाल कर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह कर के बैठ सकते हैं। बैठने की जगह थोड़ी ऊंची कर के बैठना चाहिए। प्रश्न : ' दक्षिण सिंह द्वार वाली दुकान में स्वामी को कहां बैठना चाहिए? उत्तर : दक्षिण से उत्तर को और पश्चिम से पूर्व को फर्श ढलवान बनवा कर, नैऋत्य में चबूतरा बना कर, या कुर्सी-मेज डाल कर, पूर्व की ओर मुंह कर बैठना चाहिए। तिजोरी को दायीं ओर रख लेना चाहिए। अगर उत्तर की ओर मुंह कर के बैठे तो बायीं
ओर तिजोरी रख लेनी चाहिए। दक्षिण सिंह द्वार वाले दुकान में आग्नेय, वायव्य और ईशान्य में बैठ कर व्यापार-धंघा नहीं करना चाहिए।
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शरा
प्रश्न : पश्चिमी द्वार वाली दुकान में स्वामी कहां बैठे? उत्तर : पहले फर्श पर पश्चिम से पूर्व को और दक्षिण से उत्तर की ओर ढलान बनवा कर नैर्ऋत्य (Raised Plateform) में चबूतरा बना कर, या कुर्सी-मेज़ डाल कर, अथवा नीचे भी उत्तर की ओर मुंह कर के बैठ सकते हैं। तब नगदी पेटी (Cash Box) बायीं की ओर रखना चाहिए। अगर पूर्व की ओर मुंह कर बैठना चाहें, तो तिजोरी को दायीं ओर लगा लेना चाहिए।
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दुकान
प्रश्न : मालिक के कमरे का द्वार किधर होना चाहिए? उत्तर : पूर्व, उत्तर या पूर्व, उत्तर ईशान में द्वार हों। आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य में द्वार न हों। प्रश्नः अगर दुकान के दो शटर हों, तो किसे खोलना और किसे बंद रखना चाहिए? उत्तर : पूर्व के भाग की ईशानी शटर को खुला रखना चाहिए। आग्नेय के शटर को बंद रखना चाहिए; या नहीं, तो दोनों खुला रख सकते हैं। ईशान्य शटर को बंद कर के कभी भी आग्नेय के शटर को नहीं खोलना चाहिए। अगर खोलें भी, उस राह से चलना नहीं चाहिए। राह बंद करने के लिए पार्टीशन बनाएं, या बोरी, या बेंच आडे रखने चाहिएं। प्रश्न : दक्षिण मुख्य द्वार वाला दुकान हो, तो कौन सा शटर बंद किया जाए?
उत्तर : आग्नेय का शटर खोल कर नैत्य बंद WWW.AL करना चाहिए; या दोनों को खुला रखें। परंतु नैर्ऋत्य
शटर को खोल कर आग्नेय वाला कभी भी बंद नहीं दुकान
रखना चाहिए। अगर खोलें भी, उधर रुकावट डाल कर चलना बंद करें। प्रश्न : उत्तरी दरवाजा वाले दुकानदार किधर
बैठे तो अच्छा है? उत्तर : दुकान की फर्श पर दक्षिण से उत्तर को और पश्चिम से पूर्व को ढलान बनवा कर, वायव्य में उत्तरीय दीवार से परे, पश्चिम दीवार से लगे हुए चबूतरे पर, या कुर्सी पर अथवा नीचे भी बैठ कर व्यापार चला सकते हैं। तिजोरी बायीं ओर रख लें। अगर पूर्व की ओर बैठना चाहें, तो गल्ले (Cash Box) को दायीं ओर रखना होगा। प्रश्न : क्या अपने घर के ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य में दुकान लगा कर स्वयं व्यापार कर सकते हैं?
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उत्तर : जैसा कि साथ के चित्र में दिखाया गया है, वैसे अपनी जगह के आग्नेय में दुकान लगा कर स्वयं व्यापार कर सकते हैं; या किसी और को किराये पर भी दे सकते
हैं।
इस चित्र के अनुसार अपनी जगह के नैऋत्य में दुकान लगा कर, स्वयं व्यापार कर सकते हैं, अथवा किसी और को किराये पर भी दे सकते हैं। अपने मकान के वायव्य में दुकान, मकान और शटर है तथा चारों प्रवेश द्वार बताये गये हैं।
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जब अपने मकान के ईशान में दुकान हो तो घर के अंदर से दुकान में जाने के लिए, चित्र के अनुसार, द्वार लगाना चाहिए। इसमें स्वयं ही व्यापार करना चाहिए। किसी भी हालत में मकान के ईशान में दुकान बनाना मना है। यह तथ्य बहुत कम लोगों के ध्यान में है।
जपान
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दुकान की सीढ़ियां, शटर एवं प्रवेश : प्रश्न : पूर्व मुख वाली दुकान के लिए, बाहर जाने की सीढ़ियां कहां होनी चाहिए? उत्तर : सीढ़ियां ईशान्य से उतरने वाली होनी चाहिए, या पूरी दुकान की लंबाई में चौड़ी सीढ़ियां बनाए जा सकते हैं। ऐसा नहीं तो पूर्व -आग्नेय से दुकान के बीच तक चबूतरे बनवा कर ईशान्य में सीढ़ियां निर्माण कर सकते हैं। तब उत्तर-ईशान्य तक सीढ़िया बनानी होंगी।
उत्तर
शटा
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दुकान
LAULA
प्रश्न : पश्चिम सिंह द्वार वाले दुकान की सीढ़ियां कहां होनी चाहिएं? उत्तर : वायव्य में सीढ़ियां बनानी चाहिए; या नहीं नैर्ऋत्य से दुकान के बीच तक चबूतरे बनवा कर, बचे आधे भाग के वायव्य में सीढियां बना सकते हैं। अगर हो सके तो बीच में अर्धचंद्राकार सीढियां बना सकते हैं।
दुकान
दुकान
प्रश्न : उत्तरी मुख्य द्वार वाले दुकान की सीढियां कैसी हों? उत्तर : तब तो ईशान्य में सीढियां बनानी होंगी। या वायव्य से ईशान्य तक पूरी सीढ़ियां बना ले सकते हैं। हो सके तो वायव्य से बीच तक चबूतरा बनवा कर ईशान्य में सीढ़ियां बनानी चाहिएं।
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प्रश्न : दक्षिण मुख वाले दुकान की सीढियां कैसे होनी चाहिए? उत्तर : इस दुकान के दक्षिण आग्नेय में सीढियां बना सकते हैं, अथवा दक्षिण आग्नेय से दक्षिण नैऋत्य तक पूरी दिशा में सीढ़ियां बना सकते हैं। अगर हो सके, तो बीच में अर्ध चंद्राकार सीढियां भी बना सकते हैं।
दुकान
दुकान
प्रश्न : दुकान अगर पश्चिमी मुख्य द्वार वाली हो, तो कौन सा शटर (Shutter) खुला रखना चाहिए? उत्तर : ऐसे दुकान के वायव्य शटर को खोल नैर्ऋत्य को बंद रखना चाहिए, या दोनों ही खुली रखनी चाहिए। कभी भी नैऋत्य वाला शटर खोल कर वायव्य को बंद नहीं करना चाहिए। नैर्ऋत्य की चाल बंद करने से रुकावटें खड़ी हो जाएंगी। प्रश्न : उत्तर मुख्य द्वार दुकान वाले कौन सा शटर बंद रखें? उत्तर : ईशान्य के शटर को खोल कर वायव्य को बंद रखना चाहिए, या दोनों खुले रखे जा सकते हैं। परंतु कभी भी वायव्य के शटर को खोल ईशान्य को
शटर बंद नहीं करना चाहिए। उत्तर वायव्य की चाल बंद करने से कुछ न कुछ आड़े आ जाता है।
दुकान कारखाने में भारी यंत्रों को नैऋत्य में स्थापित करना चाहिए। जो यंत्र फर्श सतह तक होती हैं उन्हें, जमीन में गड्ढा खोद कर, पूर्व और उत्तर दिशाओं में स्थापित कर लेना चाहिए।
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पश्चिम
शटर
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प्रश्न : गोदाम किस ओर हो तो, अच्छा है? उत्तर : अगर कारखाने के पूर्व और पश्चिम में फाटक हो तो मालिक का कार्यालय ईशान में होना चाहिए, क्योंकि उत्तर में गोदाम बनाये जाते हैं। इसी प्रकार अगर द्वार उत्तर और दक्षिण में हो, तो गोदाम पूर्व और पश्चिम में होने के कारण मालिक का कार्यालय पश्चिम की ओर स्थापित करना होगा। प्रश्न : दुकान में तराजू (Balance) कहां रखें? उत्तर : तराजू को चबूतरे पर, या जमीन पर, पश्चिम और दक्षिण के दीवारों की ओर, रखना चाहिए। प्रश्न : शो केस (प्रदर्शन अलमारी) कहां रखें? उत्तर : केवल ईशान्य को छोड़ कर किसी भी दिशा में शो केस, आलमारी, स्टैंड जैसी भारी चीजें रखी जा सकती हैं। प्रश्न : दुकान के मालिक किस दिशा के कमरों में रहें? उत्तर : व्यापारी नैर्ऋत्य के कमरे में रहें। वे पूर्व या उत्तर की ओर मुंह कर के बैठे। WWW
ईशान्य भार्गdi.com
भक्तान
घर के अंदर सीढ़ियां बनानी हों, तो दक्षिण, पश्चिम, आग्नेय और वायव्य में ईशान्य से नैऋत्य को चढ़ती सीढ़िया बनानी चाहिएं। नैर्ऋत्य में सीढ़ियां बनाने से उधर गड्ढा हो कर दोष हो जाएगा। प्रश्न : घर के बाहर 'एल' आकार की सीढियां कैसे बनानी चाहिए? उत्तर : उत्तर और पश्चिम मुख्य द्वार वाले घरों के बाहर सीढियां पहले उत्तर में पूर्व की ओर बनानी चाहिएं। पूर्व और दक्षिण मुख्य द्वार वाले घरों के बाहर सीढ़ियां पहले पूर्व में उत्तर से दक्षिण को चढ़ कर, फिर आग्नेय में मुड़ कर दक्षिण के उच्च स्थान में, छत के अंदर प्रवेश करने वाली बनानी चाहिएं।
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मकान
मकान
प्रश्न : विदिशाओं में बने घरों के सीढ़ियां कैसे बनावें? उत्तर : आग्नेय में जब सड़क हो, तो सीढ़ियां दक्षिण में बनाएं, जो ईशान से नैऋत्य की ओर बढ़ेगी।
WWW.Agni
.Com
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अध्याय-6
6. Commercial Vastu
व्यावसायिक भूखंड खरीदने के पहले सोचें, कारखाने हेतु भूखंड, बंद या बीमार इकाई न खरीदें, औद्योगिक गृहाणि, कारखाने में बॉयलर कहां हो, जल निष्कासन योजना, उद्योग में मजदूर आवास या मजदूरों की बस्ती की योजना, कारखाने के लिए भवन प्रारंभ करने के पूर्व आवश्यक समान (कच्चा माल) निर्माण के लिए कहां रखें। व्यावसायिक भूखंड खरीदने के पहले सोंचे :
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कोई भी व्यावसायिक भूखंड (Plot) खरीदने के पहले उस स्थान का सूक्ष्म निरीक्षण करें। वहां के पर्यावरण, वातावरण का ध्यान से अध्ययन करें। वहां खड़े रह कर खुली हवा में सांस लें और देंखें आप कैसा महसूस करते हैं। उस जमीन पर किस प्रकार के पौधे उगे हुए हैं, उस भूमि पर किस प्रकार के जानवर हैं तथा वे क्या हरकतें कर रहे हैं, इन सब पर ध्यान दें। यदि वातावरण मनमोहक लगे, चित्त को प्रसन्नता हो, कुछ अच्छा महसूस हो, तो भूखंड खरीदें, अन्यथा विचार त्याग दें। इस प्रकार के वातावरण का सूक्ष्म विश्लेषण एक कुशल वास्तु शास्त्री ही कर सकता है, क्योंकि उसे इस कार्य का पूरा अनुभव होता है। अतः भूखंड खरीदने के पहले अनुभवी वास्तु शास्त्री को अवश्य बताएं।
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आवासीय भूखंड के सामने कबाड़ नहीं होना चाहिए
आवासीय घर के सामने कूड़ा-करकट, कबाड़ नहीं होना चाहिए। परंतु यदि ये सभी वस्तुएं आवासीय भवन की लंबाई से दुगनी दूरी पर स्थित हैं, तो इसका दुष्प्रभाव गृहस्वामी पर नहीं होगा। कारखाने हेतु भूखंड :
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रविण राजमार्ग
यदि आप व्यापारी हैं एवं आपका संस्थान दक्षिण या पश्चिम राजमार्ग पर स्थित है, तो यह अत्यंत शुभ फलदायक है। व्यावसायिक संस्थान के नियम थोड़े बदल जाते हैं। उद्योग कारखाने के लिए भी ऐसा भूखंड शुभ है। यदि आप उद्योगपति बनना चाहते हैं तो ऐसे भूखंड खरीद सकते हैं।
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कारखाने के बाहर गंदा पानी न रखें :
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किसी भी उद्योग, कारखाना एवं घर के बाहर गंदा पानी भवन की संपत्ति को नष्ट करता है। बंद या बीमार इकाई न खरीदें :
आवासीय मकान, या कारखाने के लिए ऐसा भवन खरीदें, जो किसी धनी और सुखी व्यक्ति का हो तथा वह किसी अन्य कारण से भूमि बेच रहा हो। ऐसा भवन खरीदें, जिसमें रहने वाला सब प्रकार से सुखी-संपन्न रहा हो तथा अन्यत्र जा रहा हो। ऐसा भवन कभी मत खरीदें, जिसमें रहने वाला दुखी हो; ऋणात्मक अवस्था में रह कर उद्योग छोड़ रहा हो। निःसंतान व्यक्ति का भी मकान न खरीदें, क्योंकि उसमें रहने वाला पनपेगा नहीं। खंडहरनुमा दरार पड़ा हुआ, उजड़ा मकान, बंद या बीमार इकाई कम कीमत में मिल रहे हो तो भी न लें।
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औद्योगिक गृहाणि (Industry) मुख्य मशीनरी की स्थापना (Main Plant & Machinery)
--मशीनरी की स्थापना हेतु उपयुक्त क्षेत्र x-मशीनरी की स्थापना हेतु अनुपयुक्त क्षेत्र 1-The useful field for setting up machinery
X-The improper field for setting up machinery विद्युत अथवा ऊर्जा-स्रोत तथा बॉयलर, भट्ठी, हीटर इत्यादि की स्थापना (Electricity, Energy, Fire, Power, Boiler, Oven, Furnace, Heater etc.)
--चिह्नित स्थान औद्योगिक ईकाई में काम आने वाले ईंधन/विद्युत/ऊर्जा-स्रोत आदि हेतु श्रेष्ठ X- चिह्नित स्थान अनुपयुक्त
1- The indicated place is proper for such items as Fuel, Electricity, the sources of Energy etc. Which help in running an Industry.
X-The indicated places are improper. कर्मचारी आवास/ चौकीदार कक्ष Staff quarters or Chowkider room
.. चिह्नित स्थान कर्मचारियों के अस्थाई आवास या ईकाई के चौकीदार आदि अथवा विक्रय विभाग आदि में कार्यरत बाहरी कार्य के कर्मचारियों आदि के उपयुक्त X उपर्युक्त हेतु अनुपयुक्त क्षेत्र 1 - The indicated place is proper for the chowkidars of a temporarily built industry or for the outdoor working staff engaged in the field of the sales etc.
1- The indicated place is improper for the abovementioned purposes.
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कच्चा माल भंडारण
(Raw material storage)
X
X
तैयार माल भंडार
(Finished Goods Storage)
X
WI
X
X
चिह्नित स्थान कच्चे माल के भंडारण हेतु उपयुक्त । X- The indicated place is proper for the storage of raw material.
X- The indicated place is improper for the storage of raw material.
X
- चिह्नित क्षेत्र तैयार माल (बिक्री हेतु) के भंडारण के लिए श्रेष्ठ |
X - चिह्नित क्षेत्र तैयार माल (विक्री हेतु) के भंडारण हेतु अनुपयुक्त।
प्रशासनिक कार्यालय
(Plant Office or Admn. Block)
■ The indicated place is proper for the storage
of goods for sale. ndi.com
X- The indicated place is improper for the storage of goods for sale.
- चिह्नित क्षेत्र ईकाई के प्रशासनिक कार्यालय आदि हेतु अनुपयुक्त ।
X— The indicated place is proper for the Administrative Office of an industry.
X- The indicated place is improper for the Administrative Office of an industry.
कारखाने में गोदाम कहां हो? कबाड़ किधर रखें?
कारखाने, उद्योग का गोदाम हमेशा नेर्ऋत्य (South-West) कोण में होना चाहिए । कारखाने का भंडार कबाड़ कचरा या अनुपयोगी सामान भी नैर्ऋत्य कोने (Comer) वाले कमरे में रखना चाहिए। सही नैर्ऋत्य कोने के अभाव में पश्चिम एवं दक्षिण
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दिशा के कमरे भी गोदाम हेतु उपयोग में ले सकते हैं। ऐसा करने पर इन कमरों (प्रकोष्ठों) में रखा माल शीघ्र बिक जाएगा। याद रहे, कारखाने की चिमनी (धुंआकस) या भट्टी ईशान कोण में नहीं होनी चाहिए।
उत्तर
www.FA
. com
पश्चिम
दक्षिण
1. घर का कीमती सामान-सुवर्ण-रजत एवं नकदी रुपया, तिजोरी सदैव उत्तर दिशा
में रखें, क्योंकि उत्तर दिशा का स्वामी कुबेर है। कुबेर देवताओं का खजांची है।
यह कभी भी कोष खाली नहीं होने देता। 2. तिजोरी (Safe) में विधिवत् पूजन किये हुए 'कुबेर यंत्र की स्थापना करनी चाहिए
तथा धनतेरस के दिन इस कुबेर यंत्र का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इससे
धन का खज़ाना भरा रहता है। 3. जिन सज्जनों के पास अनेक उपाय करने पर भी रुपया एकत्रित न होता हो, उन्हें
ये प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
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कारखाने में बॉयलर कहां हो?
कारखाने उद्योग एवं व्यावसायिक भूखंड में, जनरेटर-ट्रांसफॉर्मर, विद्युत सप्लाई, भारी विद्युत संयंत्र-मशीनें सदैव अग्नि कोण में ही रहने चाहिएं। बॉयलर (Boiler) भट्टी सदैव अग्नि कोण में ही स्थापित होनी चाहिए तथा चौकीदार (Watch man) का कमरा वायव्य कोने पर (North-West corner) में होना चाहिए, तो कारखाने में चोरी नहीं होगी। बड़ौदा से बंबई हाई-वे पर लगभग 100 किलोमीटर पर स्थित 'कोसम्बा' नामक कस्बे में एक कांच के कारखाने में ऊर्जा की समस्या सभी को परेशान किये हुए थी। वहां विद्युत जनरेटर ईशान कोण में था, जहां जल के ईश्वर वरुण देव का निवास था। जल
और अग्नि की सदैव शत्रुता रही है। उस स्थान पर मंहगे से मंहगा विदेशी जेनरेटर थोड़ी देर चल कर खराब हो जाता, बैठ जाता, वापस ठीक नहीं होता। जनरेटर को हटाया गया तो कारखाना की ऊर्जा समस्या समाप्त हो गयी। कारखाने के उत्तर-पूर्व में मकान, या मजदूरों की बस्ती नहीं होनी चाहिए: कारखाने या उद्योग में अन्य निवास स्थल (Out Houses) कभी भी पूर्व या उत्तर की
दीवार से जुड़े हुए नहीं होने चाहिए। ऐसे निवास में रहने वाले मजदूर, या अधिकरी उद्योगपति की आज्ञा में नहीं रहेंगे।
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उद्योग में गंदे पानी का निष्कासन सही तरीके से हो :
ABUA
Here
किसी भी कारखाने या उद्योग का ईशान कोण (Cormer) किसी भी प्रकार के भारी निर्माण से दबा हुआ नहीं होना चाहिए। जहां तक हो सके, उस कोने को खुला ही छोड़ दें एवं इसे स्वच्छ रखें। कारखाना, उद्योग, दुकान या व्यावसायिक भवन के बाहर, मुख्य द्वार पर, गंदे पानी का नाला, या कीचड़ नहीं होना चाहिए; खास कर दक्षिण एवं पश्चिम दिशा में तो गंदे पानी का जमाव होना ही नहीं चाहिए, खासकर दक्षिण एवं पश्चिम दिशा में तो गंदे पानी का जमाव होना ही नहीं चाहिए, अन्यथा यह उद्योग की संपन्नता को रोक कर उद्योगपति को कर्जदार बना देगा। WWW.
जल निष्कासन योजना- .com
NAR
LATENNAINAM
उद्योग या भवन की छत का ढलान उत्तर एवं पूर्व दिशा, या ईशान दिशा में होना चाहिए। बरसात के पानी का निष्कासन ईशान, उत्तर और पूर्व दिशा से होना चाहिए। उद्योग या भवन में बरसात के पानी का निकास उत्तर, या पूर्व की दिशा से होना चाहिए। भवन के स्नान घर, रसोई के पानी का निष्कासन कुछ इस तरह हो कि ईशान्य दिशा से बाहर निकले।
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कारखाने के सामने कचरा नहीं होना चाहिए:
घर, उद्योग या कारखाने के सामने कचरा, ड्रम, कबाड़ रहना खराब होता है। घर के दरवाजे के सामने ऊंची जमीन, पठार नहीं होना चाहिए। उद्योग में मजदूरों के आवास, या मजदूरों की बस्ती की योजना
www ApniH
.com
कारखाने (भवन) में नौकरों का निवास (Quarter) सदैव वायव्य कोण (North-West) अथवा अग्नि कोण (South-East) में होना चाहिए। कारखाने में मजदूरों के निवास कहां होने चाहिएं?
बापयकोष
Imam 14-1-1
कारखाना, उद्योग में मजदूरों के घर (Quarter) हमेशा वायव्य कोण (North) में होने चाहिएं।
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कारखाने का निर्माण प्रारंभ करने के पूर्व भवन निर्माण के लिए आवश्यक सामान (कच्चा माल) कहां रखें?
एक बार एक अन्यतम मित्र का फोन आया कि कृपा कर यह बताएं कि मकान प्रारंभ करते समय चूना, ईंट, सीमेंट, पत्थर, बजरी, इत्यादि कच्चा माल कहां और किस दिशा में रखें? उन्होंने साथ में यह भी कहा कि बाजार में जितनी भी वास्तु शास्त्र पर पुस्तकें हैं, उनमें इस बारे में कहीं भी कुछ संकेत नहीं मिलता।। . उन्हें बताया गया कि मकान प्रारंभ करने के पूर्व कच्चा माल सदैव नैऋत्य, या वायव्य कोण में रखें, तो भवन फटाफट बन जाएगा।
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अध्याय-7
7. Vastu Remedial Method
बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोष शमन, दिशा स्थिति, कांच, तेज रोशनी के बल्व, मधुर स्वरलहरी या घंटी वृक्ष और पुष्प गुच्छ, क्रिस्टल बॉल, मछली घर, जलाशय एवं फव्वारे, पवन चक्की और दिशादर्शक यंत्र, भारी पत्थर एवं मूर्तिया, भारी विद्युतीय संयंत्र, बांस और बांसुरी ।
बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोष शमन
ज्यादातर लोगों कि एक ही जिज्ञासा होती है कि बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोष का शमन कैसे संभव है? कई वास्तु शास्त्र के तथाकथित विशेषज्ञों के फोन आते हैं कि अमुक कारखानें-भवन में अमुक प्रकार का जबरदस्त दोष है। क्या बिना तोड़-फोड़ के इस दोष का निराकरण हो सकता है?
विदेशों में बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोष - शमन के नौ उपाय ( Nine Basic Cure) सर्वाधिक प्रचलित हैं। प्रो. लिनगुन (Lin-yun) एवं वास्तुकार सराह रोस्वेच (Sarah Rossbach) ने इन उपायों पर बहुत विस्तार से प्रकाश डाला है। उनके द्वारा प्रदत्त जिन 'नाइन बेसिक क्योर से आकाश, वायु, जल, प्रकाश, अग्नि-इन पंचभूतों के तालमेल को सुधारा जा सकता है, वे इस प्रकार हैं। 1. रोशनी - दर्पण - क्रिस्टल बाल 2. ध्वनि - घंटी 3. वृक्ष-पौधे झाड़ी, पुष्प 4 पवन चक्की, फव्वारा, दिशादर्शक यंत्र, 5. मूर्तिया - पत्थर - चट्टानें, 6. विभिन्न विद्युत उपकरण, 7. बांस, 8. रंग-निदान 9. विभिन्न टोटके और यंत्र ।
वास्तु दोष संबंधी विदेशी ज्ञान, भारतीय वास्तु शास्त्रज्ञों के सामने बौना है। विदेशी लोगों को केवल चार दिशाएं ही पता थीं - पूर्व-पश्चिम - उत्तर - दक्षिण । फिर भारतीय शास्त्रों की मदद से ईशान, अग्नि, नैर्ऋत्य, वायव्य इत्यादि चार दिशाओं का और पता चला बस, इनके आगे इन्हें कोई ज्ञान नहीं है। इनकी उत्पत्ति कैसे हुई. इन दिशाओं के नामकरण के पीछे क्या रहस्य है, इसका ज्ञान उन्हें नहीं है । वस्तुस्थिति यह है कि भारतीय मनीषियों ने आज से हजारों वर्ष पूर्व मुंह देखने के कांच (दर्पण) का महत्व दर्शाया था। विदेशी वास्तु शास्त्रियों की दृष्टि में इसका बड़ा भारी महत्व है। क्योंकि यह वास्तु संबंधी बाहरी दुष्प्रभाव को वापस लौटाने (Reflect) की शक्ति रखता है। कांच आंतरिक सुंदरता और सुरक्षा को बढ़ाता है। इसमें आकार का कोई विशेष महत्व नहीं है।
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यदि राजमार्ग सीघा घर में प्रवेश कर रहा हो, द्वार वेध हो, तो खिड़की के बाहरी भाग में कांच लगा कर द्वार वेध नष्ट करने की परिपाटी मध्य एशिया, हांगकांग, सिंगापुर एवं चीन तथा जापान में अधिकाधिक प्रचलित है। घरों के अपेक्षाकृत कार्यालय, या व्यापारिक कक्ष में कांच का बड़ा महत्व है। यह कांच कई अर्थों में कार्यालय की शोभा और श्री में वृद्धि करता है। अंग्रेजी में कहावत है "The bigger the mirror the better." कार्यालय वगैरह में कांच इस तरह से लगना चाहिए कि उसमें आदमी का पूरा प्रतिबिंब दिखाई दे। यदि कांच अधिक छोटा है तथा सिर नहीं दिखाई देता हो, तो गृहस्वामी को सिर दर्द की स्थायी बीमारी रहेगी। यदि कांच ज्यादा बड़ा हो, तो गृहस्वामी अस्वस्थ रहेगा। अतः कांच कार्यालय में सही ढंग से, सही स्थान पर लगाना चाहिए। छोटे एवं संकरे कमरे, कांच की मदद से, शुभफलदायक हो जाते हैं। कार्यालय में कांच अजनबी व्यक्ति के प्रवेश, प्रतिबिंब व उद्देश्य को प्रकट करने में सहायक होता है। मकान और कमरे भी, कांच की मदद से, शुभफलदायक हो जाते है। कांच यदि सही ढंग से लगे, तो कार्यालय और घर में उन्नति एवं प्रगति में भारी सहायक होता है। हरियाणा के एक प्रसिद्ध होटल का रेस्टोरेंट (भोजनशाला) ठीक नहीं चल रहा था। डाइनिंग हॉल अकसर ग्राहकों की इंतजार में खाली पड़ा रहता था। भोजन-कक्ष में 32 खंभे थे। काफी अंधेरा भी था। डाइनिंग हॉल में पर्याप्त रोशनी करायी गयी। गोल खंभों पर षट्कोणात्म्क कांच (शीशा) लगा दिये। होटल चल पड़ा। यही हाल मुंबई के चर्चगेट पर स्थित होटल सम्राट का है। वहां भोजन के लिए ग्राहक लंबी कतार में खड़े रहते हैं। अपनी दिव्य शक्ति द्वारा भारतीय मनीषियों ने सोलह प्रकार की दिशा-विदिशा को खोज निकाला था। जिनके नाम इस प्रकार हैं : 1. पूर्व, 2 कुंडदक्षांस, आग्नेय, 4. दक्षपार्श्व, 5. दक्षिण, 6 दक्षश्रेणि, 7. नैर्ऋत्य, 8 पुच्छ, 9. पश्चिम, 10. वामश्रेणी, 11. वायव्य, 12. वामार्च, 13. उत्तर, 14. वामांस, 15. ईशान्य,16. पद्ममुख पूर्व और कुंडदक्षांस के मध्य एक उपदिशा और है। इस प्रकार से कुल 32 दिशाएं होती हैं, जिसका ज्ञान केवल भारतीय मनीषियों के अतिरिक्त न किसी को था, न है। बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोष शमन के संदर्भ में भी भारतीय ऋषियों का ज्ञान अनुपम था। बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोष शमन के निम्न अचूक उपाय प्रबुद्ध पाठकों के लाभार्थ, पहली बार यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं :
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1. दिशा स्थिति (Correct Direction) सभी वस्तुओं को अपनी सही स्थिति और दिशा में स्थापित करने से वास्तु संबंधी दोषों से राहत मिलती है, जैसे रसोई घर गलत बना है, तो उसमें चूल्हा, स्टोव आदि सही दिशा अग्नि कोण में स्थापित करने से वास्तु दोष मिट जाता है।
शयन कक्ष गलत बना हो, तो सोने की स्थिति, दक्षिण-उत्तर कर के, शयन कक्ष के वास्तु दोष को ठीक किया जा सकता है। इसी प्रकार मान लें पानी का बोरिंग अग्नि कोण (गलत दिशा) में कर दिया गया है, तो वहां इलेक्ट्रिक मोटर लगा दें एवं पानी के प्रथम निकास (Direction) को ईशान कोण या पूर्व (सही) दिशा में स्थापित कर दें, तो भवन का जल दोष नष्ट हो जाएगा। 2. कांच (Mirror) कांच प्रकाश किरण को परावर्तित करता है। क्रिस्टल बाल सकारात्मक शक्ति का प्रतीक माना जाता है। क्रिस्टल बाल घर के आंतरिक एवं बाहृय, दोनों प्रकार के वास्तु दोष को ठीक करता है। कोई भी क्रिस्टल बॉल सूर्य की किरणों को परावर्तित करती हुई इंद्रधनुषी रंगों का सृजन करेगा। यह गृहस्वामी के भाग्य को, इंद्रधुनषी रंगों के माध्यम से, चमकाती है। क्रिस्टल बॉल का धार्मिक महत्व भी है। चीन, सिंगापुर, जापान में भगवान बुद्ध की मूर्ति के सामने यह लगायी जाए, तो इस बॉल में विशेष शक्ति आ जाती है। क्रिस्टल बॉल के माध्यम से सूर्य का प्रकाश आध्यात्मिक शक्ति में बदल जाता है। मंत्रों की शब्द शक्ति क्रिस्टल-बॉल से टकरा कर, अनंतगुणित हो कर कमरे में फैल जाती है। भारत में भी प्राचीन मंदिरों की छतों पर रंग-बिरंगे कांच के गोले लगाने की परिपाटी अति प्राचीन है। कांच एवं क्रिस्टल बॉल का उद्देश्य तो एक ही है। कांच दिशा विशेष को प्रभावित करता है, जबकि क्रिस्टल बॉल चारों ओर अपना प्रभाव बिखेरता है। 3. तेज रोशनी के बल्ब (Floodlight Bulb) तेज रोशनी (Flood light) वास्तु दोष सुधार की श्रृंखला में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है, जो पर्यावरण को सुधार देती है, तथा L के आकार वाले मकान को चौकोर (Square) में बदल देती है। पर्वत के छोटे ढलान पर बने मकान के सामने रोशनी फेंकने पर, उस मकान से बहती हुई लक्ष्मी का रेला रुक जाता है। तेज प्रकाश सूर्य की रोशनी
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का प्रतिनिधित्व करता है, जो भवन के आंतरिक एवं ब्राह्य स्वरूप को चमका देता है । अंधेरे में भूत-प्रेत बुरी आत्मा का भय रहता है वस्तुतः अंधकार दुर्भाग्य, दुःख और उदासी का प्रतीक है, जबकि प्रकाश सौभाग्य, सुख एवं प्रसन्नता का प्रतीक है। कहावत है : Bright the lamp better the fate. - जिस घर वास्तु [नियमों के अनुसार जिस घर के पर्व या ईशान्य में रोशनी स्थायी रूप से लगी रहती है, उस घर में दैविक शक्ति प्रतिपल जागृत रहती है।
beter पर
ईशान्य में रोशन
4. मधुर स्वरलहरी, या घंटी (Wind Chimes)
भवन या कार्यालय में मधुर स्वरलहरी, मीठी आवाज में बजने वाली आधुनिक घंटियां घर में सकारात्मक वायु प्रवाह को उत्पादित करने के कारण, शुभ शकुन के रूप में वास्तु दोष का हरण करती हैं।
इस संसाधान को लोग प्रवेश द्वार के पास लगाते हैं, ताकि अजनबी के प्रवेश करते ही स्वचालित घंटियां अपने आप बजने लगती हैं। इसका एक विचित्र प्रयोग भी हुआ । सन् 1970 के मार्च महीने में अमेरिका में कैलीफोर्निया बैंक दिन-दहाड़े लूट लिया गया। तब एक वास्तु शास्त्री को बुलाया गया । उसकी सलाह पर, दरवाजे पर पहली बार तेज आवाज की घंटी लगायी गयी। दरवाजे के हर बार खुलने और बंद होने पर घंटी बजती। सुरक्षा की इस व्यवस्था के बाद बैंक आज दिन तक सुरक्षित रहा और इसके बाद प्रत्येक बैंकों में ऐसी ही घंटियां लगने लगीं तथा यह पद्धति भारत के प्रत्येक बैंक में भी प्रचलित हो गयी, जो वस्तुतः एक वास्तु शास्त्री की देन है।
5. वृक्ष और पुष्प गुच्छ (Plants and Flowers) :
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REA वास्तु दो
वृक्ष, पौधे और पुष्प गुच्छ जीवंत शक्ति से भरपूर प्रकृति और सौंदर्य के वे अनुपम उपहार
हैं, जो मानव सभ्यता को ऑक्सीजन प्राण वायु तो देते ही हैं, साथ ही घर की सुंदरता में भी चार-चांद लगा देते हैं। वास्तु दोष परिहार में, बीमारियों को ठीक करने में, उत्तम स्वास्थ्य संरक्षण में. वृक्ष-वनस्पतियों का महत्व सर्वाधिक है। घर, होटल या रेस्टोरेंट के प्रवेश द्वार पर सुगंधित या आकर्षित पुष्पों वाले पौधे न केवल ग्राहकों को अपनी ओर खींचते हैं,
अपितु घर, होटल और रेस्टोरेंट के ऐश्वर्य को ऐश्वर्य लक्ष्मी से मालामाल भी कर देते हैं। बारहमासी पौधे एवं विभिन्न प्रकार के पुष्प वनस्पतियां, भवन की आंतरिक साज-सज्जा के साथ-साथ, दूषित वायु मंडल को शुद्ध कर, स्वच्छ पर्यावरण की सुरक्षा प्रदान करते हैं। पेड़-पौधे, उद्भव, विकास एवं जीवंत शक्ति के साथ-साथ, गृहस्वामी की उन्नति के द्योतक होते हैं। . ApnLHimal.Com इतना ही नहीं, प्लास्टिक एवं अन्य साधनों से निर्मित नकली पौघे भी अच्छे फल देते हैं, क्योंकि ये दिखने में नेत्रों को प्रिय लगते हैं। इनकी पत्तियां कभी मुरझाती नहीं हैं। वे पीली नहीं पड़ती। ये पौधे कभी बीमार नहीं पड़ते। इनकी पत्तियां झड़ती नहीं तथा ये कीड़े-मकोड़े एवं कचरा भी उत्पन्न नहीं करते। नकली पुष्प गुच्छों और पत्तियों को नित्य खाद, या देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती तथा ये जीवन-मरण की व्याधियों से मुक्त होते हैं। इसलिए कई विदेशी विद्वान नकली पेड़-पौधों, पुष्प गुच्छों को, बैठक की आंतरिक सजावट (Interror Decoration ) में, ज्यादा से ज्यादा काम में लेते हैं। 6. क्रिस्टल बॉल (Crystal Ball) क्रिस्टल बॉल का उपयोग भविष्यवक्ता केवल भविष्य देखने हेतु करते हों, ऐसा नहीं है। विदेशों में क्रिस्टल बॉल को भवन, होटल, कार्यालय के आंतरिक या बाह्य संरचना (वास्तु दोष) को सुधारने का महत्वपूर्ण माध्यम
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माना जाता है। इसके लगाने के उद्देश्य कांच (Mirror ) की तरह स्पष्ट हैं, जिसे आप पहले पढ़ चुके हैं। इसे बड़े-बड़े होटल के खाने के कक्ष और स्वागत कक्ष (रिसेप्सन) पर लगाया जाता है। 7. मछली घर (Fish Bowlers) पेड़-पौधे एवं वनस्पतियों की तरह मछली घर भी जीवन शक्ति, प्राण वायु एवं प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है। जब घर में जल तत्व की कमी प्रतीत होती है, घर या कार्यालय
में फव्वारे नहीं लगाये जा सकते, तब घर या कार्यालय में वास्तु दोष के शमन हेतु मछली घर लगाया जाता है। मछली-केकड़े को चीन में (Sea Food or Fruit of the Sea) समुद्र देवता का प्रसाद मान कर बढ़े चाव से खाया जाता हैं। जैसे भारत में हम चावल और गेहूं को अन्न देवता कहते हैं, अन्न को हम पवित्र वस्तु मानते हैं,
वैसे ही मछली घरों को विदेशों में पवित्र एवं शुभ शकुन मान कर घरों में स्थापित किया जाता है। कार्यालय और दुकानों में, दुर्भाग्य एवं दुर्घटना से बचने के लिए, मछली घर लगाया जाता है। जैसे ही कोई मछली मरती है, उसे तुरंत बदल देते हैं, मछली घर में उठने वाले पानी के बुदबुदे जीवन शक्ति एवं फव्वारों से जल प्रवाह का संकेत देते हैं, जो, लक्ष्मी की आवागमन हेतु, शुभता का प्रतीक है। 8. जलाशय एवं फव्वारे (Aquariums of Fountaions) बड़े भवन, होटल, बहुमंजिला भवन, व्यावसायिक भवन में जल संबंधी दोष को दूर एवं कम करने के लिए जलाशय एवं फव्वारों को व्यवस्थित कर के लगाया जाता है। जल
भी जीवन का प्रतीक है। यह नेत्रों को प्रिय लगता है एवं मन को प्रफुल्लित करता है। यह बाहरी हवा में, गर्मी को दूर कर, नमी पैदा करता है तथा, मुनष्य के मन की भीतरी उद्धिग्नता को दूर कर, उसको ठंडक और मानसिक शीतलता प्रदान करता है।
चीनी भाषा में वास्तु शस्त्र को फेंग सुई (Fenjhg-Shui) कहा गया है, जो दो शब्दों का सम्मिश्रण (Wind-water) है, जिसका शाब्दिक अर्थ जल एवं वायु है। जल को मध्य एशिया में धन का प्रतीक माना गया है एवं वायु को प्राण का प्रतीक। फेंग सुई (Feng Shui) का भावात्मक अर्थ है जल तत्व और वायु तत्व के द्वारा भवन
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में धन संग्रह को बढ़ाना (Blowing away money through wind & water) इसलिए मध्य एशिया के ऊंचे भवनों, बहुमंजिली इमारतों, पंचतारा होटल और रेस्टोरेंट में धनागमन के प्रतीक फव्वारों एवं जलाशयों को बड़ी सूझ-बूझ के साथ बनाया जाता है। जल निष्कासन, प्राकृतिक पानी के बहाव (ढलान) पर विशेष ध्यान दिया जाता है क्योंकि यदि पानी का निकास गलत ढंग से हो गया, तो घर, होटल, रेस्टोरेंट का सारा रुपया गलत ढंग से चला जाएगा। 9. पवन चक्की और दिशादर्शक यंत्र (Windmills, Whirlings & Weather Wanes)
हवा से चलने वाले संयंत्र पवन चक्की, दिशासूचक यंत्र और अन्य तेज गति से फड़फड़ाने वाले वायु प्रवाहसूचक यंत्र, घरों के ऊपर और बाहर इस तरीके से लगाये जाते हैं कि पड़ोस के बड़े भवन अथवा राजमार्ग वेध का दुष्प्रभाव
गृहस्वामी पर न पड़े। 10. भारी पत्थर एवं मूर्तियां : (Stone-Statues & Heavy Objects) कई बार घर-कारखाने की विशेष दिशा और कोण को भारी करने के लिए भारी पत्थरों, चट्टानों एवं मूर्तियों का सहारा लिया जाता है। इनको सही ढंग से, वास्तु नियमों के अनुसार, लगाने से गृहस्वामी के धंधे और रोजगार में स्थायित्व आ जाता है। कई बार तो पति-पत्नी के अलगाव, निरंतर यात्राएं एवं अस्थायित्व की भावना, वांछित दिशा कोण को भारी करने पर, अदृश्य ढंग से स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। 11. भारी विद्युतीय संयंत्र (Electrical-Power) :
उद्योग, कारखानों और दुकानों में भारी विद्युत संयंत्रों को ठीक ढंग और सही दिशा में स्थापित करने से अनेक समस्याओं का स्वतः ही समाधान हो जाता है। कारखाने में जेनरेटर-बॉयलर, फर्नेस-भट्टियों को सही ढंग से लगाने पर विद्युत शक्ति बराबर रहती है, बिजली जाती
नहीं है। इसी प्रकार घरों में भी बिजली का मोटर, कपड़े धोने की मशीन, फ्रिज, टेलीविजन इत्यादि विद्युत उपकरणों को सही ढंग से लगाने पर घर के सदस्यों की पाचन शक्ति एवं ऊर्जा बराबर सही स्थिति में बनी रहती हैं।
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12. बांस और बांसुरी (Bamboo & Flutes): चीन एवं मध्य एशिया में बांस (Bamboo) का बड़ा भारी धार्मिक महत्व है। बांस की बनी बांसुरी शांति, शुभ समाचार, स्थायित्व और स्थिरता का प्रतीक मानी जाती है। इसलिए घर-कार्यालय एवं व्यापार-कक्ष में इसे स्थापित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि बांसुरी में एक के ऊपर एक श्रृंखलाबद्ध बने हुए छेद, भवन को मंजिल-दर-मंजिल, सुरक्षित रखते हैं। भवन में बीम (Beam) से बचाव के लिए यदि दो बांसुरियां लाल कपड़े में लपेट कर त्रिकोणाकृति में बीच के दोनों ओर लटका दिया जाए, तो बीम के दोष का शमन हो जाता है। पर ध्यान रहे, बांसुरी का मुंह नीचे की ओर होना चाहिए। बांसुरी (Flute) उन्नति, प्रगति एवं सकारात्मक सद्गुणों की परिवृद्धि की सूचना देती है। जापान, मलयेशिया, हांगकांग, ताइवान और चीन के आवासीय घरों में इसे तलवार की तरह लटकाया और सजाया-संवारा जाता है, ताकि बुरी आत्माएं, चोर-डाकू एवं बुरे लोगों से घर सुरक्षित रहे। बांसुरी की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब उसे हाथ में ले कर हिलाया जाता है, तो बुरी आत्माएं भाग जाती हैं और जब इसे बजाया जाता है, तो ऐसी मान्यता है कि घरों में शुभ चुंबकीय प्रवाह (Microcosmos Sound Waves) का प्रवेश होता है। . Apn1HNOLL .Com भगवान कृष्ण की सहचरी इस बांसुरी की जितनी मान्यता भारत में नहीं है, उससे कहीं हजार गुना अधिक मान्यता चीनी प्रदेशों में है, जहां बांसुरी वास्तु दोष प्रशमन का मुख्य माध्यम है।
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अध्याय-8
8. Muhurat Vichar
गृहारंभ हेतु भूमि पूजन के मुहूर्त, भूमि शयन विचार एवं वत्स चक्र, नींव प्रारंभ करने हेतु शुभ काल, गृह निर्माण काल, निषिद्ध वचन, गृह प्रवेश निर्माण मुहूर्त, मशीन बिठाने का मुहूर्त, देव प्रतिष्ठा विचार, देव स्थापना के विशेष लग्न्, देवी प्रतिष्ठा मुहूर्त, मूर्ति प्रतिष्ठा के मुहूर्त के विषय में विचार, देवी की प्रतिमा प्रतिष्ठा, शत चंडी, सहस्र चंडी एवं लक्ष चंडी के मुहूर्त, प्रतिष्ठा विधान में ग्राह्य नक्षत्रः । गृहारंभ हेतु भूमि पूजन के मुहूर्त : अंग्रेजी में एक कहावत है: Well Begun Half Done. यदि काम सही मुहूर्त में शुरू कर दिया जाए, तो पूरा होने में देर नहीं लगती। नींव का मुहूर्त सही हो, तो मकान फटाफट बन जाता है। इसलिए सबसे पहले भूमि शयन पर विचार करना चाहिए। भूमि शयन विचार एवं वत्स चक्र : सूर्य के नक्षत्र से चंद्रमा का नक्षत्र यदि 5-7-9-12-19-26 वां पड़े, तो भूमि को सुप्त माना जाता है। इन नक्षत्रों में बावड़ी, तालाब या गृह निर्माणादि के लिए भूमि का खोदना वर्जित है। गृहारंभ के नक्षत्रानुसार वृष वास्तु आदि चक्रों में भी शुभाशुभ की परीक्षा की जाती है। यहां वत्स (वृष) चक्र बताया जा रहा है। यह राज मार्तंड में उल्लिखित है। वृषभाकार मान कर निम्न प्रकार से सूर्य के नक्षत्र की स्थापना करनी चाहिए:
वृष चक्र स्थान मस्तक | अग्रपाद | पृष्ठपाद | पीठ | दक्षिण कोख वाम कोख पूंछ | मुख नक्षत्र | 3 | 4 | 4 | | 4
4 3 3 फल | अग्नि उद्विग्नता| स्थिरता | धन | विजय
विजय | निर्धनता | स्वामी | पीड़ा भय | इस प्रकार शुभ समय देख कर गृह निर्माण करना चाहिए। नींव प्रारंभ करने हेतु शुभ काल : बृहस्पतियुक्त पुष्य नक्षत्र, तीनों उत्तरा, रोहिणी, श्रवण, आश्लेषा, इन नक्षत्रों में गुरुवार के दिन प्रारंभ किया हुआ गृह पुत्र और राज्य देने वाला कहा गया है। अश्विनी, चित्रा, विशाखा, धनिष्ठा, शतभिषा और आर्द्रा नक्षत्र के साथ यदि शुक्रवार
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हो, तो उस दिन किया गया नींव का मुहूर्त धन-धान्य देने वाला एवं शुभ होता है। अश्विनी, रोहिणी,, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा और हस्त नक्षत्रों में बुधवार के दिन प्रारंभ किया हुआ घर सुख, संपन्नता और पुत्रों को देने वाला होता है।
गुरुः शुक्राक्रचंद्रेषु स्वोच्यादि बलशालिषु । गुर्वकेंदुबलं लब्धवा गृहारंभ प्रशस्यते।।
-ज्योतिष तत्व प्रकाश/श्लोक61/ पृष्ठ421 जब गुरु, शुक्र, सूर्य तथा चंद्रमा अपने उच्च स्थान में हों, बलवान हों, तो गुरु, सूर्य तथा चंद्रमा का बल ले कर गृहारंभ करना शुभ फलदायक होता है। नींव प्रारंभ के समय मेष का सूर्य प्रतिष्ठादायक, वृष का सूर्य धन वृद्धिकारक, कर्क का शुभ, सिंह हो तो नौकर-चाकर में वृद्धिकारक, तुला का सूर्य सुखदायक, वृश्चिक में धन वृद्धिकारक, मकर का सूर्य धनदायक तथा कुंभ का सूर्य रत्न लाभ देता है। गृहारंभ में स्थिर या द्विस्वभाव लग्न होना चाहिए, जिसमें शुभ ग्रह बैठे हों, या लग्न पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो। महर्षि पाराशर के अनुसार चित्रा, शतभिषा, स्वाति, हस्त, पुष्य पुनर्वसु, रोहिणी, रेवती, मूल, श्रवण, उत्तराफाल्गुनी, धनिष्ठा, उत्तरायण, उत्तराभाद्रपद, अश्विनी, मृगशिरा और अनुराधा नक्षत्रों में जो मनुष्य वास्तु पूजन करता है, उसको लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
वास्तुपूजनमेतेषु नक्षत्रेषु करोति यः।
समाप्नोत नरो लक्ष्मीमिति प्राह पराशरः ।। गृह निर्माण काल : कुंडली में गुरु, शुक्र, सूर्य तथा चंद्रमा में से कोई भी तीन ग्रह उच्च के, या स्वगृही हों, दसवें स्थान में बुध हो, लग्न में सूर्य, गुरु, शुक्र, या चंद्र स्वगृही या उच्च हों, तो ऐसे घर की आयु दो सौ वर्ष की होती है तथा उस घर में चिरकाल तक लक्ष्मी का निवास रहता है। निषिद्ध वचन : • रवि और मंगल को गृहारंभ न करें। • मेष, कर्क, तुला और मकर लग्न में गृहारंभ न करें।
गृहारंभ काल की कुंडली बनाएं। उसमें तीसरे, छठे और ग्यारहवें स्थान में पाप
ग्रह हो, तो गृहारंभ न करें। • गृह कुंडली में छठे, आठवें तथा बारहवें में शुभ ग्रह हो, तो गृहारंभ न करें। • मंगलयुक्त हस्त, पुष्य, रेवती, मघा, पूर्वाषाढ़ा और मूल, इन नक्षत्रों को यदि
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मंगलवार हो, तो उस दिन प्रारंभ किया गया घर अग्नि भय, चोरी एवं पुत्र क्लेश देने वाला होता है। शनेश्चरयुक्त कर्क, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाति और भरणी, इन नक्षत्रों में शनिवार के दिन प्रारंभ किया हुआ घर राक्षसों और भूतों से युक्त रहता है। गृहारंभ के दिन सूर्य निर्बल, अस्त या नीच स्थान में हो, तो घर के स्वामी का मरण होता है। गृह निर्माण के दिन चंद्रमा निर्बल, अस्त, या नीच का हो, तो गृह निर्माण करने वाले की स्त्री का मरण होता है। गृह प्रारंभ के दिन बृहस्पति निर्बल, अस्त या नीच स्थान में हो, तो धन का नाश होता है।
रिक्ता तिथि 4/9/14 को गृहारंभ न करें। • नींव प्रारंभ काल में मिथुन का सूर्य मृत्यु देने वाला होता है और कन्या का सूर्य
रोग भय देता है। • गृहारंभ सिंह लग्न में वर्जित है।Hindi.com • मिथुन, कन्या, धनु और मीन के सूर्य में नवीन गृह का निर्माण न करें। गह प्रवेश निर्माण मुहर्त : मकान, दुकान या कारखाना बनने के बाद गृह प्रवेश पर विचार किया जाता है। पलायमान शत्रु के जीतने पर, नवीन स्त्री के आने पर, विदेश से वापस लौटने पर विद्वान् लोग गृह प्रवेश पर विचार करते हैं। गृह प्रवेश तीन प्रकार का होता है : अपूर्व, सपूर्व और द्वंद । प्रवेश के ये तीन भेद हैं। नये घर में प्रवेश करना अपूर्व प्रवेश होता है। यात्रादि के बाद घर में प्रवेश करना 'सपूर्व कहलाता है। जीर्णोद्धार किये गये मकान में प्रवेश का नाम द्वंद प्रवेश है। इनमें मुख्यतः अपूर्व प्रवेश का विचार यहां विशेष अभीष्ट है। माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ मास में प्रवेश उत्तम और कार्तिक, मार्गशीर्ष में मध्यम होता
माघफाल्गुन वेशाखज्येष्ठमासेषु शोभनः । प्रवेशो मध्यमो ज्ञेयः सौम्यकार्तिक मासयोः ।।
-नारद
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कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि तक एवं शुक्ल पक्ष में चंद्रोदयांतर ही प्रवेश करना चाहिए । जीणोद्धार वाले प्रवेश में दक्षिणायन मास शुभ है। सामान्यतः गुरु शुक्रास्त का विचार जीणोद्धार, या पुराने किराये के मकान को छोड़ कर, सर्वत्र करना चाहिए ।
तीनों उत्तरा, अनुराधा, रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, रेवती, धनिष्ठा, शतभिषा, पुष्य, अश्विनी, हस्त में प्रवेश शुभ है ।
तिथि और वार शुभ होने पर स्थित ग्रहों की लग्न शुद्धि देख कर, चंद्रमा और तारा की अनुकूलता रहने पर गृह प्रवेश शुभ होता है।
पूर्व मुख वाले गृह में सूर्य आठवें से पांच स्थानों में रहने पर वाम रवि होते हैं और दक्षिण मुख के गृह में पांचवें स्थान में सूर्य से पांच स्थान सूर्य में रहने से और पश्चिम द्वार वाले गृह में ग्यारहवें स्थान में सूर्य रहने से और उत्तर द्वार वाले गृह में से पांच स्थान से पांचवें स्थान में वाम रवि होते हैं, तो गृह प्रवेश में वास रवि होना अत्यावश्यक है। कुंभ चक्र में सूर्य के नक्षत्र से पांच नक्षत्र पाप (अशुभ) आठ नक्षत्र अशुभ, फिर 6 नक्षत्र शुभ हैं। सूर्य के नक्षत्र से छठे से 13 वें तक और 22 वें से 27 पर्यंत शुभ कुंभ चक्र में है ।
पुराने गृह में, जो अग्नि चूने आदि से सुसज्जित करने पर कार्तिक श्रावण मार्गशीर्ष मास में स्वाति पुष्य, धनिष्ठा, शतभिषा नक्षत्र में प्रवेश करें। यहां अस्त आदि का दीर्घ विचार न करें।
से जल गया हो, या अन्य किसी कारण से पुनः छा कर, मिट्टी, करने पर कार्तिक श्रावण मार्गशीर्ष मास में स्वाति
धन
प्रवेश के समय यजमान पुष्प, दीप, दूर्वादल, पल्लव से खास सुशोभित जल पूर्ण घट, दोनों हाथों से ले कर कुमारी कन्या, पंडित, गौ की प्रदक्षिणा कर, नमस्कार कर के घर में प्रवेश करें। उस समय ब्राह्मण वेद का पाठ करें, शंख आदि की मंगल ध्वनि हो और रमणी गण रमणीय मनोहर ध्वनि से मंगल की बूंद बरसाएं। हां, ब्राह्मणी कलश ले कर आगे चले और पीछे यजमान का सकुटुंब चलना भी किसी आचार्य का मत है। पांच सौभाग्यवती तथा कुमारी रमणियां एक-एक कलश लेकर आगे आगे चलें। फिर विप्रवृंद यजमान सकुटुंब चलें यह प्रथा अधिकांश प्रांतों में है।
मशीन बिठाने का मुहूर्त :
सभी देव प्रतिष्ठा के मुहूर्त मशीन बिठाने हेतु सर्वश्रेष्ठ होते हैं। फिर भी पुष्य नक्षत्र खास कर रवि पुष्य, गुरु पुष्य श्रेष्ठ होते हैं ।
ज्योतिष के पंचांगों में जिस दिन सवार्थ सिद्ध अमृत योग निकलता है, वह दिन भी नयी मशीन, कंप्यूटर इत्यादि लगाने (बिठाने) के लिए श्रेष्ठ होता है। केवल वार के अनुसार लाभ, अमृत और शुभ के चौघडिये देखने चाहिए।
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देव प्रतिष्ठा विचार : उत्तरायण सूर्य में शुक्र, गुरु और चंद्रमा के उदित रहने पर जलाशय, बाग-बगीचा, या देवता की प्रतिष्ठा करनी चाहिए। प्रतिपदारहित शुक्ल पक्ष सर्वत्र ग्राह्य है। लेकिन कृष्ण पक्ष में भी पंचमी तक प्रतिष्ठा हो सकती है। लेकिन अपने मास, तिथि आदि में दक्षिणायन में भी प्रतिष्ठा का विधान है, जैसे आश्विन मास नव रात्र में दुर्गा की, चतुर्थी में गणेश की, भाद्रपद में श्री कृष्ण की, चतुर्दशी तिथि में सदा शिव जी की स्थापना सुखद है। इसी प्रकार उग्र प्रकृति देवता, यथा भैरव, मातृका, वराह, महिषासुर मर्दिनी आदि की प्रतिष्ठा दक्षिणायन में भी होती है।
मातृभैरववाराह नार सिंहत्रि विक्रमाः । महिषासुरहंत्री च स्थाप्या वै दक्षिणायने।।
-वेखानस संहिता यद्यपि मल मास सर्वत्र प्रतिष्ठा में वर्जित है, लेकिन कुछ विद्वान् पौष में भी सब देवताओं की प्रतिष्ठा शुभ मानते हैं। WWW श्रावणे स्थापयेल्लिगमाश्विने जगदंबिकाम। मार्गशीर्ष हरिं चैव सर्वात्पौवेअपि केचन।।
-मुहूर्त गणपति आचार्य बृहस्पति पौष मास में सब देवों की प्रतिष्ठा को राज्यप्रद मानते हैं। तिथियों के विषय में ज्ञातव्य है कि रिक्ता, अमा तथा शुक्ल प्रतिपदा को छोड़ कर, सब तिथियां एवं देवताओं की अपनी तिथियां विशेष शुभ हैं।
-बृहस्पति
यद्दिनं यस्य देवस्य तद्दिने तस्य संस्थितिः ।
-वशिष्ठ संहिता मंगलवार को छोड़ कर शेष वारों में यजमान, चंद्र और सूर्य बल शुद्ध होने पर, स्थिर या द्विस्वभाव लग्न में, स्थिर नवांश में, लग्न शुद्धि कर के विहित प्रकार से विधानपूर्वक स्थापना करें। प्रतिष्ठा में थोड़ी अशुद्धि कष्टों को जन्म देती है। श्रियं । लक्षणहीना तु न प्रतिष्ठा समो रिपुः ।।
-वशिष्ठ संहिता
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इस प्रकार मध्याह्न तक हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, श्रावण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मृगशिरा नक्षत्रों में, बलवान् लग्न में, अष्टम राशि, लग्न को छोड़ कर, प्रतिष्ठा का मुहूर्त बताया जाता है। देव स्थापना के विशेष लग्न् :
स्थाप्यों हिरिर्दिन करो मिथुने महैर्शो । नारायणश्च युवतौ घटके विधाता ।। देव्यो द्विमृत्तं भवनेषु नि वेशनीयाः । क्षुद्राश्चरे स्थिरगृहै निलिखलाश्चः देवाः ।।
मिथुन लग्न में विष्णु, महादेव तथा सूर्य की स्थापना करनी चाहिए। कन्या लग्न में कृष्ण की, कुंभ लग्न में ब्रह्मा की द्विस्वभाव लग्नों में देवियों की स्थापना करनी चाहिए। चार लग्नों में योगिनियों की और स्थिर लग्नों में सर्व देवताओं की स्थापना करना शुभ है।
लिंग स्थापन तु कर्त्तव्यं शिशिरादावृतुत्रये । प्रावृषि स्थापित लिंग भवेद् वरयोगदम्। हेमंते ज्ञानदं चैव शिशिरे सर्वभूतिदम् ।
WWW लक्ष्मीप्रद वसंते च ग्रीष्मे च लिंगसयारोपणमतम्॥Com यतीनां सर्वकाले च लिंगसयारोपणमतम् ।। श्रेष्ठोत्तरे प्रतिष्ठा स्याउयनेमुक्ति मिच्छताम् ।। दक्षिणे तु मुमुक्षूणां मलमासे न सा द्वयोः ।। माघ, फाल्गुन - वैशाख - ज्येष्ठाषाढेषु पंचसु । प्रतिष्ठा शुभदाप्रोक्ता सर्वसिद्धिः प्रजायते ।। श्रावणे च नभस्ये च लिंग स्थापनमुत्तमम् । देव्याः माघाश्विने मासेअप्युत्तमा सर्वकामदा ।।
माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ तथा आषाढ़ महीनों में शिव जी की प्रतिष्ठा सब प्रकार से सिद्धि देने वाली कही गयी है। श्रावण महीना भी शुभ है। ऋतुओं की दृष्टि से हेमंत ऋतु में शिव लिंग की स्थापना से यजमान और भक्तों को विशेष ज्ञान की प्राप्ति होती है शिशिर में शुभ, किंतु बसंत ऋतु में शिव मंदिर की प्रतिष्ठा विशेष धनदायक साबित होती है. जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह प्रतिष्ठा शांति शीतलता और विजयप्रदाता कही गयी है । इस प्रकार भगवती जगदंबा की प्रतिष्ठा माघ एवं आश्विन में सर्वश्रेष्ठ फल देने वाली उत्तम कही गयी है।
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चैत्रे वा फाल्गुने मासे ज्येष्ठे वा माधवे तथा।
माघे वा सर्वदेवानां प्रतिष्ठा शुभदा सिते।
रिक्तान्य तिथिषु स्यात्सवारे भौमान्यके तथा।। हेमाद्रि के कथनानुसार :
विष्णु प्रतिष्ठा माघे न भवति। माघे कर्तुः विनाशः स्यात् ।
फाल्गुने शुभदा सिता।। देवी प्रतिष्ठा मुहूर्त : सर्व देवताओं की प्रतिष्ठा चैत्र, फाल्गुन, ज्येष्ठ, वैशाख और माघ मास में करना शुभ
है।
श्राविणे स्थापयेल्लिंग आश्विनै जगदंबिकाम् । मार्गशीर्ष हरि चैव, सर्वान् पौषेअपि केचन् ।।
-मुहूर्तगणपति श्रावण में शंकर की स्थापना करना, आश्विन में जगदंबा की स्थापना करना, मार्गशीर्ष में विष्णु की स्थापना करना और पौष मास में किसी भी देवता की स्थापना करना शुभ
हस्त्र, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठ, मूल, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, रोहिणी एवं मागशीर्ष में सभी देवताओं की, खास कर देवी की, प्रतिष्ठा शुभ है। यद्दिनं यस्य देवस्य तद्दिने संस्थितिः ।
-वशिष्ठ संहिता जिस देव की जो तिथि हो, उस दिन उस देव की प्रतिष्ठा करनी चाहिए। शुक्ल पक्ष की तृतीया, पंचमी, चतुर्थी, षष्ठी, सप्तमी, नवमी, दशमी, द्वादशी, त्रयोदशी एवं पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी एवं चतुर्दशी दैवी कार्य के लिए सब मनोरथों को देने वाली हैं। शुक्ल पक्ष में और कृष्ण पक्ष की दसवीं तक प्रतिष्ठा शुभ रहती है। इसी प्रकार, शनि, रवि एवं मंगल को छोड़ कर, अन्य सभी वारों में यज्ञ कार्य एवं देव प्रतिष्ठा शुभ कहे गये हैं।
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मूर्ति प्रतिष्ठा के मुहूर्त के विषय में विचार :
चैत्रे वा फाल्गुने वापि ज्येष्ठे वा माधवे तथा। माघे वा सर्वदेवानां प्रतिष्ठा शुभदा भवेत्।।
-मत्स्य पुराण
देवी की प्रतिमा प्रतिष्ठा :
देव्याः माघे आश्विने मासे उत्तमा सर्वकामदः । न तिथिर्न च नक्षत्रं नोपवासो अकारणम् । सर्वकालं प्रकर्त्तव्यं कृष्णपक्षे विशेषतः ।।
-दैवी पुराण धर्मसिंधुकार के मत सेः
दैव्याः माघे आश्विने मासे उत्तमा सर्वकामदः ।। जगदंबा की प्रतिष्ठा केवल आश्विन एवं माघ मास में सर्वाधिक उत्तम रहती है। शत चंडी, सहस्र चंडी एवं लक्ष चंडी के मुहूर्त : com
वैशाखः फाल्गुनो माघः श्रावणो मार्ग एव च।
आश्विनः कार्तिको मासाः पूजायां तु शुभवाहाः ।।। नव चंडी, शत चंडी, सहन चंडी एवं लक्ष चंडी जैसे जप अनुष्ठान कार्यों में वैशाख, फाल्गुन, श्रावण, मार्गशीर्ष, आश्विन तथा कार्तिक, ये सात महीने श्रेष्ठ हैं। यही महीने गायत्री यज्ञ के लिए भी उत्तम कहे गये हैं। प्रतिष्ठा विधान में ग्राह्य नक्षत्रः
आषाढ़े द्वे तथा मूलमुत्तरत्रयमेव च। ज्येष्ठ श्रवण रोहिण्यः पूर्वाभाद्रपदा तथा।। हस्तोअश्विनी रेवती च पुष्यो मृगशिरस्तथा।
अनुराधा तथा स्वाति प्रतिष्ठासु प्रशस्यते ।। अत्र आषाढ़े द्वे इत्यनेन उत्तराषाढ़ा, उत्तराफाल्गुनी,
उत्तराभाद्रपदत्रयाणां नक्षत्राणां कथनम्।।
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________________ नरसिंह का कथन है: तथा महाश्विनी मास उत्तमः सर्वकामदः / देवी तत्र सदा शक्रपासुनापि प्रतिष्ठा।। भवेने फलदां पुंसा कर्कस्थे च वृषस्थिते। न तिथिर्नच नक्षत्रं नापिवारोअथ कारणम् / / अर्थात, सब कामनाओं को देने वाली श्रेष्ठ और आश्विन मास के नव रात्रों में भगवती जगदंबा घर में पुरुषों को फल देने वाली है। कर्क; श्रावणद्ध वृष; ज्येष्ठद्ध के सूर्य में करना ठीक नहीं। वहां वार, नक्षत्र, तिथि आदि भी कारण नहीं होते। माघवीये-मयूखेः मातृभैरववाराहनारसिंहत्रिविक्रमाः। महिषासुर-हन्त्रयश्च स्थाप्या वै दक्षिणयने / / जगदंबा, भैरव, वराह, नृसिंह इत्यादि चौबीस अवतार, भगवान विष्णु की स्थापना सदैव दक्षिणायन सूर्य में ही करनी चाहिए। WWW.Apnihindi.com http://www.Apnihindi.com