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देव प्रतिष्ठा विचार : उत्तरायण सूर्य में शुक्र, गुरु और चंद्रमा के उदित रहने पर जलाशय, बाग-बगीचा, या देवता की प्रतिष्ठा करनी चाहिए। प्रतिपदारहित शुक्ल पक्ष सर्वत्र ग्राह्य है। लेकिन कृष्ण पक्ष में भी पंचमी तक प्रतिष्ठा हो सकती है। लेकिन अपने मास, तिथि आदि में दक्षिणायन में भी प्रतिष्ठा का विधान है, जैसे आश्विन मास नव रात्र में दुर्गा की, चतुर्थी में गणेश की, भाद्रपद में श्री कृष्ण की, चतुर्दशी तिथि में सदा शिव जी की स्थापना सुखद है। इसी प्रकार उग्र प्रकृति देवता, यथा भैरव, मातृका, वराह, महिषासुर मर्दिनी आदि की प्रतिष्ठा दक्षिणायन में भी होती है।
मातृभैरववाराह नार सिंहत्रि विक्रमाः । महिषासुरहंत्री च स्थाप्या वै दक्षिणायने।।
-वेखानस संहिता यद्यपि मल मास सर्वत्र प्रतिष्ठा में वर्जित है, लेकिन कुछ विद्वान् पौष में भी सब देवताओं की प्रतिष्ठा शुभ मानते हैं। WWW श्रावणे स्थापयेल्लिगमाश्विने जगदंबिकाम। मार्गशीर्ष हरिं चैव सर्वात्पौवेअपि केचन।।
-मुहूर्त गणपति आचार्य बृहस्पति पौष मास में सब देवों की प्रतिष्ठा को राज्यप्रद मानते हैं। तिथियों के विषय में ज्ञातव्य है कि रिक्ता, अमा तथा शुक्ल प्रतिपदा को छोड़ कर, सब तिथियां एवं देवताओं की अपनी तिथियां विशेष शुभ हैं।
-बृहस्पति
यद्दिनं यस्य देवस्य तद्दिने तस्य संस्थितिः ।
-वशिष्ठ संहिता मंगलवार को छोड़ कर शेष वारों में यजमान, चंद्र और सूर्य बल शुद्ध होने पर, स्थिर या द्विस्वभाव लग्न में, स्थिर नवांश में, लग्न शुद्धि कर के विहित प्रकार से विधानपूर्वक स्थापना करें। प्रतिष्ठा में थोड़ी अशुद्धि कष्टों को जन्म देती है। श्रियं । लक्षणहीना तु न प्रतिष्ठा समो रिपुः ।।
-वशिष्ठ संहिता
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