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तो चुंबकीय प्रभाव नहीं होगा, क्योंकि पृथ्वी के क्षेत्र का उत्तरी ध्रुव मानव के उत्तरी पोल ध्रुव से घृणा करेगा और चुंबकीय प्रभाव अस्वीकार करेगा, जिससे शरीर के रक्त संचार के लिए उचित और अनुकूल चुंबकीय क्षेत्र का लाभ नहीं मिल सकेगा, जिससे मस्तिष्क में तनाव होगा और शरीर को शांतिमय (पूर्वक) निद्रा का अनुकूल अवस्था प्राप्त नहीं होगी। सिर दक्षिण दिशा में रखने से चुंबकीय परिक्रमा पूरी होगी और पैर उत्तर की तरफ करने से दूसरी तरफ भी परिक्रमा पूरी होने के कारण चुंबकीय तरंगों के प्रभाव में रुकावट न होने से अच्छी नींद आएगी। चुंबकीय तरंगें उत्तर से दक्षिण दिशा को जाती हैं। अगर किसी भी मनुष्य से व्यापारिक चर्चा करनी हो, तो उत्तर की ओर मुंह कर के ही चर्चा करें। इसका प्रमुख कारण यह है कि उत्तरी क्षेत्र से चुंबकीय ऊर्जा प्राप्त होने के कारण मस्तिष्क की कोशिकाएं तुरंत सक्रिय होने से जो शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त होती है, उससे मस्तिष्क की कोशिकाओं के माध्यम से याददाश्त बढ़ जाती है, नैसर्गिक ऊर्जा शक्ति के साथ परामर्श करने वाली मस्तिष्क की ग्रंथियां अधिक सक्षम बन जाती हैं। इसी लिए इस दिशा में की जाने वाली व्यापारिक चर्चाएं अधिक महत्व रखती हैं। मनुष्य को चाहिए कि यदि उत्तर में मुंह कर के बैठे, तो अपने दाहिने तरफ चेक बुक आदि रखे। यदि मनुष्य मकान बनाए, तो मकान के चारों ओर खुला स्थान अवश्य रखे। खुला स्थान पूर्व एवं उत्तर दिशा में अधिक (यानी सबसे अधिक पूर्व) में, फिर उससे कम उत्तर में तथा उत्तर दिशा से भी कम दक्षिण दिशा में (और दक्षिण दिशा से भी कम) सबसे कम पश्चिम दिशा में रखे। इससे सभी दिशाओं से वायु का प्रवेश होता रहेगा। वायु का निष्कासन होने के कारण वायु मंडल शुद्ध रहता है। इससे गर्मी में भवन ठंडा एवं सर्दियों में भवन गर्म रहता है, क्योंकि वायु मंडल में अन्य गैसों के अनुपात में ऑक्सीजन की कम मात्रा होती है। यदि भवन के चारों ओर खुला स्थान है, तो मनुष्य को हमेशा आवश्यकतानुसार प्राण वायु (ऑक्सीजन) एवं चुंबकीय ऊर्जा का लाभ मिलता रहेगा। इसके अलावा वायु मंडल और ब्रह्मांड में काफी मात्रा में अदृश्य शक्तियां एवं ऐसी ऊर्जाएं हैं, जिनको हम न देख सकते हैं और न ही महसूस कर सकते हैं तथा जिनका प्रभाव दीर्घ काल में ही अनुभव होता है। इसी को प्राकृतिक ओज (औरा) कहते हैं। जीवित मनुष्य के अंदर और उसके चारों ओर हर समय एक विशेष चुंबकीय क्षेत्र होता है। इसी विशेष चुंबकीय क्षेत्र को हम 'बायोइलेक्ट्रिक चुंबकीय क्षेत्र' भी कहते हैं। इसी लिए दक्षिण-पश्चिम का भाग ऊंचा तथा पूर्व-उत्तर का भाग नीचे रखने से 'बायोमैग्नेटिक फील्ड' के कारण मनुष्य के चुंबकीय क्षेत्र में कोई रुकावट नहीं आएगी। ये
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