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________________ दक्षिण-पश्चिम भाग में भवन को अधिक ऊंचा का प्रमुख कारण तथा मोटी दीवार बनाने तथा सीढ़ियों आदि का भार भी दिशा में रखना, भारी मशीनरी, भारी सामान का स्टोर आदि भी बनाने का प्रमुख कारण यह है कि जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा दक्षिणी दिशा में करती है, तो वह एक विशेष कोणीय स्थिति में होती है। अतः इस क्षेत्र में अधिक भार रखने से संतुलन आ जाता है तथा सूर्य की गर्मी इस भाग में होने के कारण उससे इस प्रकार बचा भी जा सकता है। गर्मी में इस क्षेत्र में ठंडक तथा सर्दियों में गर्मी का अनुभव भी किया जा सकता है। दक्षिण-पश्चिम में कम और छोटी-छोटी खिड़कियां रखने का प्रमुख कारण है गर्मियों में ठंडक महसूस हो सके, क्योंकि भूखंड क्षेत्र के दक्षिण-पश्चिम में खुली हवा तापयुक्त हो कर सर्दियों में विशेष दबाव से कमरे में पहुंच कर कमरों को गर्म करती है। यह हवा रोशनदान एवं छोटी खिड़कियों से भवन में गर्मियों में कम ताप से युक्त अधिक मोलीक्यूबल दबाव के कारण भवन को ठंडा रखती है और साथ ही वातावरण को शुद्ध करने में सहायता पहुंचाती रहती है। आग्नेय (दक्षिण-पूर्वी) कोण में रसोई बनाने का प्रमुख कारण यह है कि सुबह पूर्व से सूर्य की किरणें विटामिन युक्त हो कर दक्षिण क्षेत्र की वायु के साथ प्रवेश करती हैं। क्योंकि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा दक्षिणायन की ओर करती है, अतः आग्नेयकों की स्थिति में इस भाग को अधिक विटामिन 'एफ' एवं 'डी' से युक्त सूर्य की किरणें अधिक समय तक मिलती रहे, तो रसोई घर में रखे खाद्य पदार्थ शुद्ध होते रहेंगे और इसके साथ-साथ सूर्य की गर्मी से पश्चिमी दीवार की नमी के कारण विद्यमान हानिकारक कीटाणु नष्ट होते रहते हैं। उत्तरी-पूर्वी भाग ईशान कोण में आराधना स्थल या पूजा स्थल रखने का प्रमुख कारण यह है कि पूजा करते समय मनुष्य के शरीर पर अधिक वस्त्र न रहने के कारण प्रातःकालीन सूर्य की किरणों के माध्यम से शरीर में विटामिन 'डी' नैसर्गिक अवस्था में प्राप्त हो जाती है और उत्तरी क्षेत्र से पृथ्वी की चुंबकीय ऊर्जा का अनुकूल प्रभाव भी पवित्र माना जाता है। अंतरिक्ष से हमें कुछ अलौकिक शक्ति मिलती रहे, इसी लिए इस क्षेत्र को अधिक खुला रखा जाता है। उत्तर-पूर्व में आने वाले पानी के स्रोत का प्रमुख आधार यह है कि पानी में प्रदूषण जल्दी लगता है और पूर्व से ही सूर्य उदय होने के कारण सूर्य की किरणें जल पर पड़ती हैं, जिसके कारण इलेक्ट्रोमेग्नेटिक सिद्धांत के द्वारा जल को सूर्य से ताप प्राप्त होता है। उसी के कारण जल शुद्ध रहता है। दक्षिण दिशा में सिर रखने का प्रमुख कारण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का मानव पर पड़ने वाला प्रभाव ही है। जिस प्रकार चुंबकीय किरणें उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की तरफ चलती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में जो चुंबकीय क्षेत्र हैं, वह भी सिर से पैर की तरफ होता है। इसी लिए मानव के सिर को उत्तरायण एवं पैर को दक्षिणायन माना जाता है। यदि सिर को उत्तर की ओर रखें http://www.Apnihindi.com
SR No.010000
Book TitleSaral Vastu
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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