________________
अध्याय -1
1. Introduction to Vastu
वास्तु (विज्ञान) शास्त्र का परिचय, आकाश, वायु, अग्नि तेज, जल, पृथ्वी। वास्तु (विज्ञान) शास्त्र का परिचय : ब्रह्मांडीय ऊर्जा अथवा वास्तु ऊर्जा का प्रभाव एवं केंद्रीयकरण। आदि काल से हिंदू धर्म ग्रंथों में चुंबकीय प्रवाहों, दिशाओं, वायु प्रभाव, गुरुत्वाकर्षण के नियमों को ध्यान में रखते हुए वास्तु शास्त्र की रचना की गयी तथा यह बताया गया कि इन नियमों के पालन से मनुष्य के जीवन में सुख-शांति आती है और धन-धान्य में भी वृद्धि होती है। वास्तु वस्तुतः पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि इन पांच तत्वों के समानुपातिक सम्मिश्रण का नाम है। इसके सही सम्मिश्रण से 'बायो-इलेक्ट्रिक मैग्नेटिक एनर्जी' की
उत्पत्ति होती है, जिससे मनुष्य को उत्तम स्वास्थ्य, धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। मानव शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है, क्योंकि मानव शरीर पंच तत्वों से निर्मित होता है और अंततः पंच तत्वों में ही विलीन हो जाता है। जिन पांच तत्वों पर शरीर का समीकरण निर्मित और ध्वस्त होता है, वह निम्नानुसार है।
आकाश + अग्नि + वायु + जल + पृथ्वी = निर्माण क्रिया देह या शरीर-वायु-जल-अग्नि-पृथ्वी-आकाश = ध्वंस प्रक्रिया