Book Title: Vitragstav Author(s): Hemchandracharya, Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्यनी नवमी जन्मशताब्दीना अवसरे, आचार्य श्री विजय सूर्योदयसूरिजी महाराजनी प्रेरणा तेम ज मार्गदर्शन अनुसार स्थपायेला आ ट्रस्टना उपक्रमे चाली रहेली ज्ञानोपासनारूप प्रकाशन-प्रवृत्तिना अन्वये, श्री हेमचन्द्राचार्यनी तत्त्वगर्भित भक्तिरचना 'वीतराग स्तव' नुं प्रकाशन करतां अमे घणा ज हर्षनी लागणी अनुभवीए छीए. 'वीतराग स्तव' ए हेमचन्द्राचार्य भगवंतनी यशनामी अने अत्यंत लोकप्रिय रचना छे. तेना उपर विविध भाषाओमां अनेक विवेचनो, अनुवादो, पद्यानुवादो वगेरे लखायां छे. प्रस्तुत पुस्तकमां तेनो हिन्दी पद्यानुवाद आपवामां आव्यो छे, जे आचार्य श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजीए रचेल छे. आ पुस्तकना प्रारंभमां 'वीतराग स्तव'नो काव्यरसास्वाद करावता पोताना लेखनो हिन्दी अनुवाद मूकवा देवा बदल प्रा. जयंत कोठारीना अमे आभारी छीए. पुस्तकनुं सुघड मुद्रणकाम करी आपवा बदल श्री रतिलाल लालभाई शाह (ग्राफिक प्रोसेस स्टुडियो, अमदावाद)ना पण अमो आभारी छीए. आशा राखीए के अमारुं आ प्रकाशन पण विद्वभोग्य तेम ज लोकभोग्य बनीने लोकादर पामशे. लि. कार्यालय : C/o. शेठ लालभाई दलपतभाई 'अक्षय', ५३, श्रीमाळी सोसायटी, नवरंगपुरा, अमदावाद-९. क.स. हेमचन्द्राचार्य न.ज. श. स्मृति सं. शिक्षण निधि अमदावादना ट्रस्टीओ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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