Book Title: Vitragstav Author(s): Hemchandracharya, Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 5
________________ अनुकम : श्रीहेमचन्द्राचार्य अने तेमनुं “वीतराग स्तव'' हेमचन्द्राचार्यप्रणीत 'वीतराग स्तव' रस - एवं काव्यकी दृष्टि से - जयंत कोठारी प्रथम : प्रकाश : (प्रस्तावनास्तव :) । द्वितीय : प्रकाश : (सहजातिशयस्तव :) । तृतीय : प्रकाश : (कर्मक्षयजातिशयस्तव :) । चतुर्थ : प्रकाश : (सुरकृतातिशयस्तव :) । पञ्चम : प्रकाश : (प्रातिहार्यस्तव :) | षष्ठ : प्रकाश : (प्रतिपक्षनिरासस्तव : )। सप्तम : प्रकाश : (जगत्कर्तृत्वनिरासस्तव :) । अष्टम : प्रकाश : (एकान्तनिरासस्तव :)। नवम : प्रकाश : (कलिस्तव : ) । दशम : प्रकाश : (अद्भुतस्तव :) । एकादश : प्रकाश : (महिमस्तव :)। द्वादश : प्रकाश : (वैराग्यस्तव :) | त्रयोदश : प्रकाश : (हेतुनिरासस्तव :) । चतुर्दश : प्रकाश : (योगशुद्धिस्तव :) । पञ्चदश : प्रकाश : (भक्तिस्तव :)। षोडश : प्रकाश : (आत्मगर्हास्तव :)। सप्तदश : प्रकाश : (शरणगमनस्तव :) । अष्टादश : प्रकाश : (कठोरोक्तिस्तव :) | एकोनविंस : प्रकाश : (आज्ञास्तव :) । विंशतितम : प्रकाश : (आशीःस्तवः) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 100