Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya

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Page 181
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वि०सू० -- - १७५ माणेविहरहतएणंसेसिरोदामेराया चित्तस्मनलं० अंतिएएयम सोचाणिसम्म आसुरुत्तेष्ठजावसा हट्टणं दिसेणंकुमारं पुरिसेहिंगिराहावे एएणविहाणेणंबझ प्राणवेद एवंखलुगोयमाणंदिसे णेपुत्ते जावविहरणंदिसेणेकुमारे दूओचुत्रोकहिंगच्छिहिंति कहिंउववज्जिहितिगोयमाणंदिसे णकुमारे सट्टिवासाईपरमा० कालमा० इमौसेरयणप्पभा० संसारोतहेवतत्तोहत्थिणाउरेणयरेम च्छताएउववज्निहिंतिसेणंतत्थमच्छिएहिंवधिएसमाणेतत्थेवसटिकुलेबोहिंसोहम् कप्प महाविदेह भाषा 樂器器器器諾器業器器端端樂器器鉴器器業 器樂器諜諜諜諜諜業業器業業業器装器業業 त्रिणलौटी कुटौचढ़ावीने अनेरापुरुषपांहिग्रहावीझालीने एगोप्रकारेविधाने आचारेवधेछे मारेले तेइमनिश्चय हेगोत मनंदिसे णकुमारपुत्र पूर्ववत्विचरेदु:खभोगवतो नंदिशेणकुमार इहांथीचवीने किहांजास्य किहांउपजस्य हेगौतमणदिसेणकुमारसाठवर सनोपरमउत्कृष्टोपाऊखोपालौने कालनेसमे कालकरीने एहजरत्नप्रभाथियोनेविषे संसारमांहिटगापुत्वनीपरेभमस्य तिहाथी नौसरीनेहस्तिनागपुरनेविषे मछलापणे उपजस्ये तेतिहांथीमाछौगरे पकड्योतो तिहांसेठनाकुलनेविषे बोधपामी सौधर्मकल्प For Private and Personal Use Only

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