Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya

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Page 255
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वि०सू० २४८ भाषा 鮮茶 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विवागाणंश्रयमठ्ठे पण्णत्त सुहविवागाणंभंते समणेणं जावसंपत्ते के पत्त तरणं से सुहम्मे अणगा रेजंबू अणगारं एवंखलुजंबू समरीणं जावसंपत्ते सुह विवागाणं दस ज्भयणाप० तं जहासुबाहु १ भद्दणंदौश् सुजाए३ सुवासवे४ तहेवजिणदासे५ धणपत्तियह महव्वलो७ महणंदौ८ महचंदे वर दत्त १० जणंभंतेसमणेणं जावसंपत्तणं सुहविवागाणं दस अन्यणाप० पढमस्वणंभंतेअज्झयण तेकालतेसमानेविषे राजग्टहनगरड तो गुण सिलनामा उद्यान सुधर्मस्वामी समोसा पकेजंब स्वामी सेवाभक्तिविनयकरीसंयुक्त थकाइमकहे जोहेभदंतपूज्य श्रमण भगवंतयावत् मुक्तिमाप्तवातेो दुःखविपाकना एयर्थप्ररूया सुखविपाकना पूज्यश्रमण भगवंतसु क्तिप्राप्तडवातेणे कोंण अर्थकह्या तिवारपछी सौधर्म अणगार जंबू अणगारमते इमक हेदूमनिश्च जंबू श्रमण भगवंतमुक्तिप्राप्तवातेणे सुखविपाकना दशअध्ययनप्ररूया तेकहेछ, सुवानो अध्ययन भद्रनंदीनो अध्ययन सुजातनो अध्ययन सुवास वनो अध्ययन तिमज जिणदासनोअध्ययन धनपतिनो अध्ययन महव्वलनो अध्ययन भद्रनंदीनो अध्ययन महचंद्रनोअध्ययन बरदत्तनोअध्ययन जो For Private and Personal Use Only

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