Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya

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Page 270
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir विष्टी. 展業兼差兼养骤器聚器業業業器器兼养業器業 यावत्करणादिदंदृष्य पुत्र देवाणुप्पियासमुहेगाहावई एवंकयस्थ शंकयलक्षणेणंमलबेणं सुहमस्मगाहावइस्मजम्मजीवियफलेज रमणंइमाएयारूवाउरालामाणुस्मिड्ढोलहापत्ता पभिसमन्वागयत्ति तंधणंदेवाणुप्पिया सुमुहेगाहावईइत्यादिपूर्ववत्प्रदर्शितमे सयणिज्जसि सुत्तनागरानोहोरमाणौर तहेवसौहपास सेसंतंचेवजावउप्पिंपासाइविहरतं एवंखलुगो सुबाहुणाइमाएयारूवामाणुस्सरिदौलवा३ पभूण तेसुबाहुकुमारे देवाणुप्पियाण अंतिएमुंडेभवित्ता अगारोत्रणगारियंपव्वदूत्तए हंतापभूतएण सेभगवंगो समण भगवंमहावी रंवंदणमसइर संजमेण तवसा अप्माण भावेमाणेविहर तएणसमणेभगवंमहावीर अस्पया०ह * पालौने कालनेसमेकालकरौने एहजहथिणापुरनगरनेविषे अदौनशत्रुराजानी धारिणोदेवीनी कूखनेविषेपुत्रपणेऊपनोतिवार * पछीधारिणीदेवी शिज्यानेविषे सूतथिकांकाईउ'घतांकाई जागतांईषत् निद्रामावते तिमजपूर्ववत् केसरीसिंघस्वप्न दौठो श्रेषसर्व * पूर्वलीपरेजन्ममहोच्छवपाणिग्रहणजाणिवो प्रासादउपरसुखभोगवतोविचरेके तेभगौडमनिचे हेगौतम सुवाडकुमारएतादृशरूप 業業蒸蒸器器業業業講業業業業業業業需業需 भाषा For Private and Personal Use Only

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