Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya
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वि०टी०
२६३
सूत्र
भाषा
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सइत्तिविशेषतआचष्टे एवंपन्न वेत्ति एवं परूवेति एतच्च पूर्वोक्तपदद्वयस्यैव क्रमेणव्याख्यानार्थं पदद्धयमवगन्तव्यं अथवा चाख्यातीत तथैवाभाषतेतुव्यक्तवचनैः प्रज्ञापयतीति युक्तिभिर्योधयति प्ररूपयतीतिभेदतः कथयतीति, धन्नेदेवाणुष्मियाशुडमेगाहावई इत्यत्त्र त्थिणाउरेसिंघाडग जावपहेसु बहुजणोअपमस्सस्स एवं चायक्वदूर धरण ण' देवाणुम्मिए सुमुहेण गाहावनावधपण देवा० सुमुहेगाहाबद्बहुहिंवासस्याद् आउयंपाले कालमासे० इवह त्थिणाउरेणयरे अदौणसत्तुस्मरखोधारिणो देवी कुच्छि सिपुत्तत्ताएउवबरण तरणं'साधारिणौदेवौ गठई कहे के सोनीयानीटटिई १२ ॥ कोड़िपांचप्रकारफूल नीटटिड वस्त्रढाल्याएतलेवस्वनोदृष्टिहुई आकासे देवता आहणीक जाड़ीदेवदुंदुभी अंतराले अंतरीक आकाशनेविषे राहीने मोटोदानदीधो एहवोनिर्घोषशब्दपायो हथिणापुरनगर नेविषे सिंघाड़ादि कत्रिक चोकचञ्चरराजपंथयावत् तेहनेविषे षणा जनलोकमांहोमांहिम कहिवालागा धन्यहे देवाणुप्रिये सुमुखगाथा पत्तीजे एडवो दानदीधोजे गोदानदृष्टिथई तेमाट धन्य हे देवानुप्रिया सुमुखगाथापती जेणेएहवो साधुपड़िलाभ्यो घणावरसना सईकड़ालगे आऊलो
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