Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 265
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie बि.टी. २५८ 「業兼差差業業業凝聚業業業業茶業兼差兼器 * कमवातहारूवस्मसमणस्मवा माहणमवा चंतिएएगमवि आयरियं सुवयणसोच्चानिसम्म सुबाहुणाकुमारेणइमाएयारूवाउरालाम णुस्मिड्ढोलहापत्ताअभिसमन्वागयत्ति जादूसंपन्नाडूइयावत्करणादिदंदृश्य कुलसंपन्नावलसंपन्नारूवसंपन्ना एवंविणयमाणसण चरित्तलज्जालाघवसंपन्ना उयंसीतेयंसी बच्चसीजसंसोत्यादिगा दूइज्जत्ति गामाणुगामंदूइज्जमाणाइतिदृश्य द्रवंतोगच्छतइत्यर्थःज तेणंकालेणंतेणंसमएणंइहेवजंबूहीवेश्भारहेवासेहत्थिणाउरणामणयरहोत्थारिदश्तत्थणहथिणा उरणयरेसुहमेणामंगाहावदूपरिबसअड्डतेणंकालेणंतेणंसमएणं धम्मघोसाणामंथेराजाइसंपणा जावपंचहिंसमणसएहिंसद्धिं संपरिबुडापुब्बाणुपुब्बिंचरमाणेगामाणुगामंदूइज्जमाणे जेणेवहत्यि मानेविषे एहजबहीपनामाहौपे भरतक्षेत्रनेविषे हस्तिनागपुरनामानगरडतो रिश्वत तिहांहस्तिनागपुरनगरनेविषे सुमुख नामागाथापती वसेछ ऋविवंत तेकालतेसमानेविषे धर्मघोसनामास्खबिर जातितेमातानोपक्षतेणे संपन्चयावत्पांचसेत्रमणसंधाते परिवस्खोथको पूर्वानुपूर्वअनुक्रमे विचरतांथकां ग्रामानुग्रामविचरताथका निहांहत्यिण्णापुरनगरनेविषे जिहां सहसावनउद्यानछे 卷紫凝聚器業業業業業業業業器暴涨業業業業 भाषा For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287