Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir
वि टी.
業業器鬆鬆業業器鬆鬆業業業器器需辦業業器
णिपडिजागरमाणी उविहरति तननज्जदूर्णमामीममकेणडू कुमरणरेणं मारिस्मतीत्तिक भीयाध्यावत्करणात्तत्थतसियाउबिगा ओहयमणसंकप्याभभिगदि ट्ठिया इत्यादिदृश्य वत्तीहामित्ति यतिष्य नयित्ति नभवत्ययंपक्षोयदुतकत्तोत्ति कुतचिदपिशरीरकस्य अवाधोवाप्रवाधोवाभविष्यति तत्र भावाधईषत्पीड़ा प्रवाध: प्रकृष्टापौ.वतिकट्ठति एवमभिधायअणेगखंभत्ति अनेकस्त भथतमन्त्रि __ यासामादेविएवंव० माणंतुमंदेवा उहयजावझियाहिंति अहसंतववत्तौहामि जहाणंतवणत्थि
कत्तोविसरीरस्मश्राबाहेवापवाहेवाभविस्म इत्तिकट्ट,ताहिंद्याहिंसमासासति तोपडिणिक्खम
इकोडुबियपुरिसेसहावेदर एवंव० गच्छहणंतुमभेदेवा० सुपइट्टियस्सनयरस्म बहिया एगंमहंकू थकी आरतध्यान ध्यावोको तिवारपछीते सौहसनराजा सामादेवीने दूमकहे मकरोतुमे हेदेवानुप्रिया आर्तध्यान ध्यावोमा * तिमवर्तस्यो जिमताहराशरीरनेकाई अवाधानहीथाइ अबाधातेथोड़ा अतिहौषणीपीड़ा नहीथास्य इमकरीने तेहनदृष्टव लभव THE चनेकरीने संतोषे तेतिहाथकीनीसरेनीसरीने कोट'विकपुरुषप्रते तेड़ायेतेडावीने दूमकहेजावो तुम्हे हे देवानुप्रिया सुप्रतिष्ठनगर
義米糕業器業業蒸蒸業業業業業業業業兼業养器
भाषा
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287