Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya

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Page 249
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वि०खू० २४३ भाषा EEE装茶装米米然EE www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिवागरणं एवंखलुगो० तेणंकाले ' ते समएण हेवनं० भारदेवासे इंदपुरेणामंणयरेतत्थ गंद्र ददत्त राया पुढविसिरिणामंगणियावरण तरणंसापुढविसिरिगणिया इंदपुरेणयरेबहवेरा सरजावप्पभियो बहुहिंच सप्पयोगेहिय जाव अभियोगित्ता उरालाई 'माणुस्वगाद्र भोग भोगा इ'भुजमाणेविहरद्र तरणंसापुढ विसिस्गिणिया एएकम्माएयसकम्माः सुबहुपावंसमज्जिणित्ताप बचनदीयामणावचन विरूपपाडूयावचन कुक्क्याटकरतीथकी देखीनेगौतमने चिंताऊपनी तिमजपूर्ववत्पूर्व लीप रेश्मक हेते हे भदंत एमस्त्रीपूर्वभवेकुणडौंती भगवन् कहे के इमनिश्च हेगौतम तेकालतेसमाने विषे एहजजंबूद्वीपद्दीपनेविषे भरतच वनेविषे इंद्रपुरना मानगरने विषे तिहाइ द्रदत्तराजाराज्जकरेके पुढवी श्रीनामागणिका ती तेहनोवर्णन तिवारपछीतेपुढ़वीश्रीगणिका इंद्रपुर नगरमेविषे षणाराजाप्रधानसेठसेनापती यावत्पुरोहितप्रमुख घणाचूर्णादिकने प्रयोगे पूर्ववत् अनेरानेव सिकरीने उदारप्रधान मनुष्यसंब ंधीयाभोगभोगवतीथको विचरेके तिवारपछीते पुढ़वीश्रीगणिका एहवाकर्मकरी एहवापापकर्म ४ अतिहीषणुंपापयावत् For Private and Personal Use Only EEEEEEEEEEEEEEEEEE装

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