Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya
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वि. टी०
२०८
सूत्र
भाषा
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दहगल हिदूत्यादि एगट्ठियं भरेंतीत्येतदंत रूढिगम्य' तथापिकिंचिल्लिख्यते हृदगलनंहृदस्यमध्ये मत्स्यादिग्रहणार्थं भ्रमणं जलनि: सारणंवाऋदमलनं हृदस्यमध्येपौनः पुण्य नपरिभ्रमणं जलेवा निःसारितेपंथमर्दनं इदमर्दनं थोहरादिनिक्षेपेण ऋदजलस्य विक्रिया
मच्छ धेजाएअहम्मिए जावदुप्पडियाणंदे तएतस्म सोरियमच्छ धस्म बहवेपुरिसादिन्नभत्तिकल्ला कल्लि गद्वियाहिं जणं महादिश्रगाहिंति बहु हिंदहगलणेहिय दहमलणेहियद हमद्दोन्हिय दहमहणेहिय दहवहणेहिय दहपवणेहिय पयचुल्ल हिय पंचपुलेहियनंभाहिय तिसराहियभि लागो तिवारी सोरियदत्तमाकीम हत्तरङओ अधर्मी माछीपापिष्ट जावशब्दथकीपाडयेकीधे आणंदमामे तिवारपछीतेसोरिय दत्तभहन्त्तरने बहवेषणापुरसमहीनासाट भातपाणीसाट दिनदिनप्रतेएककाष्ठनीनावेवेसीने जीवने मोटीनदीमांहिपेसीने घणूंम च्छादिग्रहणार्थपरिभ्भ्रमणकरिबोजल थकी काटे मच्छादिकवलीवलीद्रहमध्ये भ्रमवोतयाज लथी काढीकादे में करीमस लेद्रहनोपांणीतोडे जौवांनिमित्तेथोहरदुग्धादिकेमर्दवो तरुशाखादिकेकरी जलनोड़ोहलबोवाहली आदिकखणीनेद्र हथकी पांणीकाढवा प्रतिहीनल
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