Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya
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विटी
裝業茶業業器業業养器業業兼差業業蒸蒸業
करणंङ्गदमथनं दजलस्वतस्थाषाभिविलोड़नं दवहनं खतएवङ्गदान्जलनिर्गमः इदप्रवहणं दजलस्यप्रकृष्टं वहनप्रपंबुलाद योमत्स्यब धनविशेषा गलेयित्ति गलानिबिडिशानि वकबंधेहियत्ति बल्कलबंधनैः सूत्रबंधनैर्वाल बंधनैश्च तिव्यक्त मच्छखलएकरिति
सराहियधिसराहिय विसराहियहिल्लौरोहिय जालेहियलल्लिरोहिय भल्लरोयगलेहिय कूडपा सेहिय वनबंधेहियमुत्तबंधेहिय बालबंहिय बहवेसरहामच्छ यजावपडागापडायगिराहतिर ..
एगट्ठियात्रोभरेर कलंगाहितिर मच्छखलएकरड्रायवं सिदलयंति अप यतेवहवेपुरिसादि नोकाढवोमच्छवंधनविशेष इत्यादिकीरजालविशेषमच्छवंधनविसरोजाल भिसरादिकजाल विसरादिकविसरादिक हिल्लीरादिक
जालेकरीललरीझल्लरीइत्यादि कमच्छझालबानोउपायगलेवड़सौई करीने मच्छबंधनपासवालरुखनौछालनाबंधनसबनाव धन * केशनाबंधनतेणेकरौने घणासन्हादिकसर्वमच्छनीजाति यावत्पड़ागादिकमच्छनेपूर्वोक्तबंधनविशेषतेणेग्रहीने नावाभरेभरौनदीने * *तटे आणमाछलानाखलाकरकरीने तड़केतावडेसकावानेदिये अनेरातेहनाधणापुरुषदेतो मूलमजूरीभातरतादिकतेमजूरी ताव
叢叢業蒸养养業業業蒸蒸养养業業業蒸蒸業
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