Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya

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Page 205
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir विटी MEXKRWENEERINEERINKINEWHERH सनंपम्हलत्ति पम्हलसुकुमालगंधकासाइयाएगायलट्ठी मोबूहद्दत्तिद्रष्टव्यं एवंवत्ति एवंवयासौत्यर्थः सप्तमाध्यवनविवरणसंपूर्णम् ।। इमीसेरयणणेर इयत्ताएउव० संसारोतहेवपुढवीए तोहत्थिणाउरेणयरे कुकुडत्ताएपञ्चायाहिति जायामित्त चेव गोछिल्लवहिंति तत्थेवहत्थिणाउरणयरे सेट्टीकुलंसिबोही सोहम्मेमहाविदेहेसि झिहिंति निक्लेवो सत्तमंअभायणंसम्मत ७ जणभंते अट्ठमस्सउख्खेवो एवंखलुजंब० तेणं कालेणंतेणंसमएणं सोरियपुरणयरं सोरियवडिंसगंउज्जाणं सोरियजख्खो सोरियदत्तोरायातस्म स्कृष्टोमाऊखोपालौने कालनेसमेकालकरीने एहजरत्नप्रभाटथवीपहलीनरके नारकीपणे उपजस्य पछे संसारमाभिमस्येतिमज जिमचगापुत्रथिवीआदिभमस्य तिहांथी नीसरीनेहथिणा पुरनगरनेविषे कूकड़ापणे ऊपजस्य जातमानजनम्योथको गोठिलपु रुषेवध्योहंतो तिमजहथिणापुरनगरन विषे सेठनाकुलने विषउपजीनेबोधपामो सौधर्मकल्पेदेवताथमहाविदेहक्षेवेसीझस्येमुक्ति जास्य निक्षेपअधिकारसातमांअध्ययनना अर्थ समाप्त ॥॥ जोहेपूज्यभदंत पाठमोउक्ख वोअधिकारमनिश्चयजंबू तेकालतेस 煤業辦業兼職兼薪雞業職業業職業賺賺賺賺業 भाषा For Private and Personal Use Only

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