Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya
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वि.सू०
१८५
___इहेवजंबूहोवेर भारहेवासे पाडिलोसंडेणयरे गंगदत्ताए कुच्छिसिपुत्तत्ताए उववस तएणंतीसे
गंगदत्ताएभारिया तिरह मासाणं बहुपडिपुरणाणं अयमेयारूवे दोहलेपाउभ्भूए धपाउणंतानोत्र म्याश्रोनावफल जाओणविपुलं असणं४ उवक्खडावेइर बहुहिंजावमित्तपरिबुडाओ तंविपुल असणं४ सुरंच पुप्फजावगहाइपाडलिसंडंणयरं मझमज्झणपडिणिक्षमइ जेणेवपुक्खरिणी
भाषा
樂器器樂業器需柴柴業諾柴米器業業器業
आवोहंती तेदिसनेविसेगडू तिवारपछीधणंतरीवेद्यतेनरकथी आंतरारहितनौसरीने एहजजंबद्दीपनामाहीपनेविसे भरतक्षेनेपा * डलीसंडनामानगरनेविशे गंगदत्ताभार्यानीकू खनेविषे पुत्रपण अपनो तिवारपछीतेगंगदत्ताभार्याने विणमास घण प्रतिपूर्णषये
थकेएतादृशरूपडोहलोऊपनो धन्यतेवालकनीमातापूर्ववत् जीवतव्यनोफलटीधो जेषणोविस्तीर्णसनादिक४ नोपजावेनौपजावीने * घणोपूर्ववत्मित्रकुट'बौनीस्त्रीसंघाते तेषणोअशनादिक४ मद्यादिकई पुष्कादिकग्रहीने पाड़लीषंडनगरने मध्यमध्यविचालेथनीस * रेनीसरीने जिहांपुष्करिणीवावड़ी तिहांधावेवावीने पुष्करिणीमांहिपेसेपेसीने स्नानकरे यावत्अपसुकनटालिवाने निमित्तली
派樂業業諾张業業業器器業業業業職業業業諾米
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