Book Title: Vipak Sutra
Author(s): Tribhagvan Vijay
Publisher: Calcutta Vishvavidyalaya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
वि सू०
१२६
भाषा
米米米米讌米米米米米米
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तेणेवउ०२ पुक्खरिणौउगाहेदूर रहायानावपाय च्छित्ताओ तंविपुलं असणं४ बहुहिंमित्तण्हाईजा वसङ्घि' आसाए४ दोहलविणेद् एवं संपेहेद्र कल्लंजाबजल ते जेणेवसागरदत्तसत्थवाहे गंगदत्ताभा रियाए एयम जाणई तरणंसागंगदत्तेणं सत्थवाहेणं अम्भणुग्णायासमाणौ विपुलं असणं ४ उ क्खडावेइ तंविडलं असणं सुरंचसुबहु पुष्कपरिगिरहावे इश्वड हिंजाव ण्हायाकयत्रलिकम्माजेणे वज्रं चरदत्तजक्वस्मजक्त्वा यतणे जावधूवंड हेदू२ जेणेवपुक्खरिणी तेवड०२ तरणंताओमित्त जावम धीमंगलीक निमित्त तेषणुं चसनादिक४ बहुषणोमित्रनीन्यातिभीत्री यावत्संघातेच्याखादतो डोहलो निवर्त्तावो इमविचारीनेका लप्रभातेजाजल्यमांनसूर्यङगेधवे जिहां सागरदत्तसार्थ वाहगंगदत्ताभार्याने एअर्थ मी अनुज्ञादीधीतिवारपछी तेगंगदत्तासार्थं वाहनी आज्ञापामिथके घणोअशनादिक४ नोपजावेनोपजावीने तेषणु अशनादिक४ मद्यादिकचतिघणुं पुष्पादिकग्रहौने घणीस्त्रीसंघाते यावत्स्नानबलिकर्मकरी जिहांउ बरदत्तयतनुं यज्ञायतनदेहरोतिहां आवेवावीने प्रतिमां अगले पूर्ववत् धूपदत्योदहीने तिहांपुष्क
For Private and Personal Use Only
黑米米米米米黑米黑米黑業平

Page Navigation
1 ... 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287