Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 3
Author(s): R P Poddar
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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66 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN No. 3 देव, हरिभद्र सूरि, आ० विद्यानन्द, अभयदेव सूरि, हेमचन्द्र, प्रमाचन्द्र, वादिदेव सूरि और मल्लिषेन दार्शनिकों के नाम उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने शून्यवाद की विस्तृत समीक्षा की है।
न्यायसूत्र, न्यायदर्शन भाष्य, न्यायवार्तिक, न्यायवातिक तात्पर्य टीका, न्याय मञ्जरी, मीमांसा सूत्र, शाबरभाष्य बृहती, प्रकरणपञ्जिका, शास्त्रदीपिका, मीमांसा श्लोकवार्तिक, ब्रह्मसूत्रभाष्य, सर्वदर्शनसंग्रह, आप्तमीमांसा, युक्तअनुशासन, अष्टशतीशास्त्रवार्ताममुच्चय, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, अष्टसहस्री, सन्मतिटीका, प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र, स्याद्वाद रत्नाकर, अन्ययोगव्यवच्छेद और स्याद्वादमञ्जरी प्रमुख साहित्य हैं, जिसमें इस अद्वैतवाद की समीक्षा उपलब्ध है।
यहाँ पर आवश्यकतानुसार अन्य भारतीय दार्शनिकों से तुलना करते हुए जैन सम्मत शून्य-अद्वैतवाद की तार्किक समीक्षा प्रस्तुत करते हैं।
आचार्य समन्तभद्र प्रथम जैन आचार्य हैं जिनकी कृतियों में सर्वप्रथम शून्यवाद की मीमांसा उपलब्ध होती है। युक्त्यनुशासन में महावीर की स्तुति करते हुए कहा है कि हे
१. (क) प्रमाकर मिश्र : बृहती।
(ख) प्रभाकर मिश्र : प्रकरणपञ्जिका । (ग), पार्थसारथि मिश्र : शास्त्रदीपिका । (घ) कुमारिल भट्ट : मीमांसाश्लोकवार्तिक, शून्यवाद । (ङ) शंकराचार्य : ब्रह्मसूत्रशाङ्करभाष्य । (च) माध्वाचार्य : सर्वदर्शनसंग्रह। (छ) समन्तभद्र : आप्तमीमांसा, कारिका १२ । ___ समन्तभद्र : युक्त्यनुशासन, कारिका २५-२७ । (ज) भट्टाकलंक देव : अष्टशती (अष्टसहस्री)। (झ) हरिभद्रसूरि : शास्त्रवार्तासमुच्चय, कारिका ४६७-४७६ । (ञ) आ० विद्यानन्द : तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक : १।२ सूत्र ७. कारिका ८-१२,
पृ० १४३-१४६ । (ट) आ० विद्यानन्द : अष्टसहस्री, पृ० ११५-११६ । (ठ) अभयदेव सूरि : सन्मतितर्कप्रकरणटीका प्रथम काण्ड, तृतीय विभाग,
पृ० ३३६-३७८ । (ड) प्रभाचन्द्र : न्यायकुमुदचन्द्र पृ० १३३-१३९ ।
प्रभाचन्द्र : प्रमेयकमलमार्तण्ड, ११५, पृ० ९७-९८ । (ढ) वादिदेव सूरि : स्याद्वादरत्नाकर, १११६, पृ० १८२-१९० । (ण) मल्लिषेण : स्याद्वादमञ्जरी, का० १७, पृ० १६८-१७८ । (त) स्वामि कार्तिकेय : कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गा० २५०-२५१ ।
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