Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 3
Author(s): R P Poddar
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 287
________________ तमसा और गम्भीरा डा० देवनारायण शर्मा तमसा और गम्भीरा दोनों नाम हम क्रमशः आदि कवि वाल्मीकि और विमल की परम्पराओं में आये रामकाव्यों में एक नदी के लिए पाते हैं । यह राम की वनयात्रा के क्रम में आनेवाली पहली नदी है, जो अयोध्या के अत्यन्त समीप है । किन्तु, इसकी भौगोलिक स्थिति के सम्बन्ध में कुछ मत विचारणीय हैं। -- Pariyatra forest, he डा० ऋषभचन्द्र जैन - " When Ram entered the saw the Gaubhira River ( Gaubhira Nāma Nadi 32.11 ). He crossed it and sojourned on its other side in the forest. It was here that Kaikeyi and Bharata followed Rama to call him back to Ayodhya ( 32, 42-50). The river is identified with modern Gaubhira, a tibutary of the Yamuna above the Cambala, flowing east from Gangapur.". इनके अनुसार, यह वही नदी है, जहाँ भरत और कैकेयी राम के अयोध्या वापस बुलाने के लिए पहुँचे थे, जो अभी गंगापुर से पूर्व चंबल के आगे यमुना की सहायिका नदी है । डा० देवेन्द्र कुमार जैन — “ इस सन्दर्भ में राम के वनगमन का मार्ग भी विचारणीय है । 'चरिउ' में वह अयोध्या से सीधे गम्भीरा नदी ( इसका भौगोलिक अस्तित्त्र संदिग्ध है, वैसे इन्दौर के पास गम्भीरा नदी हैं) पहुँचते हैं ।"" इन्हें इसके भौगोलिक अस्तित्व में हो सन्देह है । यों ये इन्दौर के पास वाली गम्भीरा नदी से परिचित हैं । उपर्युक्त मतों को दृष्टिगत रखते हुए रामकाव्यों के विभिन्न प्रमाणों के आधार पर प्रस्तुत निबन्ध में आदि कवि वाल्मीकि की तमसा और विमल की गम्भीरा को एक सिद्ध करने की चेष्टा हुई हैं, जो वर्तमान तमसा से अभिन्न है । रामायणों में इन दोनों नामों को नदी का उल्लेख निम्न प्रकार मिलता है। 1. A Critical Study of Paumcariyam, Page 509. 2. Vaishali Institute Research Bulletin No. 2, Page 212. 3. The river Tonse between the Sarju and Gomati which flowing through Azamgarh, falls into the Ganges. The bank of this river is associated with the early life of Valmiki the author of the Ramayan, The Geographical Dictionary of Ancient and Medieval India with an Appendix on Modern names of Ancient Indian Geography, by Nanda Lal Dey (1899), Page 92. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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