Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 3
Author(s): R P Poddar
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 291
________________ 158 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN No. 3 प्रसंग में भी यदि थोड़ी गम्भीरता से आचार्य रविषेण के पद्मपुराण को देखा जाये तो इस का भी निराकरण हो जाता है। पद्मपुराण में उक्त महानदो का नाम शर्वरी' बताया गया है और उसके विशेषण के रूप में गम्भीरा' शब्द का प्रयोग हुआ है, जो उसकी विशिष्ट गहराई का द्योतक है तथा शर्वरी ओर तमसा ये दोनों शब्द तो पर्यायवाची हैं, जो अन्धकार से सम्बद्ध होने के कारण उस महानदी की भयंकरता को सूचित करते हैं । पारियात्र आठवीं में बड़े-बड़े वृक्षों के कारण कृष्ण पक्ष की निशा के समान घोर अन्धकार व्याप्त था। मुख्य रूप से उस बीच से बहने वालो इस महानदी का नाम भी सम्भवतया इसो कारण तमसा, शर्वरी अथवा गम्भीरा पड़ गया । ___ इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के पर्यावलोकन से अब यह स्पष्ट हो जाता है कि वाल्मीकि परम्परा की तमसा ओर विमल परम्परा की गम्भीरा (शर्वरा) दोनों दो पृथक् नदियाँ नहीं अपितु एक ही नदी के दो नाम हैं, जो वर्तमान तमसा से अभिन्न हैं। १. पद्मपुराण-पर्व ३२, श्लो० २९ २. , , , , ५२ ३. पद्मपुराण-पर्व ३२ श्लो० २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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