Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 3
Author(s): R P Poddar
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 286
________________ प्राचीन जैन शिलालेखों एवं जैनग्रन्थप्रशस्तियों में उल्लिखित कुछ श्रावक-श्राविकायें 153 से वह प्राप्त हुआ । इसमें ५० सन्धियाँ एवं १५१५ कड़वक हैं । दूसरे ग्रन्थ "कौमुदी कथा” में सम्यक्त्व का वर्णन तो है ही किन्तु प्रसङ्ग वश कवि ने गुप्तकालीन कौमुदी - महोत्सव की झलक भी उसमें प्रस्तुत की है । " जीमन्धर कथा" में वर्ण्य विषय के अतिरिक्त मध्यकालीन सांस्कृतिक सामग्री का अपूर्व भण्डार है । इस प्रकार प्रस्तुत निबन्ध में एतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कुछ श्रावकश्राविकाओं की संक्षिप्त चर्चा की गई । किन्तु इस विषय का यह अन्त नहीं है, बल्कि यह तो एक अतिसंक्षिप्त प्रारम्भिक उदाहरण मात्र ही है । वस्तुतः हमारी शिलालेखीय एवं प्रशस्ति मूलक सामग्री समय-समय पर किन्हीं अज्ञात कारणों मे नष्ट होते रहने पर भी इस समय जितनी उपलब्ध है, उसके शतांश का भी अभी तक लेखा जोखा नहीं हो पाया है। जैन विद्या की यह विद्या अभी तक सर्वथा उपेक्षित ही है । जैन शिलालेख एवं जैन ग्रन्थ प्रशस्तियाँ जैन - इतिहास की दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण हैं हीं, किन्तु भारतीयइतिहास विशेष रूप से सामाजिक इतिहास के कुछ अस्पष्ट तथ्यों को प्रकाशित करने तथा विशृंखलित अथवा त्रुटित कड़ियों को जोड़ने में भी उनका विशिष्ट योगदान हो सकता है । अतः उन्हें राष्ट्रिय गौरव -निधि मानकर उनका सर्वेक्षण, संकलन, संरक्षण, सर्वांगीण - निष्पक्षसमीक्षात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन एवं विधिवत प्रकाशन नितान्त आवश्यक है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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