Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 3
Author(s): R P Poddar
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
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146 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN No. 3 कक्कुक ने उसका निर्माण तथा उसकी सुरक्षा की पूर्ण व्यवस्था कर उसने बड़े साहस का कार्य किया था।
कक्कुक के हृदय की विशालता एवं निरभिमानी वृत्ति देखिए कि उसने उक्त विशाल जैन-मन्दिर बनवाकर अपने प्रभुत्व की स्थापना नहीं की, बल्कि सिद्ध धनेश्वर गच्छ के जम्ब एवं अम्बय को समर्पित कर उसे पंचायती मन्दिर के रूप में घोषित कर दिया।
उक्त शिलालेख का वर्ण्य-विषय तो अपने आप में महत्त्वपूर्ण है ही, उसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें प्रतिहार-वंश की उत्पत्ति एवं पूर्व-परम्परा का विवरण भी प्राप्त होता है । अतः इतिहास की दृष्टि से यह शिलालेख एक महत्त्वपूर्ण प्रामाणिक दस्तावेज भी है।
वि० सं० १२८९ में करोड़ों मुद्राओं के व्यय से भव्य एवं अद्भुत कलापूर्ण आबू के जैन-मन्दिरों के निर्माता मन्त्रीश्वर वस्तुपाल एवं तेजपाल के लोकहित साधक कार्य इतिहास प्रसिद्ध हैं। जैनत्व की अभिवृद्धि के लिए तो उन्होंने अनेक कार्य किए ही किन्तु अनेक हिन्दू तीर्थों के लिए भी उन्होंने लाखों मुद्राओं का दान किया था। यहाँ तक कि मुसलमानों के लिए भी उन्होंने आवश्यकतानुसार दान दिया तथा एक कलापूर्ण आरसी-पत्थर का तोरणद्वार बनाकर भेंटस्वरूप मक्का भी भेजा था।
वस्तुपाल का काल वस्तुत: जैन संस्कृति, कला एवं साहित्य के विकास का स्वर्णकाल था । उसके दरबार में जैन एवं जैनेतर अनेक कवि थे, जिन्होंने वस्तुपाल के प्रश्रय में रहकर विविध विषयक ग्रन्थों का प्रणयन किया था।
महासती श्राविका अत्तिमव्वे महिला-समाज के गौरव की पुण्य-प्रतीक है। १२ वीं सदी के प्रारम्भ में लिखित शिलालेखों के अनुसार यह वीरांगना कल्याणी के उत्तरवर्ती चालुक्य नरेश तैलपदेव आहवमल्ल के प्रधान सेनापति मल्लप की पुत्री तथा महादण्डनायक वीर नागदेव की पत्नी थी। उसके शील, सदाचार, पातिव्रत्य एवं वैदुष्य के कारण स्वयं सम्राट भी उसके प्रति पूज्य बुद्धि रखता था।
एक बार की घटना है कि परमार नरेश वाक्पतिराज मुंज ने तैलप नरेश पर आक्रमण कर दिया । महादण्डनायक नागदेव अपने सम्राट्, महामन्त्री, प्रधान सेनापति, एवं अपनी पत्नी अत्तिमव्वे को गोदावरी नदी के इस पार शिविर में ही छोड़कर स्वयं सेना की टुकड़ी के साथ परमारों को खदेड़ते हुए गोदावरी के उस पार चले गए। संयोग से वे युद्ध में घायल हो गए। इसी बीच भयानक आँधी एवं तूफान के साथ गोदावरी में प्रलयंकारी बाढ़ आ गई । अब तो अत्तिमव्वे तथा सम्राट्, महामन्त्री एवं अन्य शिविरवासी सभी लोग बड़े चिन्तित हो उठे कि वीरनागदेव तथा उसकी सेना को कैसे वापस लाया जाय ? किन्तु प्रकृति के भयंकर प्रकोप के सम्मुख सभी विवश थे।
. इस घोर व्याकुल-वातावरण के बीच लोगों ने देखा कि उनके सम्मुख शिविर के एक एकान्त कक्ष से अत्यन्त तेजस्विनी कोई मूत्ति वेगपूर्बक सम्राट की ओर चली आ रही है। उसने आकर सभी हितैषियों को प्रणाम किया और स्फूत्ति के साथ एक ऊँचे टीले पर चढ़कर गोदावरी नदी के सम्मुख खड़ी हो गई। लोग उससे कुछ बोलना चाह रहे थे, किन्तु
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