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उत्तराध्य
यन सूत्रम्
॥ ४५९॥
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भणी दोड्यो. पाछळ घोडासवारो तथा पाळा दोठ्या पण पहोंची न शक्या, ए हाथी, केळ्ना गर्भतुल्य कोमल शरीरवाळी गर्भिणी राणी सहित राजाने महाटवी = वेरान जंगल=मां लड़ गयो. जंगलना सपाट तथा खडवचडा उंचानीचा अनेक प्रदेशोने जोतो राजा, | सामे एक बढनुं झाड आवतुं जोइने राणीने कड़ेवा लाग्यो के—हे भद्रे ! आगल जे आ वड आवे छे तेनी एक शाखा तुं पकडीने |टींगाजे अने हुं पण एक डाळनो आश्रय लइश पछी हाथी भले एमने एम चाल्यो जाय, आम बोली राजा बडनी एक शाखा पकडी | वळगी रह्यो पण राणी तो भयथी व्यग्र वनेली तेथी वडनी शाखानुं अवलंबन न करी शकी एटले हाथी तेणीने आगळ लइ चाल्यो. | राजा तो वडथी हेठा उतरी हळवे हळवे सैन्यने मळ्यो अने पत्नीना विरहने लीधे दुःखित यतो चंपानगरीमां प्रविष्टथयो. ए दुष्ट हाथी राणीने महोटी अटवीमां लड़ गयो; त्यां तृषाथी आकुल बनेलो हाथी चारे दिशाओमां पाणी शोधवा नजर नाखतो एक सरोवर जोइ तेनी पाळ उपर थइने नीचे उतरवा जाय छे त्यां एक वृक्षने पकडी ते हाथीना स्कंध उपरथी राणी उतरी पडी अने ते हाथी तडकाथी तप्यो हतो तेथी तळावमां प्रविष्ट थयो. राणी तो जंगल जोड़ने अत्यंत भयभीत थइ मनमां चिंता करवा लागी के-क्यां ते नगर ? क्यां ते राजलक्ष्मी ? क्यां ते मंदिर=महेल ? क्यां ते सुख शय्या ? मारा दुष्कर्माना कोइ परिपाकथी मारुं ए सर्व गयुं. अथवा आ घोर वनां विविध हिंस्र प्राणीथी प्रमादवश यतां मारुं मृत्यु थाय तो मारी दुर्गति थवानी; आम मानी अप्रमत बनीने आराधना | करवा लागी सुकृतोनुं अनुमोदन करी सर्व जीवनी क्षामणा मागी सागार = अमुक संकेतबा=अनशन व्रत लइ मनमां नमस्कारनुं ध्यान करती त्यांथी उठीने ते एक दिशा भणी जाय छे त्यां आगळ जतां एक तापस=मुनि ने दीठा. तापसे तेणीने पूछ के - 'हे वत्से ! तुं केनी पुत्री ? केनी प्रिया ? तारी आकृति उपरथीज तुं मने बहु भाग्यवती जणाय छे. तारी आ अवस्था केम ? कहीनाख.
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भाषांतर अध्ययन९
॥ ४५९॥