Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 241
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्य पन सूत्रम् ॥५२६॥ www.kobatirth.org जा सहस्सं सहस्साणं । मासे मासे गवं दए ॥ तस्सावि संजमो सेओ । अदितस्सवि किंचणं ॥४०॥ मूल - [जो] जे मनुष्य (मासे मासे ) महिने महिने [सहस्साण' सहस्सं] दश लाख (गव) गायो' [द] दान आपे [तस्सवि] तेने पण (किंचण अदित सवि) कांड पण दीधा विना [संजमो सभ] अहिंसादिक संयम अंगीकार करवा. ४० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्या०-यो गवां सहस्राणां सहस्रमर्थादशलक्षं गवां मासे मासे दाने पात्रेभ्यो दद्यात्तस्यैवंविधस्य गवां दशशतसहस्रदायकस्यापि तस्माद् गवां दानात्साधोः संयम आश्रवादिभ्यो विरागः श्रेयानतिशयेन प्रशस्यः, अब साधोरिति पदमध्याहार्य. कीदृशस्य साधोः? किंचित्स्वल्पं वस्त्वप्यददानस्यादातुरित्यर्थः ॥४०॥ अर्थ - जे पुरुष महिने महिने गायना सहस्रनुं पण सहस्र- एटले दश लक्ष गायों सत्पात्रें दान करे ते दश लाख गोदान | करनारना करतां कंड़ पण गाय वगेरेनुं दान न करनारनो संयम = अहिंसादि - ( आश्रवादिकथी विराग ) श्रेयान्धारे प्रशस्त छे. अत्रे साधु पदनो अध्याहार करवानो छे, अर्थात् कंइ स्वल्प वस्तुनुं पण दान न करनार संयमवान् साधु श्रेष्ठ . ॥४०॥ एयमहं निसामित्ता । हेऊकारणचोइओ ॥ तओ नमिं रायरिसिं । देविंदो इणमब्बवी ॥४१॥ ४१मी गाथानो अर्थ १७मी गाथा प्रमाणे समजयो, व्या- एतत्पूर्वोक्तमर्थ श्रुत्वा नमि राजर्षिप्रति देवेन्द्रः पुनरब्रवीत्. ॥४१॥ अथ चतुर्णामाश्रमाणां मध्ये प्रथमं गृहस्थाश्रममेव वर्णयति, प्रवज्यादाय च परीक्षयति- For Private and Personal Use Only 毛毛毛美毛毛洗毛毛毛孔张 भाषांतर अध्ययन‍ ॥५२६॥

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