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भाषांतर अध्ययन९
॥२४९||
वपीदं कथानकं मया श्रोतव्यमिति निश्चित्य राजा सुप्तः सुखं निद्रामवाप. द्वितीयदिनेऽपि राजा तस्या एव गृहे रात्रौ उत्तराध्य
समायतः, रात्र्यधं यावदतिसुखं भुंक्ते, पश्चाद्रतिश्रांतो राजा पूर्वकथानकश्रवणाय कपटनिद्रया सुप्तः, दासी प्राह
स्वामिनि ? कथानकरहस्यं वद ? राज्ञी प्राहकहस्ते देवकुले चत्वारः करा यस्य स चतुःकरो देवो नारायणादिकस्तत्र ॥५४९॥
स्थापित इत्यर्थः. एका कथा समासा.
थोडीवारमा राजा त्यां अव्या तेणे भौंतो उपरना चित्रो जोतां आ कुमारिकाए चीत्रेलो मोरपीछ दीठी. खरेखर मोरपीछज के एम मानीने राजाए तेना उपर हाथ नाख्यो ते भींत साथे अथडाणो तेथी तेनो नख जरा भांगतां राजा विलक्ष=मोठो पडयो; तेने
जोइने 'आ कोइ सामान्य पुरुष हशे' एम जाणीने ए चित्रकारनी पुत्रीए तेने का के–मने चौथो पाद आज तमे जड्या. राजाए JE/ कह्य-'पहेला त्रण पाद तने क्या मल्या छे अने आ टाणे हुं चोथो पाद तने केम मल्यो?' ते कन्या बोली के सांभळो; जे भाजे में
राजमार्गमां घोडो दोडावतां स्त्री वाल वगेरे जनोने त्रास आपतो एक जण दीठो ते मूर्खतानो पहेलो पाद मने जड्यो ते पछी अहींनी | राजा के जेणे कुटुंब लोकसहित चित्रकारोनी साथे आ जराथी आतुर मारा पिताने चितरवा माटे भीतनो सरखो भाग चीतरवा RE| भाप्यो छे ए बीजो पाद राजा तथा बीजो पाद मारो पिता के जे रोज हुँ भात लइने आq के ते टाणे जंगल जवाने बहार नीकले के ३ अने चोथो मूर्खत्वनो पाद तुं पोते के जे आ भित्तिदेशमां में आळेखेला मयूर पिच्छ उपर हाथ नाखतां एटलो पण विचार नथी
| करतो के आ छोथी चकचकती भींत उपर निराधार मोरपीछ केम होइ शके? आवी तेणीनी वचन चातुरीथी रंजीत थयेला राजाए | ते कन्या- पाणिगृहण करवानी वांछाथी तेणीना पिता समीपे पोताना मंत्रीने मोकली प्रार्थना करावी. पिताए आपवा हा पाडी
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