Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उत्तराध्यपन सत्रम्
भाषांतर अध्ययन
एवं नृपेणोक्तः स ब्राह्मणपुत्र इतस्ततो नेत्रे निःक्षिपन् जहास, तदा राक्षसस्तुष्टः माह यदिष्टं तन्मार्गय? स प्राह यदि त्वं तुष्टस्तदा हिंसां त्यज? जिनोक्तं दयाधर्म कुरु ? राक्षसेनापि तहचसा दयाधर्मः प्रतिपन्नः, राजादयोऽपि तं दारकं प्रशंसितयंतः. अथ दासी प्राह हे राज्ञि! तस्य ब्राह्मणपुत्रस्य को हास्यहेतुः? तयोक्तं सांप्रतं मे निद्रा सामायातीत्युक्त्वा सुप्ता, दितीयदिने दासीपृष्टा सा राज्ञी प्राह हे हलेऽयं तस्य हास्यहेतु:-नृणां हि माता पिता नृपः शरणं, ते त्रयोऽपि मत्पार्श्वस्थाः, अहं पुनः कस्य शरणं यामीति तस्य हास्यमुत्पन्नमिति परमार्थः इति नवमी कथा.
॥५६॥
॥५६॥
___ आम तेणे ज्यारे वारंवार आग्रहथी कहेवा मांडयुं त्यारे माता पिताए मांड अनुमति आपी के ते ब्राह्मण पुत्र राजा पांसे गयो अने पोतानो संकल्प कह्यो. राजा तेना पिताना पग एना मस्तक उपर देवरावीने ए ब्राह्मण पुत्रने आगळ करी पाछळ पोते उघाड़े खड्ग हाथमां लइ राक्षस पांसे लइ गयो. ज्यां राक्षसने जोयो त्यां राजाए ब्राह्मणपुत्रने कथं के-तारा इष्टदेवनुं स्मरण | करी ले-आ समये ए ब्राह्मण पुत्र चारे कोर नजर फेरवी खडखड हसी पडयो; त्यारे राक्षस प्रसन्न थइने बोल्यो के-'तने जे इष्ट होय ते मारी पांसे मागी ले.' त्यारे ए ब्राह्मण बालके कयु के-जो तुं मने तुष्ट थयो हो अने मने गमे ते मागी लेवा कहे छे तो हुँ एटलुंज मागु छ के-'तुं हिंसा त्यजी दे, जिन कथित दया धर्म स्वीकार? राक्षसे तेना वचनथी दया धर्म अंगीकार को. राजा बगेरे सये ए ब्राह्मण बालकनी प्रशंसा करी. मदना दासी बोली के 'हे स्वामिनि! राक्षसनो बलिदान थइ उभेलो ए ब्राह्मण बालक हस्यो केम? राणी कहे-दमणा तो मने निद्रा आवे छे, काले तेना हसवानो हेतु कहीश; आम कहीने मृइ गया. बीजे दिवसे फरी
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