Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 286
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HI उत्तराध्य- राज्य पाळतां केटलोक काळ वीत्यो. एक समये राजा नगातिपुरी समीपे वसंतोत्सव निरखवा नीकल्या, त्यां मार्गमां मंजरीपुंजथी सुंदर भाषांतर यन सूत्रम् अर्थात् मोरना भरावथी शोभीतो एक आम्रवृक्ष दीठो; राजाये तेमांथी एक मंजरी मोरनोझुमखो लीला बुद्धिथी पोताने हाथे तोडी PE अध्ययन ॥५७१॥ लीधो. लोक तो हमेशा मतानुगतिक होय छे तेथी राजानुं जोइ बीजा लोकोए पण कोइए मोर लोधो, कोइये कुंपळ पत्र लीधां, ॥५७१॥ | कोइए नना फळ (खाखटी) लीधां, अने कोइए तो वळी डाळखीयो तोडी. राजा क्रीडा करीने पाछा बळ्या ज्यां ए आम्र पांसे आवीने | जुए छे तो ए आम्रवृक्षने काष्ठ शेष जोइ मनमां चिंतन करवा लाग्या 'अरे जे आम्रवृक्ष प्रथम अहीं आवतां केवो नेत्रने पीनि उत्पन्न कर तेवो देख्यो हतो ते आ अटाणे काष्ठ शेष शोभा रहित देखाय छे. जेम आ तेमज सर्वे जीवो पण धनधान्य कुटुंब देह आदिक सर्वे सादर्य भ्रष्ट यतां शोभताज नथी. अरे आ विनश्वर सघळु ज्यां सुधी क्षय न पामे त्यां मूधीमां संयम विषये यत्न करवो जरुरनो छे; आq चिंतन करतां नगाति प्रतिबुद्ध थया; त्यारे शासन देवताए वेष अर्यो अने पोते संयम गृहण कर्यो. ___अन्यदा ते करकंडुद्विमुखनमिनगातिराजानश्चत्वारोऽपि प्रत्येकबुद्धाः संयमिनो विहरतोऽन्येयुः क्षोणीप्रतिष्टनगरे प्राप्ताः, तत्र चतुर्मुख देवकुले क्रमतः पूर्वाद्येषु चतुर्दिग्द्वारेषु युगपत्प्रविष्टाः, तेषामादरकरणार्ध चतुर्मुखो यक्षः समं तात्सन्मुखोऽभवत् , तदानीं करकंडमुनिः स्वदेहकंडरोगोपशमनाय कर्णवृतां शलाकां गोपयन द्विमुखेन संयमिनोक्तः JE पुरमंतःपुरं राज्यं देशं च विमुच्य पुनस्त्वं किं संचयं कुरूषे? करकंडूमुनियांवत्तंपति वक्ति तावन्नमिराजर्षिणा द्विमु | खंमत्येवमुक्तं सर्वाणि राज्यकार्याणि मुक्त्वा पुनस्त्वया किमिदं शिक्षारूपं कार्य कर्तुमारब्धं? यावद् विमुखो मुनि Matpatava بالبلاد لا اله الا اللقطة المقالات ع التكليف + For Private and Personal Use Only

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