Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 267
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषांतर 1॥५५२।। __अथ पुनस्तथैव नृपे सुप्ते दासीपृष्टा राज्ञी कथामाह-कचिन्निवेशे कश्चिदुष्टश्चरन् कदापि बंबूलतरं ददर्श, JE उत्तराध्य-DE JE तदभिमुखां ग्रीवां कुर्वन्नप्राप्ततरुच्छाखः प्रकामं खिन्नस्तस्यैव बंबूलतरोरुपयुत्सर्ग कृतवान्. तदा दासी राज्ञों पप्रच्छ हे यन सूत्रम | स्वामिनि ! कथमेतद् घटते? स्वग्रीवया यो बंबूलतरं न प्राप्तस्तदुपरि कथमसाबुत्सर्ग चकार? राझी प्राहाद्य निद्रा ॥५५२॥ TEE समायाति, तेनैतत्कथारहस्यं कल्यरात्रावश्यं कथयिष्यामीत्युक्त्वा सुप्ता, कल्यदिनरात्री तथैव नृपे सुप्ते दासीपृष्टा राज्ञी तत्कधारहस्यमाह स ऊष्ट्रः कृपमध्यस्धं बंबूलतरं ददशेति परमार्थः इति तृतीया कथा । पांचमे दिवसे पुनः एज प्रमाणे राजा सूता के दासीये आवीने पूछतां राणीए कथारंभ कर्यो. कोइ प्रदेशमा कोइ एक ऊंटे | चरतां चरतां एक बावळनो वृक्ष दीठो. ऊंटे तेना भणी पोतानी डोक पसारी पण ए वृक्षनी डाळी नहिं पकडावाथी अत्यंत खेद पाम्यो 56 अने कंटाळीने ते बावळना झाड उपर मूतरी लींडां कर्या. त्यारे दासीये पूछ्यु के-हे स्वामिनि! आ वात केम घटे? पोतानी डोकथी जे वावळनी डाळने पण न पहोंची शक्यो तेना उपर मूत्र तथा मळ केम करी शके? राणी कहे-आज तो हवे मने निद्रा आवे छे | Marl तेथी ए कथानु रहस्य आवती काले हुँ तने अवश्य समजावीश. आटलुं बोली मुइ गया. आने वळते दिवसे पाछा ते राजा ज्यारे | भोगांते मूवानों ढोंग करी पलंगपर मूता त्यारे दासीना पूछवाथी राणी ते कथानु रहस्य बोल्या के-ए बावळनो वृक्ष कूवामां उगेलो | हतो एटले डोकथी पहोंची न शकाणु ने पूंठ वाळी मृतयों तथा लीडां कर्या ते ए बावळ उपर पड्यां. एज आ कथानो परमार्थ . परीते आ त्रीजी कथा कही संभळावी. For Private and Personal Use Only

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