Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उत्सराध्ययन सूत्रम्
| भाषांतर अध्ययन
॥५४६|
।.५४६॥
आ भरतखंडमां द्रवर्धन नामे नगर हाँ, तेमां सिंहस्थ नामनो राजा राज्य करतो हतो, ते राजाने गांधारदेशना अधिपति | राजाए एक बखते थे घोडा भेट तरीके मोकल्या; आ चे घोडानी परीक्षा करवा तेमांना एक घोडा उपर राजा पोते सवार थया अने वीजा घोडा उपर एक बीजो पुरुप आरुट थयो तेने साथे लइ वीजा पण सेंकड घोडासबारोथी परिवारित थइ राजा बहारना | बागमा गया, त्यां राजाए पोताना घोडानी परीक्षा करतां घोडाने पूर्ण गतिमा छोड्यो. आ घोडो बलवान् वेगधी नीकली पड्यो. राजा जेम जेम चोकहुँ खेचता जाय छे तेम तेम वायु समान वेगथी घोडो पड्यो जाय छे. नगरना उपवनाने आळंगी ते घोडो राजाने लइ महोटा जंगलमां पेठो. थाकेला राजाए ते टाणे चोकहुं छोडो दीधुं, एटले घोडी उभी रह्यो त्यारं राजाए ए घोडाने विपरीताश्व मान्या. अर्थात् चोकहुँ खेचवाथी दोडे अने ढीलु मुकवाथी उभो रहे ए घोडानी सामान्य टेव करतां उलटुं गणाय तेथी ए घोडाने विपरीत शिक्षावाळो भान्यो. राजा घोडा उपरथी उतरी पृथ्वीपर चालवा मांड्या अने ए घोडाने पाणी पाइ एक झाडे बांधी पोते फळादिवथी आहारवृत्ति करी. तदनंतर एक नग-पर्वत उपर चड्या त्यां कोई सुंदर प्रदेशमा एक महोटी आवास दीठो, कुतूहलथी राजा ए आवासमा पेसे छे त्यां तेमां एकली पवित्र गावाळी एक कन्याने राजाए दीठी. ते कन्याए राजाने आवता जोई घणोज हर्ष पामी आसन आप्यु. राजाए तेणीने ज्यारे पूछयु के-'तमे कोण छो' 'अहिं आ पर्वतमां वास कम करो छा?' अने आ रमणीय धाम शुं छे?' त्यारे कन्याये कयु के-'हे भूपाल ! पहेला आप मारूं पाणिग्रहण करो अर्थात् मने परणो, हमणां घणी उत्तम लग्न वेळा छे; पछी हुँ मारो सपळो वृत्तांत आपने कहीश. ए कन्याना आवां वचन सांभळी तेणीनी साथे पूजित जिन| विंचने प्रणाम करी राजाये उद्वाहमंगळनो अंगीकार को, ज्यारे राजा तेणीने परण्या ते वारे ते कन्या राजाने माटे विविध प्रका
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