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| भाषांतर
अध्ययन
॥४६४॥
JEका के-'आ स्मशानमां उगेलो शुभ लक्षण युक्त वांस जो मूळथी चार आंगळ आ वांस कापीने ए वंशदंड जे पोता पांसे राखे ते उत्तराध्य
BE अवश्य राजा थया. आ साधुनु बचन करकंडू बाळके तथा पांसे उभेला एक ब्राह्मणे सांभळ्युं ब्राह्मणे तो झट ते वांस मूळथी चार पन सूत्रम्
28 अंगुल उपर कापीने ज्यां ए दंड लइ जावा मांडयो त्यां करकंडूये तेना हाथमाथी ए दंड झोंटीने पोताना हाथमा लीधो. ब्राह्मणे ॥४६४|| कजीयो करवा मांडयो त्यारे करकंडूये कह्यु के-मारा बापना स्मशान वनमां उगेलो आ वांस हुँ बीजाने लइ जवा नहिं द. आ
ब्राह्मण तथा करकंडू बन्ने विवाद करता नगराधिकारीनी आगळ पहोंच्या. नगराधिकारी बोल्या के-'अरे बाळक ! आ बांसवें तारे JE | करवू छे? करकंडू बोल्यो के-ए बांस तो मने राज्य आपशे. आ सांभळी अधिकारीओ हस्या अने बोल्या के-गले ए बांस तु लइ PE'जा पण जो तने ज्यारे राज्य मळे त्यारे आ ब्राह्मणने एक गाम आपजे हो. 'भले एक गाम आपीश' एम बाळके कबुल कयु अने
ए वश दंड लइने पोताने घरे गयो. पेलो ब्राह्मण वीजा ब्राह्मणो साथे मळीने ते करकंडू बाळकने मारवा तैयारी करी ते करकंडूनो RS| चांडाल पिता पोताना बहरां छोकरां लइने ते देश छोडी देशांतरे भागी नीकळ्या.
___ अथ सकुटुंषः स जनंगमः क्षितितलं कामन कंचनपुरं जगाम, तत्रापुत्रनृपे मृते सति सचिवैरधिवासितस्तुरगः करकंटुं दृष्ट्वा हेषारवं कृतवान् , तं सल्लक्षणं दृष्ट्वा नगरलोका जयजयारवं चक्रुः, अवादितान्यपि वाद्यानि स्वयं निनेदुः, स्वयं छत्रं शिरसि स्थितं, ततोऽमात्यैरपि नवीनानि वस्त्राणि परिधाप्य स करकंडस्तमश्वमारोहितः, यावनगरलोकैः परमप्रमोदेन स पुरांतःप्रवेशितस्तावद्विप्रास्तं म्लेच्छोऽयमिति कृत्वा न मेनिरे, तदा क्रुद्धः स शिशुस्तं दंडं रत्नमिय करे जग्राह, अधिष्ठातृदेवैव्योम्नीति घुष्टं य इमं राजानमवगणयिष्यति तस्य भूय॑सौ दंडः पतिस्यति, इत्युक्त्वा सुरा
لاحقا قافلانتقالها مع تلك الانتقالاشعاع اقدامات
لمكافحه الالفالي المخالفنا کر ان کا نشان نداد لان
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